मंगलवार, 3 अक्टूबर 2017

शनि की साढेसाती



शनि का जन्म कालीन चन्द्र से 12वे,पहले तथा 2रे भाव से गोचर शनि की साढेसाती कहलाता हैं शनि धीमी गति से तथा चन्द्र तीव्र गति चलने वाला ग्रह हैं इस कारण इन दोनो का संबंध ज़बरदस्त प्रभाव उत्पन्न करता हैं जिसमे अशुभता ज़्यादा होती हैं | शनि का यह भ्रमण तीन राशियो मे साढे सात वर्ष लेता हैं ( प्रत्येक राशि पर लगभग ढाई वर्ष ) परंतु जन्मकालीन चन्द्र से 15 अंश आगे व 15 अंश पीछे का भ्रमण जातक विशेष हेतु ज़्यादा प्रभाव शाली होता हैं एक अन्य मत के अनुसार शुरुआती 5 वर्ष अशुभ तथा अंतिम ढाई वर्ष शुभ माने जाते हैं |

कालपुरुष की कुंडली मे शनि 10 व 11वे भाव के स्वामी होते हैं जो चन्द्र ( चतुर्थ भाव ) से देखने पर 7वा व 8वा भाव होता हैं कहाँ जाता हैं की अपने पूर्व जन्मो के किए गए कर्मो के अनुसार ही शनि की यह साढेसाती जातक विशेष को अपने प्रभाव देती हैं | 10वा भाव पूर्वजन्म के कर्म बताता हैं तथा 11 भाव दुखस्थान होता हैं शनि इन दोनों भावो का स्वामी होने के कारण पूर्व जन्मो के कर्मो के परिणाम दिखा व दर्शा पाने मे सक्षम होता हैं |

कालपुरुष की पत्रिका मे चन्द्र चतुर्थ भाव का स्वामी हैं जो मानव जीवन मे होने वाली कई घटनाओ से संबन्धित भाव होता हैं यह माता,खुशी,शिक्षा,मकान,तरक्की,भूमि,नैतिकता,स्त्री हेतु चाह,स्वादिष्ट भोजन आदि को दर्शाता हैं जो ज़्यादातर आनंद व भोग की वस्तुए हैं | प्रत्येक कार्य के अच्छे व बुरे दोनों परिणाम होते हैं सही कार्यो हेतु शुभ व ग़लत कार्यो हेतु अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं जिनके प्रभाव से सभी ऐसों आराम से वंचित होना पड़ता हैं जो शनि की इस साढेसाती मे अवश्य होता देखा गया हैं |

अब प्रश्न उठता हैं यह साढेसाती किस हद तक जातक विशेष को हानी अथवा परेशानी दे सकती हैं दुख कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे गरीबी,जेल,बिछोह,नाजायज संबंध,स्वार्थीपना इत्यादि परंतु इतना निश्चित हैं की यह साढे साती भौतिक सुखो मे कमी व हानी कर जातक विशेष को परेशानी अवश्य प्रदान करती हैं | यह साढेसाती किसी भी जातक के जीवन मे 3 बार ( आज के संदर्भ मे ) आती हैं यदि पहली सही हो तो दूसरी भयावह होती हैं जबकि पहली अशुभ होतो दूसरी शुभ होती हैं तीसरी हमेशा मृत्यु प्रदान करने वाली होती हैं,कुछ जन दूसरी साढेसाती को शुभ ही मानते हैं परंतु उदाहरण उसे भयावह ही बताते हैं |

साढेसाती पर अभी तक कोई सटीक आंकलन व पुस्तक इत्यादि नहीं लिखी गयी हैं जिस कारण इस साढेसाती का कई कुंडलियों मे अध्ययन कर फलित सूत्र,दशा इत्यादि लगाकर परिणाम देखे जाते रहे हैं यहाँ इस लेख मे हम इसके निम्न तरीके से प्रभाव देख रहे हैं |

1)भाव जो लग्न से साढेसाती प्रभाव मे हैं |

2)चन्द्र शनि की स्थिति |

3)साढेसाती समय दशा नाथ से शनि व चन्द्र की स्थिती |

आइए अब कुछ उदाहरण देखते हैं |

1)4/5/1896 23:00 धनु लग्न की यह पत्रिका पूर्व रक्षा मंत्री श्री मेनन की हैं जिसमे चन्द्र अष्टमेश होकर वाणी भाव मे हैं तथा शनि वाणीपति ऊंच का होकर एकादश भाव मे हैं चन्द्र से द्वितीयेश भी शनि ही हैं जो स्वयं से दशम मे हैं शनि जब धनु मे आए तो यह बीमार हुये जब शनि मकर मे आए तो इन्हे पद से हटा दिया गया इनकी सख्त व बेबाक वाणी के कारण इनके बहुत से दुश्मन पैदा हो गएथे जिससे इनका पत्तन हुआ |

2)17/5/1911 4:00 आगरा की इस मेष लग्न की पत्रिका मे चन्द्र नवम ( रुतबे) के भाव मे हैं शनि उससे पंचम भाव मे हैं साढेसाती से अन्य भाव 8,19 प्रभावी हैं चन्द्र से शनि तीसरे (सहोदरो) का स्वामी होकर उस भाव से तीसरे बैठा हैं जहां मंगल स्थित हैं साडेसाती समय मंगल की दशा भी थी मंगल से शनि तीसरे हैं जब शनि धनु से गुजर रहा था तब भाइयो मे अनबन शुरू हुयी जिससे बंटवारा हुआ जबकि शनि जब वृश्चिक मे था तब जातक को अपने कैरियर की वजह से बहुत परेशानी रही उसे झूठे केस मे फंसाया गया यहा यह भी ध्यान दे कि धनु का शनि कैरियर हेतु परेशानी ज़रूर देता हैं  |

3)20/7/1918 00:00 दिल्ली मेष लग्न की इस पत्रिका मे चन्द्र अष्टम भाव मे हैं चन्द्र का 8,9 भावो मे होना साढेसाती हेतु महा अशुभ होता हैं विशेषकर जब चंद्रेश भी शनि का शत्रु हो,शनि कि पहली साढेसाती मे जातक शनि महादशा के प्रभाव मे भी था उसके पिता कि मृत्यु हुई यहाँ शनि लग्न से चतुर्थ हैं तथा चन्द्र से चौथे का स्वामी हैं चन्द्र स्वयं लग्न से चौथे का स्वामी हैं यह सभी तत्व माता के लिए अनिष्ट बता रहे हैं इनके पिता कि मृत्यु शनि मे शुक्र अंतर्दशा मे हुई शुक्र नवम भाव से सप्तम तथा चन्द्र से अष्टम हैं गुरु भी ऐसा ही हैं परंतु यहाँ ध्यान रखे कि शनि अपनी दशा मे अपने फल शुक्र के माध्यम से देता हैं |

4)18/7/1919 00:30 कानपुर,मेष लग्न की इस पत्रिका मे शनि लग्न से पंचम भाव मे 10,11वे भाव का स्वामी के रूप मे हैं तथा चन्द्र शनि से द्वादसेश भी हैं जब शनि मकर मे आए इस जातक को अपने पद से हटा दिया गया और जब शनि कुम्भ मे आए तो जातक की सेवा समाप्त कर दी गयी |

5)10/7/1939 10:00 लखनऊ,सिंह लग्न की इस कुंडली का जातक अच्छे परिवार का था जो अच्छे पद पर नौकरी कर रहा था इसके लग्न से अष्टम भाव मे द्वादशेश होकर चन्द्र तथा नवम मे सप्तमेश व चन्द्र से द्वादशेश शनि स्थित हैं | साढ़ेसाती के समय 7,8 व 9 भाव प्रभावित हुये जैसे ही शनि ने सप्तम भाव कुम्भ राशि मे प्रवेश किया जातक के अन्य जाति की स्त्री से संपर्क बने जिस कारण उसकी बहुत बदनामी हुयी यहाँ शनि सप्तमेश होकर नीच राशि का तथा चन्द्र से दूसरे भाव मे हैं |

6)6/11/1954 2:00 दिल्ली,सिंह लग्न की यह पत्रिका एक सम्मानित परिवार की विधवा महिला की हैं जिसमे चन्द्र द्वादशेश होकर सप्तम भाव मे हैं वही शनि सप्तमेश होकर तीसरे भाव मे हैं शनि के मकर राशि मे आते ही जातिका को बहुत सी बीमारियाँ हुयी,बेटी के विवाह के लिए जातिका को अपनी ज़मीन बेचनी पड़ी,शनि के कुम्भ मे आते ही इस स्त्री के बाहरी पुरुष से संबंध बने जिससे इसकी बहुत बंदनामी हुयी |

अनुभव मे देखने मे आता हैं की साढ़ेसाती सप्तम भाव से लगने पर निम्न तथ्य दर्शाती हैं

1) नैतिक पत्तन

2) प्रजनन अंगो मे बीमारी,

3) जीवन साथी अथवा माता की बीमारी व मृत्यु

4) व्यापार व पद मे हानी तथा नौकरी का छूटना |

जब शनि बुध,शुक्र या स्वयं के भावो से गुजरता हैं तो कम हानी करता हैं परंतु मंगल,सूर्य,चन्द्र के लग्नों से शनि का गोचर हानी अवश्य करता हैं इसी प्रकार जन्मराशि से अथवा उससे अष्टम भाव से शनि का गोचर भी कष्टकारी साबिता होता हैं |

साढ़ेसाती से बहुत से लोग भय मान इसे श्राप समझते हैं जबकि यह मोक्षप्राप्ति मे सहायक होती हैं  साढ़ेसाती हमारी भौतिक वस्तुओ को समाप्त कर हमें अहंकारी बनाने से बचाती हैं यह हमें प्रारब्ध कर्मो से जोड़ हमारे कर्म चक्र को पूरा करती हैं जिससे हम निखरकर अपना भविष्य संवारते हैं अनुभव मे यह भी देखा गया हैं की जिन स्त्री जातको ने साढ़ेसाती का प्रथम चरण गुजार लिया था वह विवाह पश्चात अच्छी ग्रहणी साबित हुयी |


शनि के कुप्रभाव से रक्षा पाने के लिए छायापात्र का दान करने का विधान हमारे शास्त्रो मे दिया गया हैं जिसमे लोहे की कटोरी मे सरसों का तेल भरकर उसमे चेहरा देखकर डकोत को वह कटोरी दान की जाती हैं |

कोई टिप्पणी नहीं: