भारतीय ज्योतिष के
पुरोधा “वराहमिहिर” के अनुसार स्त्री
के चरित्र को पंचम भाव से देखा जाना चाहिए और उसके प्रेम अथवा प्रेमी को चतुर्थ भाव से
देखा व जाना जाना चाहिए | पंचम भाव किसी की तुलना के तल को दर्शाता है तथा चतुर्थ
भाव स्त्री के घर पर उसके स्वभाव व उसकी रहन सहन की कला को दर्शाता है जिसमें जातक की उत्सुकता अक्सर रहती है | यदि चंद्र चतुर्थ भाव में शनि मंगल का प्रभाव हो तो स्त्री ग्रहक्लेश करती रहती है
और यदि पंचम भाव में शनि मंगल का प्रभाव हो स्त्री के पूर्व मे पीड़ित प्रेम संबंध रहते
हैं |
बौद्ध ज्योतिष
स्त्री के स्वभाव जानने के लिए 4थे व 7वे भाव का अध्ययन करने को कहते हैं |
चतुर्थ भाव को
गरुक कर्म व अकुशल
कर्म का भाव कहा गया है | क्या व्यक्ति सही कर्म द्वारा
लाभ पा रहा है? क्या उस में संपत्ति के योग हैं? उसके अभिभावक अच्छे,दानपुण्य
करने वाले,प्रसन्न गृहस्थ सुख जीवन जीने वाले हैं की नहीं और स्वयं उसकी मानसिकता
का स्तर गुस्सैल है कि मधुर है आदि यह सब बातें इस
चतुर्थ भाव द्वारा
जानी जा सकती हैं |
सप्तम भाव उपस्तंभक
कर्म बताता है अर्थात अच्छे व बुरे कर्मो की जानकारी देता हैं किसी भी रिश्ते
में जातिका के संबंध विशेषकर
पति के संदर्भ में कैसे हैं यह बताता है यदि उसे सही पति मिले तो क्या वह उसे सम्मान
देगी,यदि सप्तम भाव पर पाप प्रभाव हुआ तो दोनों पति पत्नी मे अक्सर अधिकार की लड़ाई
होगी क्योंकि पत्नी को पति की मददगार,रक्षक व शरण देने वाला कहा गया है | सप्तम भाव में पाप प्रभाव “काम संबंधो” को वेदना में बदल देता है |
ऋषि च्यवन कहते हैं कि स्त्री
पत्रिका में मेष का शुक्र हो,राहु दशम भाव में हो तो स्त्री
4 पुरुषों से विवाह करती है,वही भृगु ऋषि कहते हैं कि यदि
राहु/केतु,सूर्य-बुध-मंगल-गुरु संग चौथे
अथवा सातवें भाव में हो तो जातिका या तो विधवा होती है या फिर वैश्या |
स्त्री के हाथों
के द्वारा भी बहुत सी जानकारी प्राप्त की जा सकती है सूर्य की उंगली
शनि उंगली के बराबर हो और उसकी ओर झुकी हुई हो तो यह स्त्री के जुआरी होने का प्रतीक
मानी जाती है | बुध उंगली सूर्य उंगली से दूर जाती हुई हो तो उसे भावनाओं
पर नियंत्रण नहीं होता वह भविष्य की नहीं सोचती तथा अपने सम्मान की भी परवाह
नहीं करती |
स्त्री पत्रिका
में गुरु नवमेष हो कर द्वादश भाव मे हो हो तो जातिका का बुढ़ापा अपने बुरे कर्मों के कारण बहुत बुरा बीतता है |
27 मई 1951 3:25 नैरोबी केन्या में मेष लग्न तथा वृषभ नवांश में जन्मी इस जातिका ने दिसंबर
1974 से जनवरी 1977 के बीच गुरु मे शनि दशा में शादीशुदा व्यक्ति से घर से भागकर प्रेम विवाह किया
पत्रिका मे गुरु नवमेश होकर द्वादश भाव मे हैं जिसकी कर्मेश शनि (वक्री) पर सातवी दृस्टी हैं |इसके पति ने इसे
कुछ समय बाद तलाक दे दिया तथा बाद मे इस स्त्री के कई लोगो से संबंध तो बने पर
विवाह नहीं हुआ अंत समय मे इसे बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा |
नाडी सूत्र कहते हैं
कि यदि जातक कर्क राशि के 7:24 से 7:30 अंश के बीच में जन्मा हो तो उसका देश के राज दरबार से संबंध
होता है उसके पास बहुत सी इमारते,घोड़े,दौलत तथा तथा सुंदर स्त्रियां होती हैं उसके हाथ में मछली अथवा झंडे का चिन्ह
होता है |
स्त्री का लग्न ज्योतिषीय अध्ययन में खास
जरूरी होता है क्योंकि वह उसके शरीर, स्वास्थ्य,इज्जत,सुंदरता,रंग-रूप व प्रकृति
को बताता है और यही वो निम्न विवरण होते हैं जो उसके भावी जीवन की बेहतर तस्वीर को दर्शाते हैं |
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