शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017

शनि का दीर्घ प्रभाव


शनि ग्रह को हिन्दू व पाश्चात्य ज्योतिष मे सबसे अशुभ ग्रह कहा व माना गया हैं पृथ्वी से सबसे दूर स्थित शनि ग्रह अपनी मंद गति के कारण किसी को भी अपना दीर्घकालीन अनिष्ठ प्रभाव देने मे सक्षम माना जाता हैं | फलित के सिद्धांतो के अनुरूप ही शनि के फल भी विभिन्न लग्नों हेतु अलग अलग बताए गए हैं शनि को वृषभ,मिथुन,कन्या,तुला,मकर व कुम्भ लग्नों अथवा राशियो के लिए शुभ फल प्रदान कर्ता माना गया हैं |

उपचय भाव 3,6,10 व 11 मे जहां सभी पाप ग्रहो को शुभ माना जाता हैं शनि को योगकारक होने पर बहुत शुभ कहा जाता हैं इसी प्रकार मकर लग्न मे प्रथम भाव मे,तुला लग्न मे चतुर्थ भाव मे तथा कर्क व सिंह लग्नों मे सप्तम भाव का शनि शुभ माना जाता हैं ( यहाँ इन भावो मे शनि पंचमहापुरुष योग “शश” बनाता हैं )

शनि अपनी दशा अंतर्दशा के अतिरिक्त साढ़ेसाती मे भी अपना शुभाशुभ प्रभाव देते हैं क्यूंकी ऐसा कोई भी अन्य ग्रह नहीं करता संभवत: इसी कारण इनका भय सबसे ज़्यादा रहता हैं | शनि पर अन्य ग्रहो का प्रभाव भी उसकी अनिष्टता मे कमी लाता हैं विशेषकर गुरु व शुक्र के प्रभाव मे शनि शुभफल ज़्यादा देते देखे गए हैं |

शनि को रुकावट व बाधाओ का कारक माना जाता हैं ऐसा इनकी दृस्टी के कारण होता हैं यह कुंडली मे जिस भाव को देख रहे होते हैं उस भाव के कारकत्वों मे हानी अवश्य करते हैं,गोचर मे भी इनकी दृस्टी जिस भाव पर पड रही होती हैं उसकी हानी ज़रूर होती हैं | इनकी दृस्टी का सबसे ज़्यादा प्रभाव क्रमश: स्वयं से दशम,सप्तम व तृतीय भाव पर होता हैं |

जो ग्रह शनि के द्वारा देखा जा रहा होता हैं उसके कारकत्वों मे भी कमी अवश्य होती हैं शनि यदि सूर्य को देखे तो संघर्षमयी जीवन,पिता से तनाव व वैचारिक मतभेद,चन्द्र को देखे तो जीवन के आनंद,खुशी मे कमी व माता को कष्ट तथा आर्थिक तंगी,मंगल को देखे तो क्रूर,अविश्वासी तथा जोखिम लेने का शौकीन,बुध को देखे तो जड़त्व बुद्दि वाला,गुरु को देखे तो नैतिकता मे समझौते,कानून जानने वाला, शुक्र को देखे तो विवाह सुख मे कमी या देरी,जैसे फल जातक को मिलते हैं |

शनि के फलकथन मे 2 बातें हमेशा ध्यान मे रखनी चाहिए साढ़ेसाती व राहू दशा मे शनि की स्थिति,साढ़ेसाती के समय शनि चन्द्र राशि के अलावा चन्द्र राशि के आगे पीछे के 2 भाव भी प्रभाव मे ले लेते हैं इस समय यदि सूर्य,चन्द्र,मंगल की दशा अंतर्दशा भी चल रही हो तो जातक विशेष को बहुत कष्ट मिलते हैं ऐसे मे शनि एक साथ कई भावो पर असर डालकर जातक विशेष को बुरी तरह प्रभाव मे ले लेते हैं यदि प्रथम साढ़ेसाती होतो प्रभाव और भी भयानक मिलते हैं | उपरोक्त 6 लग्नों मे साढ़ेसाती के अतिरिक्त यदि दशा भी शुभ होतो जातक को बहुत शुभता भी प्राप्त होती हैं |


अपनी दशा के अलावा शनि का विशेष प्रभाव राहू दशा मे भी देखने को मिलता हैं इसका अनुपम उदाहरण हिटलर की पत्रिका मे देखने मे आता हैं जिसकी तुला लग्न की पत्रिका मे शनि दशम भाव मे कर्क राशि पर हैं हिटलर पर राहू दशा 1928 से 1946 तक रही जो की हिटलर के जीवन की सर्वश्रेष्ठ दशा रही इस दौरान हिटलर ने सबसे ज़्यादा ऊंचाई पायी शनि मंगल के संबंध से जातक ने क्रूरता की नई मिसाल कायम कर विश्व भर मे अपना डंका बजवाया परंतु शनि के राहू से दूसरे (मारक) भाव मे होने से हिटलर का अचानक अंत भी हुआ ( शनि आयुकारक माना जाता हैं ) राहु  की दशा हिटलर के जीवन को पूर्णता प्रदान नहीं करती यहाँ शनि उसके जीवन को पूर्ण करता हैं |     

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