कई व्यक्ति
प्रश्न करते हैं कि अन्य व्यायाम जैसे-सैर, दंड-बैठक, मुगदर
घुमाना, मल्लयुद्ध या फिर पश्चिमी देशों के खेलों
आदि में क्या दोष है और योगासनों में ऐसी क्या विशेषता है जो उसे ही जीवन का अंग
बनाया जाए ।
नीचे दिये तथ्य
अपने में इस प्रश्न के सभी उत्तरो
को समेटे हुए है कि "आखिर योगासन ही क्यों ?
1. अन्य व्यायाम
मुख्यत: मांसपेशियों
पर ही प्रभाव डालते हैं, जिससे बाहरी शरीर ही बलिष्ठ दिखाई देता
है, इससे अंदर काम करने वाले यंत्रों पर उतना प्रभाव नहीं
पड़ता, फलस्वरूप व्यक्ति अधिक देर तक स्वस्थ नहीं रह
पाता, जबकि योगासनों से व्यक्ति की आयु लम्बी होती है,
विकारों को शरीर से बाहर करने की अदभुत शक्ति प्राप्त होती है और शरीर की कोशिकाए बनती अधिक व टूटते कम
हैं |
2. अन्य व्यायाम
व खेलों के लिए स्थान व साधनों की आवश्यकता पड़ती है खेल तो साथियों के बिना खेले
ही नहीं जा सकते जबकि
योगासन अकेले ही दरी द चादर पर किये जा सकते हैं ।
3. दूसरे
व्यायामों का प्रभाव मन और इन्द्रियों पर बहुत कम पड़ता है, जबकि
योगासनों से मानसिक शक्ति बढ़ती है और इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति आती है ।
4 दूसरे
व्यायामों में अधिक खुराक की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए अधिक
खर्च करना पड़ता है, जबकि योग में बहुत कम भोजन की आवश्यकता
होती है ।
5. योग आसनो से शरीर की
रोगनाशक शक्ति का विकास होता है, जिससे शरीर किसी भी विजातीय द्रव्य को
अंदर रूकने नहीं देता, तुरंत बाहर निकालने का प्रयत्न करता है,
जिससे आप रोगमुक्त
होते हैं ।
6. योगासनों से
शरीर में लचक पैदा होती है, जिससे व्यक्ति फुर्तीला रहता है,
शरीर के हर अंग में रक्त का संचार ठीक होता है । अधिक आयु में भी
व्यक्ति युवा लगता है और उस काम करने की शक्ति बनी रहती है । अन्य व्यायामों से मांसपेशियों
में कडापन आ जाता है, शरीर
कठोर हो जाता है और बुढ़ापा जल्दी आता है ।
7. जिस प्रकार
नाली की गन्दगी को झाडू लगाकर, पानी फेककर साफ करते हैं उसी प्रकार अलग अलग आसनो से रक्त
की नलिकाओं व कोशिकाओं को साफ करते हैं, ताकि उनमें
रवानगी रहे और शरीर रोगमुक्त हो । यह केवल योगासन क्रियाओं से ही हो सकता है अन्य
व्यायामों से नहीं । अन्य व्यायामों से तो हृदय की गति ही तेज होती है, रक्त
पूरी तरह से शुद्ध नहीं हो पाता ।
8. फेफड़ों के
द्वारा हमारे रक्त की शुद्धि होती है । योगासनों व प्राणायाम द्वारा हम अपने
फेफडों के फैलने व सिकुड़ने की शक्ति को बढ़ाते हैं, जिससे अधिक से
अधिक वायु फेफड़ों में भर सकें और रक्त की शुद्धि कर सकें । दूसरे व्यायामों में
फेफड़े जल्दी - जल्दी श्वास लेते है, जिससे प्राणवायु
फेफड़ों के अंतिम छोर तक नहीं पहुंच पाती, जिसका परिणाम
होता है विकार और विकार रोग का कारण है ।
9. वर्तमान समय
में गलत रहन-सहन व अप्राकृतिक भोजन के कारण पाचन संस्थान के यंत्रों का कार्य
सुचारू रूप से नहीं चल पाता । उन्हे क्रियाशील रखने में योगासन बहुत सहायक सिद्ध
होते हैं, जबकि दूसरे व्यायामों से पाचन क्रिया बिगड़
जाती है ।
10. मेरूदण्ड पर
हमारा यौवन निर्भर करता है । सारा रक्त संचार व नाड़ी संचालन इसी से होकर शरीर में
फैलता है जितनी लचक रीढ़ की हड्डी में रहेगी, उतना ही शरीर
स्वस्थ होगा, आयु लम्बी होगी, मानसिक संतुलन
बना रहेगा, यह केवल योगासनों से ही संभव है ।
11. दूसरे
व्यायामों से आपको थकावट आयेगी, बहुत अधिक शक्ति खर्च करनी पड़ेगी,
जबकि योगासनों से शक्ति प्राप्ति होती क्योंकि योगासन धीरे-धीरे और
आराम से किये जाते हैं इसलिए इन्हे अहिंसक और शांतिप्रिय क्रियाएं कहा जाता
है ।
12. अन्य
व्यायामों से मनुष्य के चरित्र पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता जबकि योगासन
स्वास्थ्य के साथ-साथ चरित्रवान भी बनाते हैं । यौगिक
क्रियाओं से मानसिक व नैतिक शक्ति का विकास होता हैं, मन स्थिर रहता
है । मन के स्थिर रहने से बुद्धि का विकास होता है । इन क्रियाओं में सत्वगुण की
प्रधानता होती है, और
सत्वगुण से मानसिक शक्ति का विकास होता है । ये लाभ केवल योगासन और प्राणायाम से
ही प्राप्त हो सकते है ।
13. हमरे शरीर
में अनेक ग्रंथियों है, जो हमें स्वस्थ व निरोग
रखने में महत्वपूर्ण कार्य करती हैं । इन ग्रंथियो का रस रक्त में मिल जाता है, जिससे
मनुष्य स्वस्थ व शक्तिशाली बनता है । गले की पैराथाइराइड ग्रंथियों से निकलने वाले
रस पर्याप्त मात्रा में न होने से बच्चों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता और युवकों
के असमय में ही बाल गिरने लगते हैं तथा शरीर से प्रसन्नता नहीं रहती । शरीर की
विभिन्न ग्रंथियों को सजग करके, पर्याप्त
मात्रा में रस देने के योग्य बनाने के लिए योगासन
पद्धति बडी कारगर है जबकि अन्य व्यायामों का प्रभाव इस दिशा में नगण्य है ।
14. शरीर के
रोगों को दूर करने में, प्राणायाम और षट्कर्म रामबाण का काम करता
है । जब विजातीय द्रव्यों के बढ़ जाने से शरीर के अंग उन्हे बाहर निकाल पाने में
समर्थ नहीं होते, तभी रोग का आरंभ
होता है । इन विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालने के लिए इन क्रियाओं का सहारा
लिया जा सकता है |