शुक्रवार, 24 जून 2022

अधिक मास, करें धर्म - कर्म और कमाएं पुण्य

 हिंदू पंचांग के हिसाब से तीन वर्षों तक तिथियों का क्षय होता है । तिथियों का क्षय होते होते तीसरे वर्ष एक माह बन जाता है । इस वजह से हर तीसरे वर्ष में अधिकमास होता है ।

अधिक मास को मलमास, पुरूषोत्तम मास आदि नामों से पुकारा जाता हैं। जिस चंद्र मास में सूर्य संक्रांति नहीं होती, वह अधिक मास कहलाता है और जिस चंद्र मास में दो संक्रांतियों का संक्रमण हो रहा हो उसे क्षय मास कहते हैं। इसके लिए मास की गणना शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक की गई है।

सामान्यतः एक अधिक मास से दूसरे अधिक मास की अवधि 28 से 36 माह तक की हो सकती है। कुछ ग्रंथों में यह अवधि 32 माह और 14 दिवस 4 घटी बताई गई है। इस प्रकार यह कह सकते हैं कि हर तीसरे वर्ष में एक अधिक मास आता ही है। यदि इस अधिक मास की परिकल्पना नहीं की गई तो चांद्र मास की गणित गड़बड़ा सकती हैं। विशेष बात यह है कि अधिक मास चैत्र से अश्विन मास तक ही होते हैं। कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष मास में क्षय मास होते हैं तथा माघ, फाल्गुन में अधिक या क्षय मास कभी नहीं होते हैं।

जानिए क्या होता हैं अधिकमास

जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास होता है। इसी प्रकार जिस माह में दो सूर्य संक्रांति होती हैं वह क्षय मास कहलाता है। इन दोनों ही मासों में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। हालांकि इस दौरान धर्म-कर्म पुण्य फलदायी होते हैं । पंचांग गणना के अनुसार एक सौर वर्ष में 365 दिन,15 घटी,31 पल व 30 विपल होते हैं जबकि चन्द्र वर्ष में 354 दिन,22 घटी,1 पल व 23 विपल होते हैं । सूर्य व चन्द्र दोनों वर्षों में 10 दिन,53 घटी,30 पल एवं 7 विपल का अंतर प्रत्येक वर्ष में रहता है । इसी अंतर को समायोजित करने के लिए अधिक मास की व्यवस्था होती है ।

अधिक मास क्यों व कब

यह एक खगोलशास्त्रीय तथ्य है कि सूर्य 30.44 दिन में एक राशि को पार कर लेता है और यही सूर्य का सौर महीना है। ऐसे बारह महीनों का समय जो 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष कहलाता है।

चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है जिससे चंद्र वर्ष में 354.36 दिन ही होते हैं। यह अंतर 32.5 माह के बाद यह एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है। इस समय को समायोजित करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है।

एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कम से कम एक बार सूर्य की संक्रांति होती है। यह प्राकृतिक नियम है। जब दो अमावस्या के बीच कोई संक्रांति नहीं होती तो वह माह बढ़ा हुआ या अधिक मास होता है। संक्रांति वाला माह शुद्ध माह, संक्रांति रहित माह अधिक माह और दो अमावस्या के बीच दो संक्रांति हो जायें तो क्षय माह होता है।

अधिक मास में उज्जैन में पुराणोक्त सप्तसागरों (रुद्र, क्षीर, पुष्कर, गोवर्धन, विष्णु, रत्नाकर व पुरुषोत्तम सागर ) की यात्राए, स्नान व सागरों के निर्धारित दान करने का विधान है। सम्पूर्ण मास धार्मिक कथा-पुराण, पुरुषोत्तम मास की कथा, श्रीमद् भागवत कथा, अवन्ति महात्म्य आदि कथाओं का श्रवण, भजन-कीर्तन, व्रतादि करना चाहिए ।

नहीं होंगे शुभ कार्य

अधिकमास में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। लेकिन धार्मिक अनुष्ठान कथा आदि के लिए यह महिना उत्तम माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य को पुण्य लाभ कमाने के लिए अधिमास की व्यवस्था की गई है ।

यह हैं मलमास का महत्व

जिस पुरुष या महिला को पूरे माह व्रत का पालन करना है, उसे भूमि पर सोना चाहिए साथ ही एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए | भगवान पुरुषोत्तम अर्थात श्री विष्णु का श्रद्दापूर्वक पूजन,मंत्र जाप एवं हवन करना चाहिए | हरिवंश पुराण,श्रीमद भागवत,रामायण विष्णु स्तोत्र,रुद्राभिषेक के पाठ का अध्ययन,श्रवण आदि करें । अधिक मास की समाप्ति पर स्नान,दान,जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है । व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ श्रद्धानुसार दान भी करना चाहिए । इस मास में वस्त्र,अन्न,गुड़ घी का दान एवं विशेष कर मालपुए का दान करना चाहिए ।

अधिक मास में क्या करें

जिस दिन मल मास शुरू हो रहा हो उस दिन प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य नारायण को पुष्प,चंदन अक्षत मिश्रित जल से अर्घ्य देकर पूजन करना चाहिए । अधिक मास में शुद्ध घी के मालपुए बनाकर प्रतिदिन कांसी के बर्तन में रखकर फल,वस्त्र,दक्षिणा एवं अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करें । संपूर्ण मास व्रत,तीर्थ स्नान,भागवत पुराण,ग्रंथों का अध्ययन विष्णु यज्ञ आदि करें । जो कार्य पूर्व में ही प्रारंभ किए जा चुके हैं,उन्हें इस मास में किया जा सकता है । इस मास में मृत व्यक्ति का प्रथम श्राद्ध किया जा सकता है । रोग आदि की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय,रूद्र जपादि अनुष्ठान किए जा सकते हैं । इस मास में दुर्लभ योगों का प्रयोग,संतान जन्म के कृत्य,पितृ श्राद्ध,गर्भाधान,पुंसवन,सीमंत संस्कार किए जा सकते हैं ।

मलमास में यह नहीं करें

मलमास में कुछ नित्य कर्म,कुछ नैमित्तिक कर्म और कुछ काम्य कर्मों को निषेध माना गया है। जैसे प्रतिष्ठा, विवाह,मुंडन,नववधु प्रवेश,यज्ञोपवित संस्कार,नए वस्त्रों को धारण करना,नवीन वाहन खरीद,बच्चे का नामकरण संस्कार आदि कार्य नहीं किए जा सकते । इस मास में अष्ट का श्राद्ध का संपादन भी वर्जित है। इस मास में पराया अन्न तथा तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए ।

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं: