प्रत्येक व्यक्ति की खानपान की आदतें विशेष प्रकार की होती हैं । वे अन्य व्यक्तियों से काफी हद तक भिन्न होती हैं, इसका कारण व्यक्ति की स्वयं की मनोवृत्ति एवं स्वभाव माना जाता है । ज्योतिष में इसका कारण जातक की जन्म कुण्डली में ग्रहों की विशिष्ट स्थिति माना जाता है ।
भारतीय ज्योतिष
में खानपान का कारक भाव द्वितीय माना गया है । द्वितीय भाव एवं द्वितीयेश व्यक्ति
की खानपान की आदतें निर्धारित करता है ।
लग्न,लग्नेश,
राशीश, षष्ठ भांव और षष्ठेश, चन्द्रमा,
मंगल, शुक्र, सूर्य आदि भी
व्यक्ति की खानपान की आदतें निर्धारित करते हैं ।
सामान्यतः यह
माना जाता है कि द्वितीय भाव में जो ग्रह स्थित होता है अथवा द्वितीय भाव में
स्थित राशि का स्वामी जो ग्रह होता है, उसके स्वभाव के
अनुरूप व्यक्ति की खानपान की आदतें होती हैं ।
यदि द्वितीयेश
या द्वितीय भाव में स्थित ग्रह तामस प्रकृति का है, तो व्यक्ति
तामसी भोजन करता है और यदि वह सात्विक प्रकृति का है, तो व्यक्ति
सात्विक भोजन करता है ।
जातक ग्रंथों के
अनुसार द्वितीयेश यदि
पाप ग्रहों से युत होता है, तो जातक पेटू (अधिक खाने वाला) होता है
।
यदि द्वितीय भाव में में पाप
ग्रह स्थित हों अथवा द्वितीय
भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, तो जातक लहसुन - प्याज खाने वाला, शराब
आदि मादक पदार्थों का सेवन करने वाला, अधिक वसा एवं मसाले युक्त भोजन
करने वाला होता है ।
यदि दूसरे भाव मे पाप दृस्टी रहित शुभ ग्रह हो अथवा दूसरे भाव
मे शुभ ग्रहो की दृस्टी हो तो जातक सात्विक भोजन करने वाला होता
है ।
यदि द्वितीयेश
बलवान् हो और वह शुभ ग्रहों से युत अथवा दृष्ट हो, तो जातक की भोजन
आदतें, सौम्य एवं परम्परा के अनुकूल होती हैं ।
धनेश शुभ ग्रहों
से युक्त हो अथवा बलवान् हो अथवा स्वयं के भाव में पाप ग्रहों से रहित अथवा उनकी
दृष्टि से रहित स्थित हो, तो जातक आराम - आराम से भोजन करता है ।
दूसरी ओर यदि
द्वितीयेश चर राशि मे हो अथवा द्वितीय भाव में शुभ राशि हो और वहाँ शुभ ग्रहो की दृस्टी हो तो जातक तेजी से भोजन ग्रहण
करता हैं |
इसके अतिरिक्त यदि दूसरे भाव में किसी पाप ग्रह की राशि हो और
उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि या युति हो तो जातक बहुत देर तक भोजन करने वाला होता
है |
द्वितीयेश यदि शनि अथवा गुलिक से संबंध स्थापित करता है और नीच
राशि में स्थित होता है तो जातक श्राद्ध अथवा मृत्यु भोज मे भोजन करने की आदत वाला
होता है |
द्वितीयेश अथवा द्वितीय भाव का संबंध मंगल से हो रहा हो तो जातक
मांसाहारी होता है |
लग्नेश यदि सौम्य ग्रह है और शुभ स्थान में स्थित है तो जातक की
खानपान की आदते सौम्य,सात्विक एवं परंपरा के अनुकूल होती है दूसरी और यदि
लग्नेश पाप ग्रह है और अशुभ स्थान में स्थित है तो जातक की खानपान की आदतें तामसिक
एवं नैतिक परंपरा के विरुद्ध होती है |
द्वादश भाव में यदि पाप ग्रह स्थित हो,लग्नेश निर्बल हो,तो जातक की खानपान की आदतें तामसिक होती हैं |
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