रूद्राक्ष एक ऐसा फल है जिसमें अत्यन्त मूल्यवान, औषधीय गुण होते हैं । भगवान शिव का अत्यन्त प्रिय आभूषण बना यह फल दीर्घायु प्रदान करने वाला एवं अकाल मृत्यु को दूर करने वाला माना जाता है । शिव के पुराण अनुसार यह फल शिवजी के आंसुओं से बना है । भारतवर्ष में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने रूद्राक्ष के बारे में ना सुना हो ।
रासायनिक दृष्टि
से देखा जाए तो रूद्राक्ष में 50 प्रतिशत कार्बन 30 प्रतिशत आक्सीजन 17 प्रतिशत
हाइड्रोजन व 1 प्रतिशत नाइट्रोजन पाया जाता है शेष इसमें लवण पाए जाते हैं जो
अत्यधिक उपयोगी होते हैं ।
चिकित्सा जगत् में इसे "ऐलोकापस गैनिट्रस" के नाम से जाना जाता है जो लगभग 36 प्रकार के पेड़ों के रूप में उष्ण व अर्ध उष्ण जलवायु वाले स्थानों में मिलता है । औषधि के रूप में तथा विभिन्न रोगों के निवारण में प्रत्येक रूद्राक्ष का अपना अलग-अलग महत्व है । रूद्राक्ष एक से लेकर 27 धारियों वाले अर्थात् 27 मुखी तक पाए जाते हैं परन्तु 14 मुखी रूद्राक्ष ही सरलता से मिलते हैं ।
इस लेख में सभी रूद्राक्षों
के विस्तार को न बताते हुए मात्र लेख में रूद्राक्ष से चिकित्सा व रोग निवारण पर
महत्व दिया जा रहा है । आप सभी रूद्राक्ष को विभिन्न रोगों से मुक्ति हेतु प्रयोग व
उपयोग में ला सकते हैं । यहां ध्यान रखें कि यह प्रयोग धार्मिक दृष्टि व चिकित्सा
की दृष्टि दोनों से सर्वमान्य हैं एवं स्वपरीक्षित भी है । अतः आप इन सभी
रूद्राक्षों का बीमारी अनुसार प्रयोग करें और लाभ उठायें ।
चर्म रोग - यदि
कोई चर्म रोग से पीड़ित हो तो पांच मुखी रूद्राक्ष की भस्म गाय की गोबर के साथ
गंगाजल को मिलाकर लेप के रूप में लगाएं तो किसी भी प्रकार का कैसा भी चर्म रोग हो
वह ठीक हो जाता है तथा निशान भी नहीं रहते ।
मानसिक रोग -
मानसिक रोग होने पर चार मुखी रुद्राक्ष गाय के दूध में उबालकर 2 माह तक सेवन करें
इससे अत्यधिक लाभ मिलता है। स्मरण शक्ति बढ़ाने व पेट के रोगों में भी इसका सेवन
कर सकते हैं ।
चेहरे पर दाग धब्बे - तरुण अवस्था मे चेहरे पर दाग धब्बे, कील,
मुहासे होने पर पांच मुखी रूद्राक्ष को तुलसी एवं नींबू के रस में
घिसकर प्रतिदिन रात्रि को यह लेप लगाएं व सवेरे ठंडे पानी से धोएं,कुछ ही दिनों
में चेहरा खिल उठेगा ।
पेशाब में जलन -
इस बीमारी में चार मुखी रूद्राक्ष को गुनगुने पानी से घिसकर पीने से लाभ मिलता है ।
बवासीर - इस
दुखदायी बीमारी में रूद्राक्ष भस्म व त्रिफला चूर्ण 1:4 के अनुपात में लेने से
बहुत लाभ मिलता है । रूद्राक्ष कोई भी मुख का ले सकते हैं ।
गठिया - इस
लाइलाज बीमारी में कोई भी रूद्राक्ष दाना लेकर बकरी के दूध में घिसकर उसे दो बार
दिन में पियें तो बहुत लाभ मिलता है ।
घाव व ज़ख्म होने पर - किसी भी रूद्राक्ष के महीन चूर्ण को घाव, चोट, जख्म को साफ तरह से धोकर छिड़कने या पट्टी के रूप में बांधने से वह जल्दी ठीक हो जाता है ।
मिर्गी रोग होने
पर - रूद्राक्ष के गुदे का सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है । इसे कच्चे फल के रूप
में भी खाया जा सकता है ।
खांसी होने पर -
लम्बी व पुरानी खांसी होने पर रूद्राक्ष व सितोपलादि चूर्ण 1:4 के अनुपात में शहद
के साथ खाने पर खांसी में काफी राहत मिलती है तथा सांस
भी खुल के आने लगती है ।
अनिद्रा रोग
होने पर - यदि किसी भी कारण यह बीमारी हो गई हो तो 1 ग्राम रूद्राक्ष भस्म में 1
ग्राम स्वर्ण भस्म मिलाकर 21 दिनों तक गाय के दूध से बने मट्ठे से सेवन करने से
अनिद्रा रोग खत्म हो जाता है ।
जिह्वा एवं वाणी
रोगों में - दो ग्राम रूद्राक्ष चूर्ण में आधा ग्राम प्रवाल भस्म मिलाकर शहद से 21
दिनों तक जिह्वा में लेपन करने से जिहवा के विविध रोग जैसे हकलाना, तुतलाना,
जलन, स्वादहीन होना आदि पर बेहद लाभ मिलता
है ।
निमोनिया - दस
रूद्राक्ष दानों को तिल के तेल में आधा घण्टा उबालकर उस तेल को छाती पर लगाने से
निमोनिया एवं अन्य शीत रोगों में लाभ मिलता है ।
स्नायु रोग - इस रोग में रूद्राक्ष चूर्ण, मूंगे की भस्म (प्रवाल) व मोती भस्म तीनों की सम मात्रा चूर्ण प्रतिदिन दो ग्राम सेवन करने से स्नायु तन्तुओं की क्षीणता नष्ट हो जाती है ।
इन सब रोगों के
अलावा आप रूद्राक्ष धारण करके भी कई अन्य सुखों का आनन्द ले सकते हैं । कुछ अन्य
प्रयोग भी मैं यहां प्रेषित कर रहा हूं ।
विवाह, दाम्पत्य सुख, संतान प्राप्ति
हेतु - यदि विवाह होने में विलम्ब, बाधायें एवं परेशानियां आ रही हों तो गौरी शंकर
रूद्राक्ष के साथ पांच व छः मुखी रुद्राक्ष धारण करे | दाम्पत्य सुखों व संबंधों में दरार
बढ़ती जा रही हो तो गौरीशंकर रूद्राक्ष तथा सप्तमेश का रत्न धारण करें । गौरीशंकर
रूद्राक्ष पति पत्नी दोनों को धारण करना चाहिए ।
अध्ययन व
परीक्षा की सफलता हेतु - एक मुखी व गणेश रूद्राक्ष धारण करने से लाभ मिलता है ।
तो देखा आपने
शिवजी के नेत्र से उत्पन्न यह फल रूद्राक्ष हमारे कितने काम आ सकता है । अतः रूद्राक्ष
का प्रयोग कीजिए व जीवन को रोगमुक्त बनाकर सभी सुखों का आनन्द प्राप्त करें !
प्रस्तुत लेख सौभाग्य दीप नामक पत्रिका मे फरवरी 2010 मे
प्रकाशित हुआ हैं |
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