दिनांक
9/10/2017 को मोदीनगर मे “भारतीय
वेद ज्योतिष विज्ञान संस्थानम” व “पीतांबरा
विद्यापीठ”मे
हुई ज्योतिषीय संगोष्ठी जो विवाह की दिशा,समय व दूरी
पर आधारित थी उसमे विद्वानो द्वारा दिये गए कुछ बिन्दु इस प्रकार से हैं |
बुलंदशहर
के विद्वान ज्योतिषी “श्री
सुरेन्द्र शर्मा” जी ने
विवाह की दिशा पर उदाहरण सहित
बेहतरीन शोध प्रस्तुत किया जिसमे उन्होने अपने अनुभवो के आधार पर यह भी बताया की
शुक्ल पक्ष मे किए गए विवाह ज़्यादा सफल व मंगलवार को किए गए विवाह ज़्यादा असफल
पाये गए हैं | वही उनका यह भी मानना था की विवाह के समय मुख्य रूप
से फेरो के समय का लग्न बहुत अहम
भूमिका निभाता हैं |
हमने
अपने शोध मे यह बताने का प्रयास किया की नंदी नाड़ी के अनुसार विवाह वर्ष की जो गणना
बताई गयी हैं वह सही नहीं हैं जबकि वर्षफल मे चन्द्र का जन्मकालीन सप्तमेश
के नक्षत्र मे होना विवाह का वर्ष सटीकता से बताता हैं वही केतू का गोचरीय सिद्धान्त
भी विवाह का वर्ष सही बताता हैं लग्नेश व सप्तमेश का गोचरीय संबंध विवाह का
माह तथा सूर्य का गोचर विवाह
का दिन निर्धारित करता हैं | विवाह की दूरी के विषय मे कुछ अनुभव भी
रखे जिनमे प्रमुख सप्तमेश का लग्न मे होना उसी स्थान मे विवाह होने के पुष्टि करता
हैं तथा एकादश भाव मे चन्द्र गुरु का होना मित्र की सहायता से विवाह होने की पुष्टि
करता हैं मुख्य रहे |
मोदीनगर
के विद्वान ज्योतिषी मित्र “श्री अखिलेश
कौशिक” जी
ने के पी पद्दती द्वारा विवाह
के दिन तीन ग्रहो का विवाह कारक भावो से संबंध होना कई कुंडलियों के उदाहरण सहित बताया
जो बहुत ही सटीक व शोध से भरा हुआ था उन्होने विवाह की तिथि
का निर्धारण करने का सूत्र भी बताया जिसमे उन्होने
भविष्य मे होने वाली एक शादी की गणना करी हैं की विवाह उस निर्धारित तिथि को होगा |
पर्यवक्षक
के रूप मे मोदीनगर के
विद्वान ज्योतिषी “श्री
विनायक पुलह” जी ने
इस विषय पर ज़्यादा शोध करने पर
ज़ोर दिया की विवाह का वर्ष निर्धारण के अतिरिक्त यदि विवाह की निश्चित तिथि बताई
जा सके तो इस विद्या की उपयोगिता और भी बढ़ सकती
हैं वही “पीतांबरा
विद्यापीठ” के
संस्थापक “श्री
चन्द्रशेखर शास्त्री” जी ने घर
बिगाड़ रहे हैं ज्योतिष सॉफ्टवेयर पर
अपने अमूल्य विचार रखे |
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