शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

सिंहस्थ गुरु कुम्भ और विवाह


कुंभ का मेला मुख्यत: चार जगह पर आयोजित होता है जिनमें हरिद्वार,इलाहाबाद,नासिक और उज्जैन है कुंभ का मेला इन चारों स्थानों में प्रत्येक 3 वर्ष में होता है यह हरिद्वार से आरंभ होकर 12 वर्ष बाद हरिद्वार में ही समाप्त होता है प्रत्येक स्थान में अर्धकुंभ मेला भी होता है कुंभ मेला जहां नदी शुरू होती है वहां से तथा जहां वह समुद्र से मिलती है वहां पर आयोजित किया जाता है |

कुंभ का मेला हरिद्वार में 1985,अर्धकुंभ नासिक में 1985      

कुम्भ इलाहाबाद मे 1988,उज्जैन में अर्धकुंभ 1988  

हरिद्वार में कुंभ 1997 में,नासिक में अर्धकुंभ 1997 में

इलाहाबाद में कुंभ 2000 मे और उज्जैन में अर्धकुंभ 2000 में हुए |

यह कुम्भ के मेले गंगा और गोदावरी नदी के तट पर ही आयोजित किए जाते हैं यह माना जाता है कि इन पवित्र वर्षों में नदी अपनी पूर्ण गति से बहती है जो उसका सर्वकालीन समय होता है नदियों को मां माना जाता है और अपने पुष्कर वर्ष में यह अपनी संतानों को जन्म देती हैं यह पुष्कर वर्ष बहुत ही पवित्र माने जाते हैं जिसमें मुख्यत: 10 से 12 दिन तक जातक शौच माना जाता है और इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते इनके पश्चात ही सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं

गोदावरी नदी एक पवित्र नदी हैं जो त्रियम्ब्केश्वर में प्रकट होकर ज्योतिर्लिंग को स्पर्श करती है इस गोदावरी नदी के इष्ट गुरु जब सिंह राशि में होते हैं तो वह समय बहुत ही पवित्र माना जाता हैं |

सिंह राशि मे गुरु जब अस्त हो अथवा जब शुक्र किसी भी राशि मे अस्त हो,अपनी शिशु अथवा मृत अवस्था में हो तब कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाने चाहिए जिमें व्रत,यात्रा,विवाह,विद्या,राजा से मिलना,कुए का खोदना,मंदिर का निर्माण करना,मूर्ति स्थापना करना तथा बच्चे का कान भेदन संस्कार करना वर्जित माना जाता है | प्राचीन शास्त्रो के अनुसार इस दौरान व्यक्ति विशेष को तिल,स्वर्ण और गाय का दान करना चाहिए ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए तथा तर्पण करना चाहिए |

प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार उत्तर भारत में कुंभ मेला तथा दक्षिण भारत में महामघा मनाया जाता है जो कि स्कंद पुराण में लिखा गया है इसमें कहा गया है कि जब बृहस्पति सिंह राशि में हो तो गोदावरी नदी पर स्नान करने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है इसी स्कंद पुराण में इस समय प्रयाग की यात्रा करना और मेरु पर्वत के दर्शन करना आपके सभी दुखों को हर लेता है ऐसा कहा गया हैं | ज्योति निर्बंध में कहा गया है कि जब गुरु सूर्य के राशि में जाए अथवा सूर्य गुरु के राशि धनु व मीन राशि मे यानी मघा और रेवती नक्षत्र में जाए तब कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए | गुरु का मघा नक्षत्र में रहना महामघा कहलाता है |

ऋषि पराशर कहते हैं की गुरु जब सिंह राशि में होता है तब विवाह संस्कार गोदावरी और गंगा के बीच में नहीं किए जाने चाहिए परंतु बाकी स्थानों में किए जा सकते हैं परंतु यह सिर्फ गुरु के मघा नक्षत्र में रहने तक ही है उसके बाद शुभ कार्य किए जा सकते हैं | ऋषि मांडव्य कहते हैं कोई भी कन्या जो गुरु के सिंह राशि में मघा नक्षत्र के बाद विवाह करती है वह सुखी और समृद्ध होती है वृद्धवशिष्ठ ऋषि के अनुसार गुरु का सिंह राशि में रहना देश के केन्द्रीय भाग हेतु मृत्यु योग कहलाता है जब यह गुरु सिंह के राशि सिंह नवांश में रहता है तो इसे अकाल मृत्यु योग कलिंग,घोड़ा और गुर्जर जाति में माना जाता है जब यह मध्य नवांश में होता है तब इसे सनी योग माना जाता है जो गोदावरी से उत्तर की तरफ होता है इन दो योगो को विवाह हेतु शुभ नहीं माना जाता तथा यह माना जाता है की ऐसे विवाह का शुभ 5 वर्ष के भीतर ही समाप्त हो जाएगा |


ज्योतिरनिबंध मे ऋषि शौनक कहते है कि जब बृहस्पति सिंह में हो,सूर्य उच्च का हो तब शुभ कार्य किए जा सकते हैं इस प्रकार से बहुत से परिणाम हमें प्राप्त होते हैं जो यह बताते हैं कि पूरे देश में विवाह तभी वर्जित होते हैं जब बृहस्पति सिंह राशि के मघा नक्षत्र में होते हैं संभवत: इसी कारण दक्षिण भारतीय इस समय को महामघा के नाम से पुकारते हैं और इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान किए जाने का बड़ा महत्व मानते हैं |

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