मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

गुलिक द्वारा मृत्यु का विचार

 

1)स्पष्ट गुलिक में से स्पष्ट सूर्य घटाइए,जो शेष बचे उस राशि या त्रिकोण मे गोचरवस जब शनि आता हैं तब पिता को बीमार करता है, या उनकी मृत्यु भी कर सकता हैं |

2)स्पष्ट गुलिक में से स्पष्ट सूर्य घटाइए,जो शेष राशि हो उसके नवाश में गोचरवश जब गुरु आता है तब पिता की मृत्यु हो सकती है ।

3)सूर्य स्पष्ट में यमकण्टक स्पष्ट जोडिए,जो राशि आए उसमे गोचरवश जब 'गुरु' आता है तब पिता की मृत्यु हो सकती है ।

4)सूर्य स्पष्ट में यमकण्टक स्पष्ट जोड़िए, जो राशि आवे उसको देखिए कि किस नवांश में है । उस नवांश में गोचरवश जब गुरु आता है तब पिता को मृत्यु हो सकती है ।

5)सूर्य स्पष्ट में यमकण्टक स्पष्ट जोड़िए जो लब्धि मिले, उसे देखे कि किस राशि व नवाश में है । उस राशि में या उससे नवम व पंचम जब गोचरवश बृहस्पति आता है तब पिता मृत्यु हो सकती है ।

6)यमकण्टक में से गुलिक (या मांदी) स्पष्ट घटाइए,जो शेष हो वह जिस राशि व नवांश में हो, जब उस राशि नवांश या नवम पंचम जब गोचर वश शनि” आता है तब माता की मृत्यु होती है ।

7)सूर्य स्पष्ट में से चंद्र स्पष्ट घटाइए,शेष लब्धि जिस नवांश में हो, जब गोचर वश गुरु उस राशि नवांश में आए या उससे नवम-पंचम में आए तो जातक / जातिका के माता-पिता की मृत्यु हो सकती है ।

8)जन्म नक्षत्र से पांचवें नक्षत्र का स्वामी ग्रह जो हो उसमें से यमकण्टक स्पष्ट घटाइए,जो शेष बचे, उस पर या उससे नव पंचम गोचरवश जब बृहस्पति आता है तब पुत्र की मृत्यु हो सकती है ।

9)लग्न स्पष्ट गुलिक स्पष्ट व सूर्य स्पष्ट तीनों को जोड़िए,जो जोड प्राप्त हो उसे देखिए कि लब्ध राशि का स्वामी कहां है? जब गोचरवश बृहस्पति उस स्थान में आ जाय या उससे नवम-पंचम हो तब जातक की मृत्यु होती है ।

10)गुलिक स्पष्ट को नौ से गुणा कीजिए तथा शनि स्पष्ट को भी नौ से गुणा कीजिए । दोनों गुणनफलों को जोड़िए,जो लब्धि आवे उसे देखिए कि किस नवांश में है । जब गोचरवश उस पर शनि आता है तब जातक की मृत्यु बतलायी गयी है ।

11)लग्न स्पष्ट में से यमकण्टक स्पष्ट घटाइए,लब्धि जिस राशि व नवांश में होगी, गोचरवश जब बृहस्पति उस नवांश पर आता है तो निस्संदेह तब जातक की मृत्यु हो सकती है ।

12)षष्ठेश, अष्टमेश व द्वादशेश अर्थात् तीनों के ग्रह स्पष्ट जोड़िए,जो राशि आवे उसको नवांश में देखिए । गोचरवश जब शनि उस नवांश पर आवे तब जातक की मृत्यु हो सकती है ।

13)देखिए कि गुलिक (मान्दी) किस नवांश में है । गोचरवश उस नवांश में जब बृहस्पति आवे, पुनः देखिए कि गुलिक किस द्वादशांश में है, गोचरवश उस द्वादशांश पर जब शनि आवे, पुनः देखिए कि गुलिक किस द्रेष्काण में है,उस द्रेष्काण में या उससे नवम पंचम जब सूर्य आवे तब जातक की मृत्यु होती है ।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

मुहूर्त - क्या हैं इसकी आवशयकता

एक पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि पांच पांडवों में सहदेव मुहूर्त शास्त्र के ज्ञाता थे । महाभारत के युद्ध से पहले स्वयं दुर्योधन महाराज धृतराष्ट्र के कहने पर युद्ध में कौरवों की विजय हेतु शुभ मुहूर्त निकलवाने सहदेव के पास गए और सहदेव ने उन्हें शुभ मुहूर्त बताया । इस बात का पता जब भगवान कृष्ण को चला तब उन्होंने इस मुहूर्त को टालने हेतु व पांडवों की विजय के मुहूर्त हेतु अर्जुन को मोह से मुक्त करने के लिए उपदेश दिया था । इन सारे तथ्यों का उल्लेख श्रीमद्भगवत गीता में मिलता है

अथर्ववेद में शुभ मुहूर्त में कार्य आरंभ करने का निर्देश है ताकि मानव जीवन के सभी पक्षों पर शुभता का अधिकाधिक प्रभाव पड़ सके । आचार्य वराहमिहिर भी इसकी अनुशंसा करते हैं

मुहूर्त के संदर्भ में रामचरितमानस में एक स्थान पर उल्लेख है कि युद्ध के पश्चात् जब रावण मरणासन्न अवस्था में था तब श्रीराम ने लक्ष्मण को उससे तिथि व मुहूर्त ज्ञान की शिक्षा लेने भेजा था । इस कथा से भी मुहूर्त अर्थात शुभ पल के महत्व का पता चलता है । मुहूर्त का विचार आदि काल से ही होता आया है,हमारे शास्त्रों में भी ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं जिनसे इस तथ्य का पता चलता है । श्रीकृष्ण का कंस के वध हेतु उचित समय की प्रतीक्षा करना आदि इस तथ्य को पुष्ट करते हैं । आज के इस वैज्ञानिक युग में भी वैज्ञानिक किसी परीक्षण हेतु उचित समय का इंतजार करते हैं । राजनेता चुनाव के समय नामांकन के लिए मुहूर्त निकलवाते हैं । इन सारे तथ्यों से मुहूर्त की उपयोगिता का पता चलता है ।

यहां एक तथ्य स्पष्ट कर देना उचित है कि लग्न की शुद्धि अति महत्वपूर्ण और आवश्यक है । इससे कार्य की सफलता की संभावना 1000 गुणा बढ़ जाती है ।

मुहूर्त विचार में तिथियों, नक्षत्रों, वारों आदि के फलों का मात्रावार विवरण सारणी में प्रस्तुत है ।

तिथि फल – एक गुणा

नक्षत्र फल – 4 गुणा  

वार फल - 8 गुणा

करण फल - 16 गुणा

योग फल – 32 गुणा

तारा फल – 108 गुणा

चंद्र फल – 100 गुणा

लग्न फल – 1000 गुणा

अक्सर प्रश्न पूछा जाता है कि क्या शुभ मुहर्त में कार्यारंभ कर भाग्य बदला जा सकता है? यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि ऐसा संभव नहीं है । हम जानते हैं कि गुरु वशिष्ठ ने भगवान राम के राजतिलक के लिए शुभ मुहूर्त का चयन किया था, किंतु उनका राजतिलक नहीं हो पाया । तात्पर्य यह कि मनुष्य सिर्फ कर्म कर सकता है । सही समय पर कर्म करना या होना भी भाग्य की ही बात है । कार्य आरंभ हेतु मुहूर्त विश्लेषण आवश्यक जरूर है परंतु इसी पर निर्भर रहना गलत है । यदि किसी व्यक्ति को शल्य चिकित्सा करानी पड़े तो वह मुहूर्त का इंतजार नहीं करेगा क्योंकि मुहूर्त से ज्यादा उसे अपनी जान व धन इत्यादि की चिंताएं लगी रहेंगी परंतु मुहूर्त के अनुसार कार्य करने से हानि की संभावना को तो कम किया ही जा सकता है ।

प्रस्तुत लेख फ्यूचर समाचार नामक पत्रिका के नवंबर 2009 के अंक मे छपा था |  

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

आप और आपकी बिंदिया


साज-शृंगार स्त्री जीवन का अभिन्न अंग है । एक खूबसूरत स्त्री का चेहरा सभी को लुभाता है और इसमें माथे के  केंद्र में लगी बिंदी इसमें चार चांद लगा देती है । सभी शादीशुदा स्त्रियां प्रायः बिंदी लगाती हैं, ऑफिस वेस्टर्न कपड़े पहनने वाली स्त्रियां भी इण्डियन वियर के साथ बिंदी का प्रयोग जरूर करती हैं । भारतीय संस्कृति मे इसका प्रयोग सदियों से चला आ रहा है और इसे बहुत शुभ भी माना गया है । आज बाजारों में विभिन्न आकारों और डिजाइनों में बिंदियां उपलब्ध हैं । सभी महिलाएं अलग-अलग प्रकार की बिंदियां लगाना पसंद करती हैं । कोई लंबी पतली लगाती हैं तो कोई छोटी लाल बिंदी ही लगाती हैं । कोई मैचिंग रंग बिरंगी बिंदी लगाती है कोई बड़ी गोल बिंदी लगाती हैं ।

आइए जानते हैं कि किस लग्न की स्त्री को किस तरह की बिंदी लगाना पसंद हैं |

मेष - मेष राशि / लग्न की महिलाओं को सौंदर्य और कला काफी लुभाती है इसलिए युवावस्था में ये तरह-तरह की डिजाइन वाली बिंदियां लगाना पसंद करती हैं । इनकी बिंदी की खास बात यह है कि यह उनके परिधान से मैचिंग होती है । फिर धीरे-धीरे उम्र के साथ यह अपने स्टाईल सेट कर लेती हैं और उसी तरह की बिंदी लगाती हैं ।

वृष - वृषभ लग्न की स्त्री होने के कारण आप स्वभाव से सरल होती हैं । आप ज्यादा फैशनपरस्त नहीं होती हैं । आपको बहुत छोटी व साधारण रंग-बिरंगी बिंदियाँ लगाना पसंद होता है जो कि ज्यादा पारंपरिक न हो । आप परिधान से मेल खाती हुई रंग बिरंगी छोटी बिंदियां लगाना पसंद करती हैं ।

मिथुन - मिथुन लग्न होने के कारण आप शर्मीली और मेहनती स्त्री हैं । मिथुन लग्न की महिलाएं भिन्न-भिन्न तरह की बिंदियां लगाती हैं, यानि लिक्विड बिंदी से तरह-तरह की आकृतियां बनाना, दो-तीन रंग की बिंदियों को एक के ऊपर एक लगाकर डिजाइन बनाना इन्हीं की पहचान है । एक छोटी एक बड़ी, एक लंबी. एक गोल, इस तरह की बिंदियों में ज्यादा नज़र आती हैं |

कर्क - कर्क लग्न की महिला होने के कारण आप एक भावुक और अदभुत काल्पनिक क्षमता से युक्त हैं । आपका चेहरा लंबा और गोरा होता है इसलिए आप लाल बिंदी, जो कुछ मध्यम से बड़ी आकृति की हो उसे लगाना पसंद करती हैं । अधिकतर लाल या मेरून रंग में सजी अंडाकार या गोल बिंदी ही आपको पसंद आती हैं आपकी बिंदियां अधिकतर एक बॉर्डर लिए रहती हैं जो आपकी एक दायरे में सीमित रहने वाली सोच दर्शाता है ।

सिंह - सिंह लग्न की महिलाएं एक मध्यम आकार की बिंदी लगाना पसंद करती हैं और इनको छोटी लाल बिंदी भी खूब लुभाती है । आकर्षक और अंडाकार चेहरा होने के कारण इन्हें ऐसा स्टाईल सूट भी बहुत करता है । विशेष अवसरों पर आप लाल मेरून रंग की गोल्डेन बॉर्डर वाली बिंदी लगाना पसंद करती हैं ।

कन्या - आपका स्वभाव भावुक होता है और आत्म विश्वास में कुछ कमी सी रहती है जिसे आप दूसरों से झलकाना नहीं चाहतीं । कन्या लग्न की स्त्री का माथा अधिकतर बड़ा होता है इसी कारण आप बड़ी-बड़ी गोल बिंदियां लगाना पसंद करती है । काफी बड़ी आकृति की बिंदी लगाना आपको औरों से अलग दिखाता है आप रंग-बिरंगी गोल और अंडाकार बिंदियां लगाना पसंद करती हैं |

तुला  - आप एक पॉजिटिव सोच की स्त्री हैं जो जिंदगी में प्रायः सभी कार्यों को अपनी सोच समझ के अनुसार नाप-तौल कर ही करती हैं । सुलझा व्यक्तित्व और मिलनसार स्वभाव होने के कारण आप प्रायः छोटी काली बिंदी ही लगाना पसंद हैं । आपको बेहद स्टाईलिश परिधान पहनना पसंद है इसलिए काला रंग सभी के साथ खूब खिलता भी है ।

वृश्चिक - आप खुले विचारों वाली रिसर्च दिमाग की स्त्री हैं इसी कारण आप नये-नये तरह की बहुरंगी गोल बिंदियां लगाना पसंद करती हैं । इनका साइज मध्यम होता है । आपको नयी चीजें बेहद पसंद होती हैं । आपका लग्न स्वामी मंगल होने के कारण आपको ब्राइट रंग की बिंदियां ही पसंद आती हैं ।

धनु - आप एक बुद्धिमान और फिलोसॉफिकल विचार की स्त्री हैं । आपको मध्यम आकार की छोटी बिंदियां ही पसंद हैं । आप अपने स्टाईल में ज्यादा बदलाव लाना भी पसंद नहीं करतीं और ये छोटी लाल एवं सुनहरी बिंदी आपके आध्यात्मिक व्यक्तित्व को खूब शोभा देती हैं ।

मकर - आप व्यावसायिक प्रवृत्ति की स्त्री हैं जिन्हें सजने संवरने का शौक कुछ कम होता है जिसके कारण आपको सिम्पल और साफ चेहरा पसंद होता है । वैसे तो आप बिंदियां लगाना ही कम पसंद करती हैं और अगर लगाती भी हैं तो सबसे छोटे आकार की ।

कुंभ - आप मिलनसार स्वभाव की स्त्री हैं और जिंदगी में प्रायः सभी चीजों को प्लान करके आगे बढ़ने में विश्वास करती हैं । काला, नीला रंग आपको खासा पसंद है,आप लंबे आकार की मल्टी कलर्ड, सिंपल दिखने वाली बिंदी पसंद करती हैं । लाल रंग आपको कुछ कम पसंद होता है ।

मीन - मीन लग्न की स्त्री का स्वभाव चंचल और परिवर्तनशील होता है जिसके कारण आपको तरह-तरह की आकारों की छोटी-बड़ी बिंदियां लगाना पसंद होता है । बदलते फैशन और नये-नये स्टाईल आपको किसी एक स्टाईल तक सीमित नहीं रहने देता और आप हर बार एक नया लुक धारण करती हैं और यही एक मीन लग्न की महिला की पहचान है ।

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

जानिए ज्योतिष के नजरिए से रोग के उपचार

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर बीमारी का संबंध किसी न किसी ग्रह से है, जो आपकी कुंडली में या तो कमजोर है, या फिर दूसरे ग्रहों से बुरी तरह पीड़ित है । इसी प्रकार काल पुरुष की कुंडली में मनुष्य शरीर के सभी अंगों को 12 भावों में बांटा गया है । इन 12 भावों में कालपुरुष की 12 राशियां आती हैं जिनके स्वामी 7 ग्रह हैं तथा छाया ग्रहों राहु-केतु के प्रभाव भी अति महत्वपूर्ण हैं । साथ ही 27 नक्षत्रों का प्रभाव भी मनुष्य शरीर के सभी अंगों पर बराबर बना रहता है । इनके स्वामी ग्रह भी ये ही 7 ग्रह हैं अर्थात् सारांश रूप से यह कह सकते हैं कि शरीर के सभी अंगों को 12 भाव/राशियां, 9 ग्रह व 27 नक्षत्र संचालित करते हैं ।

यदि चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से देखें तो इसमें भी शरीर के सारे अंग आ जाते हैं जिनका चिकित्सा की दृष्टि से दवाई द्वारा उपचार करना है जबकि कुंडली में अंगों का उपचार औषधि की बजाय ज्योतिष से होता है । इन दोनों में सामंजस्य बैठाना ही काल पुरूष की कुंडली का चिकित्सा विज्ञान में प्रयोग करना कहते हैं।

चलिए अब आपको बताते हैं काल पुरूष की बारह राशियां और उनसे होने वाले संबंधित रोग के बारे में ।

1. मेष - सिर दर्द, मानसिक तनाव, मतिभ्रम, पागलपन, उन्माद, अनिद्रा, मुख रोग, मेरूदंड के रोग, अग्नि जनित रोग ।

उपाय : मेष राशि वाले जातक को प्रतिदिन रात को त्रिफला चूर्ण भिगोकर सुबह उसे छानकर निराहार पियें और लाल रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर 5-7 घंटे धूप में रखें और ये पानी रात को पियें ।

2. वृष - कान, नाक, गला और दांत के रोग, खांसी, टॉन्सिल्स, थायराइड, सायनस ।

उपाय : वृषभ राशि वाले जातक भी त्रिफला चूर्ण रात को भिगोकर सुबह उसे छानकर निराहार पियें । सफेद रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर 5-7 घंटे धूप में रखें और ये पानी रात को पियें ।

3. मिथुन - श्वास व गले के रोग, हाथ व कंधे में फ्रैक्चर, लकवा, तंत्रिका तंत्र रोग, पक्षाघात, मिर्गी, टीबी, फेफड़ों में संक्रमण, मज्जा के रोग, अस्थमा ।

उपाय : मिथुन राशि के जातक प्रतिदिन भोजन करने के बाद आंवला चूर्ण में कुछ मात्रा में काली मिर्च चूर्ण मिलाकार सेवन करें | हरे रंग की बोतल पानी भरकर धूप में 3-4 घंटे रखें और रात्रि में सेवन करें । 

4. कर्क - हृदय रोग, रक्त विकार, स्तन कैंसर (गांठ), फेफड़ों व पसलियों के रोग, खांसी, जुकाम, छाती में दर्द, ज्वर, मानसिक रोग व तनाव ।

उपाय : कर्क राशि वाले काली मिर्च, दालचीनी, सोंठ बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें । प्रतिदिन रात के भोजन के बाद सेवन करें और सफेद बोतल में पानी भरकर धूप में दिन भर रखें और रात को सेवन करें । 

5. सिंह - रक्त, उदर, वायु विकार, मेद वृद्धि, ल्यूकेमिया, एनीमिया, रक्तचाप (बी. पी.), अस्थि रोग (पीठ, कमर, जोड़ों व घुटनों के दर्द आदि), पेट दर्द, तिल्ली रोग, बुखार, हृदय रोग ।

उपाय : सिंह राशि वाले मेष राशि वालों की तरह ही प्रतिदिन रात को त्रिफला चूर्ण भिगोकर सुबह उसे छानकर निराहार पियें और लाल रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर 5-7 घंटे धूप में रखें और ये पानी रात को पियें ।

6. कन्या - किडनी रोग, कमर दर्द, अपच, मंदाग्नि, जिगर रोग, आंतों के रोग, अमाशय के रोग, उदर रोग, अनिद्रा, रक्तचाप ।

उपाय : कन्या राशि वाले प्रतिदिन रात्री के भोजन के एक घंटे बाद आंवले का चूर्ण का गुनगुने पानी के साथ सेवन करें । हरे रंग की बोतल में पानी भरकर धूप में 3-4 घंटे रखें और रात्रि में सेवन करें । 

7. तुला - मूत्राशय रोग, मधुमेह, मूत्रकृच्छ, बहुमूत्र, प्रदर, मूत्रवाहिनी एवं मूत्र उत्सर्जन संबंधी रोग ।

उपाय : तुला राशि वाले काली मिर्च, दालचीनी, सोंठ बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें प्रतिदिन रात्री के भोजन के बाद सेवन करें । सफेद बोतल में पानी भरकर धूप में दिनभर रखें और रात को सेवन करें । 

8. वृश्चिक - मलाशय व गुदा रोग, गुप्त रोग, जननेन्द्रिय रोग, अंडकोश व संसर्ग रोग, गर्भाशय रोग ।

उपाय : वृश्चिक राशि वाले सिंह राशि और मेष राशि वालों की तरह ही प्रतिदिन रात को त्रिफला चूर्ण भिगोकर  सुबह उसे छानकर निराहार पियें और लाल रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर 5-7 घंटे धूप में रखें और ये पानी रात को पियें ।

9. धनु - कूल्हे, जांघ के रोग, हड्डियां टूटना, मांसपेशियां खिंचना, चर्मरोग, जुकाम, यकृत दोष, ऋतु विकार ।

उपाय : धनु राशि वाले काली मिर्च, दालचीनी, सोंठ बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें प्रतिदिन रात्री के भोजन के बाद सेवन करें | पीली कांच की बोतल में पानी भरकर धूप में दिन भर रखें और रात को सेवन करें ।

10. मकर - घुटनों के रोग, पिंडली रोग, चर्मरोग, वात व शीत रोग, रक्तचाप रोग ।

उपाय : मकर राशि वाले अन्य राशि वालों की तरह ही प्रतिदिन रात को त्रिफला चूर्ण भिगोकर सुबह उसे छानकर निराहार पियें । नीले रंग की कांच की बोतल में पानी भरकर 5-7 घंटे धूप में रखें और ये पानी रात को पियें ।

11. कुंभ - मानसिक व जलोदर रोग, ऐंठन, गर्मी रोग, टखना हड्डी रोग, संक्रामक रोग ।

उपाय : कुंभ राशि वाले सुबह-सुबह 2-3 लोंग का सेवन अवश्य करें । नीले रंग की कांच की बोतल को पानी भरकर 5-7 घंटे धूप में रखें और ये पानी रातभर पियें ।

12. मीन - मूत्र उत्सर्जन, पेशाब में जलन, रुक-रुक कर आना, साफ न आना या बहुमूत्रता, किडनी रोग, पैर, पंजे, तलवे व एड़ी के रोग जैसे-एड़ी में पानी भर जाना, मानसिक तनाव, अनिद्रा, एलर्जी, चर्म रोग, रक्तविकार, आमवात, ग्रंथि रोग, गठिया रोग ।

उपाय : मीन राशि वाले मेथी दाना,अजवाइन, जीरा और सूखा आंवला 1-1 ग्राम कांच के बर्तन में गलाकर रात भर रखें और सुबह छानकर उसका पानी निराहार पियें । पीली कांच की बोतल में पानी भरकर धूप में दिन भर रखें और रात को सेवन करें । 

ये आसन सरल और बिना किसी खर्च के उपाय हैं । इन उपायों को यदि हम हमारी दैनिक दिनचर्या में उपयोग करते हैं तो निश्चित ही हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता और बढ़ा सकते हैं और खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकते हैं ।