गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

स्त्री सुख कारक शुक्र


फलित ज्योतिष में शुक्र को भौतिक जगत से जुड़ी सभी वस्तुओं का कारक माना गया है ग्रह मण्डल में इसे ग्रहों का सचिव अथवा मंत्री माना जाता है | सत्याचार्य के अनुसार शुक्र पत्नी, मैथुन, वाहन, मदन, रत्न वस्त्र, पशु, मुक्ताहार गान विद्या, चंदन, नृत्य, प्रमेह व काम सम्बंधित रोगों का कारक माना जाता है ।

शुक्र स्त्री ग्रह है जिसे गुरू के बाद शुभ ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है |यह प्रेम सम्बंध, लगाव, गायक, संगीतकार कलाकार, कलाक्षेत्र, विवाह, रतिस्थान, वेश्याग्रह, बिस्तर, आरामगाह, सिनेमा व मनोरजंन स्थल, बगीचे, फव्वारे दक्षिण पूर्व दिशा, सफेद रंग, सुरीली व मधुर आवाज, खुशदिल, सफेद त्वचा, गोल चेहरे, ब्राह्मण जाति, घुंघराले बाल, स्त्रीत्व गुण, जलीय प्रकृति, तरूणावस्था, प्रसिद्धि आदि पर अपना प्रभुत्व रखता है ।

इसकी प्रत्येक भाव में स्थिति अपना अलग ही महत्व रखती है । इसके अतिरिक्त शुक्र का राशि विशेष पर भी प्रभाव अलग ही होता है जैसे सप्तम भाव में वृश्चिक का शुक्र तेज दिमाग व कुछ हद तक भावनात्मक लाभ प्रदान करता है जिससे व्यक्ति विशेष जो चाहता है पाता है वही सप्तम भाव में सिंह का शुक्र भावनात्मक लगाव प्रदान नहीं करता व्यक्ति हर कीमत पर जो चाहता है पाना चाहता है भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण रखता है परन्तु जीवन साथी के प्रति ईमानदार रहता है ।

हिन्दु ज्योतिष में शुक्र व सप्तम भाव विवाह एवं साझेदारी का प्रतीक माना जाता है जिसमें विवाह हेतु मंगल व शुक्र का रिश्ता देखा जाता है जो क्रमशः पुरूष व स्त्री का प्रतीक है जिनमें आर्कषण होने पर ही वैवाहिक सम्बंध कायम हो पाता है | मंगल जहाँ शक्ति अथवा ऊर्जा का प्रतीक होता है वही शुक्र सुदंरता का प्रतीक समझा जाता है जिनके मिलन से ही इच्छानुरूप युगल जन्म लेता है मंगल शुक्र की कुंडली में स्थिति वैवाहिक काम जीवन में पूर्णता अपूर्णता दर्शाती है ।

शुक्र मंगल की युति / दृष्टि कुंडली में जातक विशेष की उच्छल प्रवृत्ति तथा विपरित लिंगियों द्वारा परेशानी बताती है पर इसको ठीक से जानने हेतु हमें गुरु की स्थिति भी देखनी चाहिये ।

गुरु शुक्र का सम्बंध शुक्र की विशेषताओं में नियंत्रण कर उसे भौतिक जगत में पूजनीय बनाता है वही गुरू स्वयं इसके प्रभाव में आने से जातक को आम से खास में बदल देता है।

शुक्र शनि का योग विवाह में जहाँ ठहराव व लगाव प्रदान करता है वही अशुभ प्रभाव में होने से वैचारिक मतभेद भी देता है वैसे यह सारी स्थितियां सप्तम भाव पर भी निर्भर करती है ।

शुक्र मंगल की युति जातक को आनंदप्रिय, भोगप्रिय दिखावा पसंद बनाती है वही यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि वह कौन से भाव में बन रही है यह युति जातक के रोमांस प्रिय व्यक्तित्व को बताती है परन्तु यह युति विपरीत प्रभाव होने पर वैवाहिक जीवन में परेशानी, अलगाव तथा तलाक जैसी परिस्थिति भी बना देती है गुरू की राशि में यह दुष्प्रभाव कम हो जाता है परंतु पाप ग्रह की राशि / नक्षत्र में यह युति अशुभ परिणाम ही देती है ।

 


 शुक्र राहु की शुभ राशि / नक्षत्र में युति जातक विशेष को कला से सम्बंध कराती है विशेष मित्रता प्रदान करती है जब मंगल और शनि का प्रभाव पड़ता है ब शुक्र पीड़ित होकर नकारात्मक प्रभाव में आ जाता है जातक विशेष को स्त्री द्वारा परेशानियाँ मिलती हैं |

जब केतु शुक्र संग होकर मंगल या शनि द्वारा देखा जाता है तो विवाह में विवाद उत्पन्न होता ही है जिसके प्रभाव से व्यक्ति का कार्यक्षेत्र भी प्रभावित होता है साथ-साथ विष अथवा जहर द्वारा खतरा एवं लाइलाज रोग की संभावना बढ़ जाती है (जैसा कि फिजा खान एवं सुनन्दा थरूर के साथ हुआ)

प्रत्येक ग्रह के शुभाशुभ प्रभाव होते हैं शुक्र भी इससे अछूता नहीं है जब शुभ प्रभाव में होता है केन्द्र त्रिकोण में होता है, पाप प्रभाव से मुक्त होता है तो व्यक्ति विशेष की जीवन की सभी खुशियाँ, कला सम्बंधी रूझान, स्त्री सुख प्रदान करता है । वही पाप प्रभाव में होने से जातक विशेष को पथ भ्रष्ट, व्याभिचारी एवं गृहस्थ सुख से हीन कर देता है इसलिये कुंडली में शुक्र की स्थिति का विशेष महत्व रहता है ।

आइये अब कुछ कुंडलियों का अध्ययन कर शुक्र सम्बंध अन्य प्रभाव व जानकारी लेते हैं ।

1)16/7/1908 00:40 दिल्ली मेष लग्न की इस कुंडली में शुक्र राहु-केतु अक्ष में सप्तमेश होकर स्थित है जातक की पहली पत्नी गुजर गई दूसरी पत्नी सुंदर सुशील है परन्तु अनपत्य (बध्यंत्य) दोष से पीड़ित है इस कारण जातक की कोई संतान नहीं है ।

2)17/01/1905 14:40 प्रस्तुत वृष लग्न की कुंडली के जातक का वैवाहिक जीवन सामान्य नहीं है शुक्र राहु-केतु अक्ष में है और मंगल शुक्र के घर पर है गुरू की सप्तम भाव पर दृष्टि ने विवाह को बनाए रखा है परन्तु ग्रह क्लेश के चलते पत्नी अपने मायके में रहती है ।

3)30/7/1958, 6:00 मिथुन लग्न की पत्रिका की जातिका के पति ने विवाह के 10 बाद ही आत्महत्या कर ली थी जिससे इसका दाम्पत्य जीवन नष्ट हो गया भोग कारक ग्रह शुक्र पर शनि का प्रभाव है जबकि शुक्र स्वराशि का होकर द्वादश भाव (शयन सुख) में ही स्थित है । सप्तम भाव व सप्तमेश दोनों पीड़ित हैं |

4)14/11/1889, 23:14 इलाहाबाद प्रस्तुत कर्क लग्न की पत्रिका प्रथम प्रधानमंत्री श्री नेहरूजी की है जिसमें शुक्र स्वग्रही होकर शनि द्वारा दृष्ट (राहु के नक्षत्र में) होकर पाप कर्तरी में भी स्थित है नेहरू जी के वैवाहिक जीवन के

विषय मे सब जानते ही हैं | सूर्य शुक्र अंतर्दशा मे उनकी पत्नी का स्वर्गवास हुआ था |

5)26/10/1894 00:30 सिंह लग्न की इस पत्रिका शुक्र शनि (सप्तमेश) व सूर्य लग्नेश के पूर्ण प्रभाव में है तथा मंगल से दृष्ट भी है जातक ने कई वर्ष पत्नी की खोज में लगाये तीन बार रिश्ता होकर भी टूटा और अंत में मध्यवर्गीय परिवार की स्त्री द्वारा विवाह सम्पन्न हुआ परन्तु पत्नी का मर्दानापन एवं स्वयं के नाजायज रिश्तों के चलते वैवाहिक जीवन तनावमय एवं क्लेशमय बना रहा।

6) 27/2/1932 कन्या लग्न मे जन्मी इस जातिका के कईयों से विवाह एवं वैवाहिक संबंध रहे,यह पत्रिका एलीजाबेथ टेलर की है ।   

7)18/4/1962, 18:30 इस तुला लग्न की कुंडली मे शुक्र सप्तम भाव में उच्च सूर्य संग अष्टमेश लग्नेश होकर मंगल की राशि में स्थित है जातिका ने बहुत से रईस, प्रतिष्ठित व उच्चाधिकारीयों से सम्बंध बनाए और लाभ कमाया यह पत्रिका भ्रष्ट चरित्र की स्वामिनी पामेला बाडेंस की है।

8)30/7/1929 16:00 वृश्चिक लग्न की इस कुंडली मे शुक्र सप्तमेश होकर अष्टम भाव में शनि व केतु द्वारा है जातिका विवाह के नौवें माह में दृष्ट ही विधवा हो गई (पाप ग्रहों का सप्तमेश शुक्र पर प्रभाव था जिस कारण पति की हत्या हुई ) कुछ साल बाद जातिका का पुर्नविवाह हुआ ।

9)12.03.1863, 02:03 प्रस्तुत धनु लग्न की कुंडली शुक्र उच्च ग्रह का होकर चतुर्थ भाव में शनि द्वारा दृष्ट तथा बुध सप्तमेश के नक्षत्र में है शुक्र दशा के आरंभ होते ही जातक को भयानक परिणाम मिले पत्नी की मृत्यु स्वयं स्वास्थ्य हानि एवं मानसिक परेशानियां जैसे हालातों का सामना करना पड़ा,यहाँ चंद्र लग्न से देखने पर स्थिति अधिक स्पष्ट हो जाती है ।

10)23/11/1983, मकर लग्न अति महत्वकांक्षा, और घूमने फिरने के चलते जातिका अपने पति को छोड कर अपने मायके में रह रही है ।

11)18/07/1982 कुंभ लग्न जातक शारीरिक रूप से अक्षम होने के कारण स्त्री सुख प्राप्त करने में असमर्थ था पत्नि दो दिन बाद छोड़ कर चली गई ।

12)22/10/1912 16:00 इस मीन लग्न की जातिका की पत्रिका में शुक्र वृश्चिक राशि में शनि द्वारा दृष्ट है मंगल शुक्र में राशि परिवर्तन भी है । लग्न सप्तम भाव भी राहु-केतु अक्ष में है जातिका का पति बीमारी के चलते वैवाहिक सुख लेने में असमर्थ था जिससे वैवाहिक जातिका के नाजायज सम्बंध कायम हुए । एक छत के नीचे रहते हुये भी रिश्ता नाम मात्र का ही है ।

उपरोक्त कुण्डली के अतिरिक्त निम्न कुडलीयों में भी शुक्र पीडित होने के कारण इन सब जातक / जातिकाओं को बैवाहिक सुख में कोई न कोई कमी कोई न कोई कमी अवश्य रही है।

16/4/1944, वृषभ लग्न विवाह के एक वर्ष के भीतर पत्नी गुजर गयी |

14/03/1971, मिथुन लग्न समलैगिकता के चलते स्त्री सुख नही मिल पाया |

29/12/1942, मिथुन लग्न राजेश खन्ना की इस पत्रिका में अल्प वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा |

28/8/1946 मिथुन लग्न के इस जातक 5 विवाह किए पर फिर भी वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा |

17/09/1950, वृश्चिक लग्न, देश सेवा के चलते वैवाहिक जीवन नाम मात्र का रहा ये पत्रिका प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की हैं |

इस प्रकार यह स्पष्ट कहा जा सकता हैं की स्त्री सुख कारक शुक्र का किसी भी प्रकार से पीड़ित/अशुभ होना भोगसुख में कमी अवश्य करता है जातक चाहे कितने भी विवाह करे अथवा भोग संबंध बनाये तब भी उसे स्त्री सुख अथवा भोग सुख में कमी ही रहती है ।

 

 

 

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