हिन्दू समाज मे विवाह को संस्कार के रूप मे देखा जाता हैं प्राचीन ग्रंथो मे विवाह से संबन्धित कुछ विशेष जानकारिया दी गयी हैं जैसे विवाह कब,कैसे व किस दिशा मे होगा प्रस्तुत लेख मे हम ऐसी ही कुछ जानकारी सूत्र के रूप मे देने का प्रयास कर रहे हैं |
विवाह की दिशा
1)सप्तम भाव मे स्थित अथवा सप्तम भाव पर दृस्टी डाल रहे ग्रह की दिशा मे |
2)सप्तमेश व शुक्र को जोड़कर जो राशि आए उस राशि के स्वामी की दिशा मे |
3)सप्तमेश अथवा शुक्र से सप्तमेश राशि स्वामी की दिशा मे |
4)सप्तमेश की दिग्बली दिशा मे |
5)सप्तमेश जिस भाव मे हो उस दिशा मे अथवा सप्तमेश जिस भाव मे हो उसके स्वामी की दिशा मे |
6)शुक्र सप्तमेश व सप्तम भाव मे स्थित ग्रह के योग के बराबर राशि दिशा मे |
विवाह स्थान की दूरी
1) सूर्य,चन्द्र,शुक्र व सप्तमेश कुंडली मे लग्न से सप्तम भाव तक हो तो विवाह ज्यादा दुर से नहीं होता |
2)यदि ये सब ग्रह लग्न से चतुर्थ भाव तक हो तो विवाह उसी शहर या गाँव मे होता हैं | लग्नेश लग्न मे सप्तमेश दूसरे भाव मे होतो भी विवाह उसी शहर मे होता हैं |
3)यदि ये सब ग्रह 5,8,9,भावो मे होतो विवाह 32 किलोमीटर के दायरे मे होता हैं |
4)यदि ये सभी ग्रह प्रथम या सप्तम भाव मे हो तो नजदीकी जिले मे जबकि अष्टम,दशम भाव मे
होतो तीसरे अथवा चौथे जिले मे होता हैं |
5)सप्तमेश व कारक शुक्र 11,12 भावो मे होतो विवाह बहुत दूर अथवा विदेश मे होता हैं |
6)चन्द्र गुरु 3,4 भाव मे होतो उसी स्थान मे जबकि चन्द्र गुरु 11वे भाव मे होतो मित्र की सहायता से विवाह होता हैं |
7)सप्तम भाव मे चर राशि दूर विवाह,स्थिर राशि 100 किलोमीटर तक दूर,द्विस्वभाव राशि 100 किलोमीटर से कम दूरी |
8)नवांश चर राशि 50-60 किलोमीटर,स्थिर राशि 0-30 किलोमीटर तथा द्विस्वभाव राशि 30-60 किलोमीटर |
विवाह वर्ष व मास
1)जिस वर्ष गुरु गोचर मे लग्न,चन्द्र लग्न अथवा सप्तम भाव से गुजरे या उन्हे दृस्टी दे |
2)जिस वर्ष गुरु जन्मकालीन शुक्र से 1,5,7,9भाव से गुजरे |
3)द्वितीयेश व अष्टमेश के राशि अंक जोड़कर प्राप्त राशि से जिस वर्ष गुरु का गोचर हो |
4)वर्षफल मे जिस वर्ष चन्द्र सप्तमेश के नक्षत्र मे हो |
5)चन्द्र राशि व सप्तमेश के जोड़ की राशि से गुरु का गोचर जिस वर्ष हो |
6)गोचर मे लग्नेश व सप्तमेश की युति अथवा संबंध जिस माह बने |
7)नवांश के गुरु के साथ जब सूर्य आए उस माह |
8)नवांश मे गुरु- शुक्र की स्थिति/त्रिकोण से सूर्य भ्रमण परंतु इस सूर्य पर गुरु की दृस्टी होनी चाहिए
आइए एक उदाहरण देखते हैं |
8/2/1971 3:20 देहरादून वृश्चिक लग्न मे जन्मे इस जातक की पत्रिका मे शुक्र सप्तमेश दूसरे भाव मे हैं जिसकी दिग्बली दिशा उत्तर हैं सप्तम भाव मे मंगल व गुरु की लग्न से दृस्टी हैं वही शुक्र से सप्तम मिथुन राशि हैं जिसका स्वामी बुध हैं | इस प्रकार विवाह की नियत दिशाए उत्तर,उत्तर पूर्व तथा दक्षिण निश्चित होती हैं | विवाह उत्तर पूर्व दिशा मे हुआ |
लग्नेश लग्न मे,सूर्य शुक्र 1 से चौथे भाव तक तथा सप्तमेश दूसरे भाव मे होने से विवाह स्थानिक अथवा लोकल हुआ | लग्न तथा नवांश स्थिर होने से भी विवाह लोकल अथवा स्थानिक हुआ | नवांश स्थिर होने से दूरी 0-30 किलोमीटर तक थी |
विवाह के दिन 22/6/2003 को गुरु लग्न को दृस्टी दे रहा हैं सूर्य चन्द्र राशि से गुजर रहा हैं जिससे विवाह का महिना व दिन पता चल रहा हैं चन्द्र रेवती बुध के नक्षत्र मे हैं जो जन्म कालीन चन्द्र राशि हैं | गोचर मे लग्नेश सप्तमेश का संबंध बना हुआ हैं |
पत्नी की पत्रिका 30/11/1977 22:30 पौड़ी गढ़वाल कर्क लग्न व कर्क राशि इस पत्रिका शनि सप्तमेश दूसरे भाव मे हैं जिसकी दिग्बली राशि पश्चिम हैं सप्तम भाव पर लग्न से मंगल व चन्द्र की दृस्टी हैं सप्तमेश शनि से सप्तम राशि सिंह हैं जिसका स्वामी सूर्य हैं | इस प्रकार हमें विवाह हेतु नियत दिशा उत्तर पूर्व,उत्तर पश्चिम,दक्षिण व पश्चिम दिशा प्राप्त हुई | विवाह पश्चिम दिशा मे ही हुआ |
सूर्य चन्द्र शुक्र सप्तमेश एक से सप्तम भाव तक हैं जो विवाह दूर नहीं होने को बताते हैं नवांश का स्थिर होना तथा सप्तमेश का दूसरे भाव मे होना भी एक वजह हैं अत: रिश्ता लोकल ही लगभग 10 किलोमीटर के दायरे मे ही हुआ |
गोचर मे गुरु राशि कर्क
मे ही था जो राशि व लग्न दोनों हैं | गुरु की जन्म कालीन शुक्र पर दृस्टी हैं वही लग्नेश का सप्तमेश
से संबंध भी बना हुआ हैं |
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