गीता मे भगवान कृष्ण कहते हैं की इस भौतिक जगत मे प्रत्येक व्यक्ति बचपन से जवान होता हुआ बुढ़ापे को प्राप्त करता हैं इन तीनों अवस्थाओ का यदि ग्रहो से निर्धारण करे तो यह क्रमश: बुध मंगल व शनि ग्रह से संबन्धित अवस्थाए होती हैं | इन ग्रहो को विशोन्तरी दशा मे सूर्य का सबसे तेज भ्रमण करने वाले ग्रह बुध से तथा सबसे धीमे भ्रमण करने वाले ग्रह शनि से एक प्रकार का संबंध बना हुआ हैं चूंकि हमारे शरीर मे आत्मा भी तेज चलने वाले पिंड से धीमे चलने वाले पिंड की और ही जाती हैं हमारे शास्त्रो मे दिया जाने वाला ग्रहो का दशा क्रम भी हमारे विद्वानो द्वारा इससे काफी समानता रखता दर्शाया गया हैं |
सूर्य से देखे तो दूरी के अनुसार बुध,शुक्र,पृथ्वी,मंगल,गुरु तथा शनि ग्रह का क्रम आता हैं चूंकि हम स्वयं पृथ्वी से यह क्रम देख रहे होते हैं और पृथ्वी का अपना एक उपग्रह चन्द्र भी हमारे ऊपर चारो और भ्रमण कर रहा होता हैं इसलिए उसे भी इस ग्रह प्रणाली मे शामिल कर लिया गया जहां चन्द्र हमारी पृथ्वी के अक्ष को काटता हैं उन दो बिन्दुओ को राहू व केतू की संज्ञा दी गयी हैं,आंतरिक ग्रहो की तरफ होने वाले कटान को केतू व बाहरी ग्रहो की तरफ होने वाले कटान को राहू की संज्ञा दी गयी हैं |
इन सभी को क्रमानुसार रखने पर आंतरिक ग्रहो (सूर्य,चन्द्र,बुध,शुक्र व केतू) की दशा अवधि 60 वर्ष बन जाती हैं ठीक इसी प्रकार
बाहरी ग्रहो की दशा अवधि भी 60 वर्ष बन जाती हैं जिससे कुल दशा अवधि 120 वर्ष की
हो जाती हैं |
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