शनिवार, 30 नवंबर 2024

लाल किताब द्वारा मंगल अशुभ के उपाय

1)प्रातः काल हर रोज जल से दांत साफ करने से मंगल का उत्तम फल होगा |

2)वट अथवा बरगद के वृक्ष को मीठा दूध (दूध में चीनी मिलाकर) डाले, वृक्ष के नीचे की दुध से भीगी मिट्टी का तिलक करें (पेट की खराबियों को दूर करने के लिए)

3)आग की घटनाओं के समय चीनी की खाली बोरियां मकान या दुकान फैन्ट्री की छत पर रखे ।

4)फोड़े-फुन्सी निकलते रहते हो तो देसी चीनी (शक्कर) फोड़े-कुन्नी के मुह पर लगाये |

5)मिट्टी का बर्तन शहद से भरकर बाहर शमशान में दबाये (निःसंतान होने के समय या स्त्री-संतान को कष्ट के समय))

6)चांदी का चौरस टुकडा हमेशा अपने पास रखें ॥

7)मकान का कोई भी दरवाजा दक्षिण दिशा में हो तो लोहे से कील देवे

8)काले-काने निःसंतान, अंगहीन, गंजे व्यक्ति से दूर रहे ।

9) मंगल के मित्र ग्रहों (बृहस्पति, सूर्य और चन्द्र) को कायम करे ।

बृहस्पति - सोना, बुजुर्ग, साधु, पुखराज आदि |

चन्द्र - कुंआ, घोड़ा, चांदी, मोती, आदि |

10) चिड़े-चिडियों को मीठा देवे |

11) हाथी दांत पास रखें शुभ फल होगा (जब राहु तृतीय भाव में न हो)

12) चांदी का कड़ा बिना जोड़ तांबे की कील लगवा कर पहने (पुरुषों के लिये)

13) चांदी की चूड़ी बिना जोड़ लाल रंग करके बायें हाथ में पहने (स्त्रियों के लिये ।

शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

मंगलीक होने के बिना भी मंगल अशुभ प्रभाव क्यों देता है ?

1. जब मकान की जमीन मे 3 या 13, 8 या 18 कोण हो ।

2. मकान के अन्दर तहखाना बन्द किया हो या तहखाने को कुएं के साथ मिलाया गया हो ।

3. मकान का मुख्य दरवाजा दक्षिण दिशा में होगा ।

4.मकान से बाहर निकलते समय आग दायें और पानी बायें हाथ पर होगा ।

5 मकान के ऊपर वृक्ष का साया, कीकर या बेरी का वृक्ष आगन में या मकान के पिछवाड़े होगा ।

6 मकान की दीवार में या मकान के साथ लगा हुआ पीपल का वृक्ष होगा |

7 मकान के दायें-बाये आग से सम्बन्धित काम (भड़भूजे की भट्टी/बेकरी/हलवाई की दुकान/भट्टी वाला कारखाना या शमशान घाट) मकान में या साथ होंगे ।

8. किसी निःसंतान से मकान की जमीन या बना बनाया मकान खरीद कर या मुफ्त मिला हुआ हो, उसमें रहना ।

9.मकान ऐसी जगह बना होगा जिसमें सीधी हवा आकर टकराती होगी या दक्षिण दिशा में खिड़किया, दरवाजे या रोशनदान होंगें ।

10. सड़क-गली के रास्ते को छत कर बनाया हुआ मकान होगा ।

11. कुएं पर छत डाल कर या कुएं में भरती-मलबा आदि डालकर उस पर मकान बनाया हुआ होगा ।

12. जातक अय्याश तबीयत हो तो कम अक्ल होगा, कम समझने वाला, आयु भर गुलामी में गुजारेगा ।

 

 

गुरुवार, 28 नवंबर 2024

मांगलीक दोष के परिहार एवं अपवाद के 60 योग


1)कुण्डली में मंगल दोष देखने के लिऐ लग्न व चन्द्रमा से मंगल व शुक्र स्थिति पर विचार करना चाहिए ।

2)लड़के व लड़की दोनों की कुण्डली में मंगल (1-2-4-7-8-12) कहीं भी हो तो मंगली दोष नहीं होता है ।

3)जिन भावों में मंगल होने से मंगली दोष होता है, उन्हीं भावों में (1-2-4-7-8-12) कहीं भी यदि शनि ग्रह हो तो मंगलदोष नहीं होता है ।

4)यदि सातवें घर का कारक शुक्र पाप ग्रहों से युक्त दृष्ट न हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

5)यदि शुक्र शुभ स्थिति में हो. और शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तों मंगली दोष नहीं होता ।

6)मंगल दूसरे घर में हो और दूसरे घर में मिथुन व कन्या राशि हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

7)मंगल चौथे घर में हो और चौथे घर में मेष या वृश्चिक राशि हो तो मंगली दोष नही होता ।

8)मंगल सातवें घर में कर्क राशि में हो तो मंगल दोष नहीं होता ।

9)मंगल आठवें घर में धन या मीन राशि में हो तो मंगल दोष नहीं होता ।

10)मंगल बारहवें घर में वृष या तुला राशि में हो तो मंगल दोष नहीं होता ।

11)राहु यदि शुभ राशि में व शुभ ग्रहों के साथ केन्द्र त्रिकोण आदि में होकर मंगल को देखता हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

12)सातवें घर का स्वामी बलवान हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

13)गुरु सातवें घर में हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

14)सातवें घर में शनि व शुक्र हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

15)शुभ ग्रह से युक्त व वृष तुला में स्थित शुक्र यदि मंगल को देखें तो मंगली दोष नहीं होता ।

16)उक्त योग न पडे, किंतु कुण्डली में चन्द्र गुरु शनि शुक्र बलवान हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

17)यदि लग्न में मकर, मेष, सिंह व वृश्चिक राशि हो तो मंगल दोष नहीं होता हैं |

18) दि दूसरे, चौथे, सातवें, आठवें, बारहवें घर में कोई भी मेष, सिंह, वृश्चिक व कर्क राशि हो तो मंगल दोष नहीं होता ।

19)सातवें घर का स्वामी कोई भी ग्रह यदि शुक्र के साथ हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

20)1-4-5-7-9-10 (लग्न केन्द्र त्रिकोण) में गुरु, शुक्र बलवान हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

21)सातवें घर का स्वामी बलवान होकर शुभ ग्रह दृष्ट हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

22)मंगल को शनि ग्रह देखे या इनकी युति हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

23)दूसरे व सातवें घर में शुभ ग्रह बलवान हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

24) लग्न मे शुभ ग्रह उच्च का व स्वक्षेत्री हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

25)बलवान शुक्र 1-2-4-7-12 भाव में हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

26)शुक्र छठे व बारहवे भाव में मीन वृष व तुला राशि का हो तो मंगली दोष नहीं होता ।

27)यदि जन्म राशि मैत्री हो और तीस से अधिक गुण मिलते हो तो भी मंगली दोष का निवारण होता है ।

28)यदि मंगल शत्रु क्षेत्री हो अथवा अस्त हो तो मंगली दोष का विचार नही करना चाहि|

29)यदि धन स्थान में चन्द्रमा और शुक्र की युती हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है |

30)यदि केन्द्र में चन्द्रमा और मंगल की युती हो तो मंगल शान्त हो जाता है ।

31)बली गुरु शुक्र लग्न या ७ भाव में हो तो भी भौम दोष नहीं रहता ।

32)यदि कन्या की कुंडली में जहां मंगल हो, उसी स्थान पर वर की कुण्डली में कोई प्रबल पाप ग्रह हो तो भौम दोष नहीं रहता ।

33)मेष राशि का मंगल लग्न में या वृश्चिक राशि का मंगल ४ भाव में या मकर का सातवें या कर्क का आठवे या धनु राशि का मंगल १२ वे हो तो भौम दोष नहीं रहता |

34)दूसरे भाव में चन्द्र शुक्र हो, मंगल गुरु की युति हो या गुरू पूर्ण दृष्टि से मौन को देखता है केन्द्र भाव में राहु अथवा मंगल राहु कहीं इकट्टठे हो ।

35)केन्द्र त्रिकोण में शुभ ग्रह तथा 3-6-8-11 वें भाव में पाप ग्रह हो तो भी न दोष शान्त हो जाता है ।

36)वक्री नीच, अस्त अथवा शत्रु क्षेत्री मंगल 1-4-7-8-12 वे भाव में हो तो भी मंगल दोष नहीं रहता है ।

37)मंगल, गुरु साथ हो अथवा चंन्द्र, मंगल साथ हो |

38)चन्द्र 1-4-7-10 भाव में हो |

39)राहु दशम स्थान में एवं शनि एकादश भाव में हो। शनि लग्न से 1-4-7-8-12 वे भाव में हो ।

40)लग्न से गुरु 1-4-5-7-9 अथवा 10 में भाव मे हो ।

41)शनि - मंगल एक साथ हो अथवा मंगल पर शनि की पूर्ण दृष्टी हो ।

42)राहु षष्टम भाव मे हो ।

43)मेष तथा सिंह लग्न वाला मंगलिक नहीं होता |

44)मंगल सूर्य के साथ - अस्त मंगल दोष हीन होता है ।

45)7वें स्थान में गुरु 4-9-12 अंको के साथ शुक्र ।

46)7वें भाव मे 2 या 7 अंक के साथ अकेला शुक्र ।

47)वधु की कुण्डली में जिस राशि या अंक के साथ चन्द्रमा हो तथा वर की कुण्डली ने उसी राशि या अंक के साथ मंगल हो ।

48)शनि मंगल 1-2-4-7-8-12 भावों में एक साथ हो |

49)मंगल शुक्र की युति या दृष्टि हो ।

50)कर्क लग्न वाला मंगलिक नही होता |

51)सिंह लग्न वाला भी मंगल दोष से हीन है ।

52)वृष लग्न में मंगल 12 या 4 और प्रथम भाव में ।

53)तुला लग्न में मंगल 12-4-1 भाव में मंगल का दोष नहीं होता ।

54)राहू 1-4-7-10 भाव में |

55)मंगल और राहु की युति हो ।

56)मंगल चर राशि (1-4-7-10) में कुज दोष नहीं होता ।

57)मंगल सिंह राशि और कुंभ राशि में स्थिति मंगल का दोष नहीं होता ।

58)मंगल द्वारा रूचक योग होने पर मंगल दोष नहीं होता |

59)मंगल अश्विन, मघा तथा मूल नक्षत्र में मंगल दोष नही होता ।

60)सूर्य और चन्द्र के क्षेत्र (सिंह और कर्क राशि) में जिस जातक का जन्म हुआ है उस को मंगल का दोष नहीं रहता |

 

बुधवार, 27 नवंबर 2024

मंगल दोष कब नहीं होता ?


स्वोच्चमित्रभजातानां पीडको न भवेत्कुज:

मंगल अपनी राशि (मेष और वृश्चिक राशि), उच्च राशि (मकर राशि) और मित्र राशि में (सूर्य, चन्द्र, गुरु) उत्पन्न जातक या जातिका को मंगल कष्ट नहीं देता है |

कुजो जीव समायुक्तो युक्तो वा शशिना यदा

चन्द्रः केन्द्रगतो वाऽपि तस्य दोषो न मंगली ।

जन्म कुण्डली में मंगल गुरु के साथ बैठा हो अथवा चन्द्रमा के साथ हो या चन्द्रमा केन्द्र स्थित हो तो उस मंगल को मंगली दोष वाला नहीं कहा जाता ।

केन्द्रे कोणे शुभाढयश्चेत त्रिषडायेऽप्यसग्रहाः

तदा भौमस्य दोषो न मदने मदपस्तथा ।

(1-4-7-10) केन्द्र में और त्रिकोण (9-5) में यदि शुभ ग्रह हो तथा 3-6-11 में पापग्रह हो और सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में हो तो मंगल दोष नहीं होता ।

भौमस्थितेशे यदि केन्द्रकोणे तद्दोषनाशं प्रवदन्ति सन्तः ।

मंगल अनिष्ट भाव में रहने पर भी उस भाव अर्थात् भौमाधिष्टित राशि का स्वामी यदि केन्द्र या त्रिकोण में हो तो मंगलिक दोष नहीं होता ऐसा आचार्यगण कहते हैं ।

लग्ने शुक्रेन्दु सौम्येज्या भौमदोषनिवारका: ।

यदि शुक्र, चन्दमा, बुध तथा बृहस्पति लग्न भाव में बैठे हों तो वे मंगल के दोष का निवारण करते हैं |

न मंगली चन्दभृगू द्वितीये न मंगली पश्यति यस्य जीवः ।

न मंगली मंगल राहु योगे न मंगली चन्द्रगतश्च केन्द्रे ।

यदि दूसरे भाव में चन्द्र शुक्र हो, मंगल बृहस्पति की युति हो या बृहस्पति पूर्ण दृष्टि से मंगल को देखता है केन्द्र भाव में राहु अथवा मंगल राहु कहीं इकट्ठे हों तो मंगल दोष नही होता ।

गुरुमंगलसंयोगे भौम दोषों न विद्यते ।

चन्द्रमंगलसंयोगे भौमदोषो न विद्यते |

गुरु और मंगल का संयोग होने पर या चन्द्र और मंगल का संयोग होने पर मंगल का दोष नहीं रहता है ।

राशि मैत्रं यदायाति गवैक्यं वा यदा भवेत

अथवा गुण वाहुल्ये भौम दोषो न विद्यते |

राशि मैत्री हो, गुण भी एक हो या तीस से अधिक गुण मिलते हों तो मंगल दोष का विचार नहीं करना चाहिए ।

वाचस्पतौ नव पंचम केन्द्र-सस्थे जाताड गना भवति पूर्ण विभूति युक्ता ।

साध्वी सुपुत्र जननी सुखिनी गुणाढ्या, सप्ताष्टक यदि भवेदेशभग्रहोऽपि ।

यदि कन्या की जन्म कुण्डली में (1-4-7-8-12) वे घर में मंगल हो और केन्द्र त्रिकोण (1-4-7-9-10-5) दे में बृहस्पति हो तो मंगली दोष न होकर वह कन्या सुख -सौभाग्य सम्पन्न रहती है ।

दोषकारी कुजो यस्य बलीचेदुक्तदोष कृत् ।

दुर्बल: शुभद्दष्टो वा सूर्येणास्तड.गतोऽपि वा ।

युद्धे पराजितो वाऽपि न दोषं कुरुते कुजः ।

सर्वदा दोषकर्तृत्वे दोषमेव करोति सः ।

जन्मांग में मंगल अनिष्ट स्थान में से किसी एक स्थान में. जब बलवान् होकर पड़ा रहेगा तभी वह दोषकारी होगा अन्यथा दुर्बल होने पर अथवा शुभग्रह से दृष्ट होने पर किंवा सूर्य के साथ अस्तंगत हो जाने आदि अवस्था में मंगल दोषकारी नहीं होता |

शुभ योगादिकर्तृत्वे नाऽशुभं कुरुते कुजः ।

कुजः कर्कटलग्नस्थो न कदाचनदोषकृत ।।

नीचराशिगतः स्वस्य शत्रुक्षेत्रगतोऽपि वा ।

शुभाशुभफलं नैव दद्यादस्तड़गतोऽपि च ।।

शुभ ग्रहों के साथ सम्बन्ध करने वाला मंगल अशुभ नहीं करता । कर्क लग्न में स्थित मंगल कभी भी दोषकारी नहीं होता । मंगल यदि अपनी नीच राशि में स्थित हो अथवा शत्रुक्षेत्र हो किंवा अस्तड गत हो तो शुभ वा अशुभ कोई फल नहीं देता |

तनु धन सुख मदनायुर्लाभव्ययगः कुजस्तु दाम्पत्यम् ।

विघटयति तंदहेशो न विघटयति तुड्ग मित्रगेहे वा । ।

जन्मांग में (1-2-4-7-8-12) इन में से किसी एक स्थान में मंगल बैठा हो तो वह वर वधु का वियोग करता है, किन्तु यदि वह मंगल स्वगृही हो या उच्च राशि का हो या मित्र क्षेत्री हो तो वह उक्त दोषकारक नहीं होता ।

क्षेत्रोच्वंसस्थिता लगने अशुभास्ते शुभप्रदा:

जन्म कुण्डली में यदि पापग्रह अपनी अपनी राशि में हो या अपनी-अपनी उच्च राशि में हो तो वे भी शुभ फल को देते हैं ।

लग्नद्विधो र्वा यदि जन्मकाले शुभग्रहो वा मदनाधिपो वा ।

द्यूनस्थितो हन्त्यनपत्य दोषं वैधव्यदोपच्त्र विषाड्गनोत्थम् । ।

यदि किसी कन्या की कुण्डली में जन्मलग्न से या जन्म समय की नाम राशि से सप्तम स्थान में उसका स्वामी बैठा हो अथवा अन्य कोई शुभ ग्रह बैठा हो तो उस कन्या का अनपत्य दोष, वैधव्य दोष और विषकन्या दोष नष्ट हो जाते हैं ।

गुरुशुक्रविदामेको यदि केन्द्रत्रिकोणग: ।

शशी वर्गोत्तमें पूपोपान्त्ये वाऽशेषदोषनुत् । ।

बृहस्पति शुक्र और बुध में से कोई एक केन्द्र या त्रिकोण में रहे, चन्दमा वर्गोत्तम रहे और सूर्य ११वें भाव में रहे तो समस्त दोष को नाश करने वाला कहा जाता है ।

वागम्बुकन्दर्पमृतिं व्ययस्थे कुजे तु पूणिग्रहणं न कुर्यात् ।

बुधार्ययुक्तेऽप्थ वा निरीक्षिते तद्दोपनाशं प्रवदन्ति सन्तः । ।

(1-4-7-8-12) इन भावों में से किसी एक भाव में यदि मंगल बैठा हो तो विवाह नहीं करना चाहिए परन्तु वह मंगल, बुध और गुरु से युक्त हो या इनसे दृष्ट हो तो मंगल का दोष नहीं लगता ।

दम्पत्योर्जन्म काले व्ययधनहिबुके सप्तमे रनातने ।

लग्नोच्चन्द्राच्चशुक्रादपि सतु निक्सर भूमि पुत्रस्तयोश्च

दाम्पत्यं दीर्घकालं सुतधनबहुलं पुत्रलाभश्च सौख्यं ।

दद्यादेकत्रहीनो मृतिमखिलभयं पुत्रनाशं करोति ।।

जिस कुमार और कुमारी दोनों की कुण्डली में लग्न से, चन्द्र से और शुरू से (1- 2-4-7-8-12) इन स्थानों में से किसी एक स्थान में यदि मंगल समान प्रकार से बैठा हो तो उन दोनों को दाम्पत्य सुख चिरकाल तक प्राप्त होता है और धन-धान्य पुत्र पौत्रादि से वे दोनों सुखी रहते हैं, परन्तु यदि कुमार और कुमारी इनमें से किसी एक ही कुण्डली में उक्त प्रकार का मंगल बैठा हो तो वह ऊपर लिखे इष्ट फल के सर्वधा विपरीत फल देगा ।

द्वितीये भौमदोषस्तु युग्मकन्यकयो विना ।

द्वादशे भौमदोषस्तु वृषतौलिकयो विना ।

चतुर्थे भौमदोषस्तु मेषवृश्चिकयो र्विना ।

सप्तमे भौभदोषस्तु नक्रकर्कटयो विना ।

अष्टमे भौमदोषस्तु धनुर्मीनइयो विना ।

कुंभे सिंहे न दोषः स्या द्विशेषेणकुजस्य च ।।

द्वितीय भाव यदि मिथुन और कन्या का हो, व्यय भाव में वृष और कर्क का हो. चतुर्थ भाव मेष और वृश्चिक का हो, सप्तम भाव मकर और कर्क का हो और अष्टम भाव धन तथा मीन का हो उन उन भावों में बैठा हुआ मंगल का दोष नहीं लगता और कुंभ-तथा सिंह राशि यदि अनिष्ठ स्थान की होवे तो उस स्थान में भी बैठ मंगल का दोष नहीं लगता |

लग्नेन्दुशुक्राद्दुःस्थाने यद्यस्ति क्षितिसम्भवः ।

तदङ्गापाकसमये दोषमाहु र्मनीषिणः ।।

जन्म कुण्डली में लग्न से अथवा चन्द्रमा से या शुक्र से अनिष्ट स्थान में यदि मंगल हो तो उसकी दशा में उसका फल मिलता है । ऐसा विद्वानों का कहना है ।

अन्योऽय बाघको स्थात कुण दोषानुभावपि ।

वलसाम्ये तु दाम्पत्यं क्षेमाय परिकल्पितम् ।।

स्त्री-पुरुष दोनों की जन्मांग में यदि समान बल वाला दोनों मंगल बाधक हो तो वह दाम्पत्य को कल्याणमय बना देता है ।

चरराशिगते भौमे चतुरट व्यये ये ।

तदा स शुभदः प्रोक्तः शेषाः पापा विशेषतः ।।

लग्न से, चन्द्र लग्न से, शुक्र लग्न से 2-4-8 और 12 वें स्थान में मंगल के रहने पर भी यदि वह चर राशि (1-4-7-10) में स्थित है तो वह शुभ फल देने वाला कहा गया है, चर राशि से भिन्न अनिष्ट स्थान स्थित मंगल विशेष दोषी कहा गया है ।

सभानुरिन्दुः शशिजश्चतुर्थं गुरुः सुते भूमिसुतः कुटुम्बे ।

भृगुः सपत्ने रविजः कलत्रे विलग्नतस्ते विफला भवन्ति ।।

सूर्य सहित चन्द्रमा और बुध चतुर्थ भाव में पंचम भाव में गुरु, द्वितीया गाव में मंगल षष्ठ भावमें शुक्र, सप्तम भाव में शनि यदि होवें तो अनिष्ठ फलद है और वे ही यदि विरोधी लग्न में हो वे तो निर्दोष बन जाते हैं ।

गुरुरेकोऽपि केन्द्रस्थः शुक्रो वा यदि वा बुधः ।

हरे: स्मृतिर्यथा हन्ति तद्वद्दोपानकालजान् ।

जिसकी जन्म कुण्डली में अकेला गुरु और केन्द्र में हो या शुक्र या बुध रहें तो जैसे हरि के स्मरण से समस्त पापों का नाश होता है, उसी तरह केन्द्रस्थ बृहस्पति, शुक्र और बुध अकाल जन्य समस्त दोष को नाश करते हैं ।

अस्तगे नीचगे भौमे शत्रुक्षेत्रगतेऽपि वा ।

कुजाष्टमोग्दवो दोषो न किच्त्रिदवशिष्यते ।।

मंगल के अस्तंगत होने पर या नीच राशि गत होने पर या शत्रु क्षेत्र गत होने पर उस मंगल का अष्टम जन्य दोष नहीं लगता ।