हर व्यक्ति के जन्म के समय सभी ग्रह किसी न किसी राशि और किसी नक्षत्र पर अवस्थित होते ही हैं किन्तु जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र सम्बंधी पर अवस्थित होता है उसे ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता हैं इसे जन्म नक्षत्र कहा जाता है । अब स्वाभाविक प्रश्न है कि आखिर चन्द्र नक्षत्र का ही प्रभाव सर्वाधिक क्यों पड़ता है ? इसकी सीधी सी वजह यह है कि सब आकाशीय पिंडो में चन्द्रमा हमारे सबसे नजदीक है अत: इसी का सर्वाधिक प्रभाव हमारे मन मस्तिष्क व स्वास्थ्य पर पड़ता है । नक्षत्रानुसार राशि व सौर-मण्डल के ग्रहों की स्थित राशि का मनुष्य के स्वाभाव चरित्र व स्वास्थ्य पर पड़ता हैं |
इस प्रकार
नक्षत्रानुसार राशि व सौर मंडल ग्रहो की राशि का मनुष्य के स्वभाव चरित्र व
स्वस्थ्य पर प्रभाव विशेष रहता ही रहता है और वह भी ग्रहों के
अंश / शक्ति, स्थिति और दशा - अतर्दशा
अनुसार घटता बढ़ता रहता है।
नक्षत्र और स्वास्थ्य : जन्म नक्षत्र से
संबंधित स्वस्थ्य व रोगो का विवरण नीचे प्रस्तुत हैं |
1) अश्विनी – इस नक्षत्र वालों को अनिद्रा,नकसीर,चक्कर आना,मूर्छा/बेहोशी,स्नायु
शूल आदि होने की संभावना रहती हैं |
2) भरनी - इन्हे सिर दर्द,नेत्र पीड़ा,ज्वार,दिमागी बुखार तथा प्रजान संबंधी रोग होते हैं |
3) कृतिका – इस नक्षत्र के जातकों को कंठरोग (टांसिल डिपथीरिया
आदि) अनिद्रा, सिर दर्द और
पैतृक रोगों की संभावना
रहती हैं ।
4) रोहिणी - इन्हे त्रिदोष संबंधी रोग,जोडो का
दर्द, महिलाओं में
मासिक धर्म सम्बन्धी रोग होते हैं।
5) मृगशिरा - कंठरोग, चर्मरोग, बुखार कधे-बाजू दर्द व
गुप्त रोगों की संभावना रहती है।
6) आर्द्रा - कान पीड़ा, सर्व गात्र पीड़ा, ज्वर,अनिद्रा व त्रिदोष रोग की संभावना रहती
है।
7) पुनर्वसु - ब्रोंकाइटिस,न्यूमोनिया,टांसिल्स/अपच की शिकायतें हो सकती है ।
8) पुष्य - पेट - अल्सर,श्वास-विकार,पीलिया जैसे
रोग बहुतायत से हो सकते हैं।
9) अश्लेषा - गैस विकार, अजीर्ण,पैरों के कष्ट,जोड़ों के
दर्द, ज्वर आदि हो सकते हैं ।
10) मघा - हृदय रोग
और रीढ़ की हड्डी के रोग होते है ।
11) पूर्वाफाल्गुनी - हृदय रोग, उच्च रक्तचाप,अल्सर,बुखार
होने की सम्भावना होती है ।
12) उत्तराफाल्गुनी - जातकों को
आंत-सम्बन्धी विकार,डिसेन्ट्री, अपेंडिसाइटिस,सिर पीडा,हृदय रोग की संभावना रहती है ।
13) हस्त - कब्ज, अजीर्ण, पेट गैस अफारा,उदरशूल होते है ।
14) चित्रा - मूत्र रोग,रक्तचाप,आंत,अल्सर,हर्निया बहुतायात से हो सकते है।
15) स्वाती - मूत्र मार्ग व पथरी का रोग,ल्यूकोडर्मा,ज्वर,हृदय पीडा प्रायः होती रहती है।
16) विशाखा - गुदामार्ग, हदय पीडा मधुमेह गर्भाशय/जनेन्दिय रोग की सम्भावना रहती
होते है।
17) अनुराधा - कब्ज,बवासीर,कफ विकार,जनेन्द्रिय रोग,मासिक धर्म
विकार व गुर्दा रोग होते हैं |
18) ज्येष्ठा - पित्तरोग, मस्तिक विकार,घाव,फोडे,नासूर,भगन्दर,फिस्टुला गर्भाशय
का विकार होते है ।
19) मूल – इन नक्षत्र वालों को सन्निपात,स्नायु दुर्बलता,जांघ विकार आदि पाये जाते है।
20) पूर्वाषाढ़ा – सायटिका,कटिपीडा,गठिया,कफ विकार,कम्पन रोग, सिर की पीड़ा होने की सम्भावना रहती हैं |
21) उत्तराषाढा - जननांग विकार,लकवा,जोड़ों का
दर्द,एग्जीमा जैसा चर्म रोग,धमनी विकार की संभावना रहती हैं |
22) श्रवण - सफेद दाग, अतिसार,प्लुरिसी,उदर विकार,टीबी रोग हो
सकते है।
23) धनिष्ठा - रक्त विकार/साव, अतिसार कम्पन रोग, बैंक बोन्स घुटने व हृदय दुर्बलता की सम्भावना रहती है।
24) शतभिषा - हृदय रोग, गठिया, उच्च रक्ताचाप,लकवा,पैर विकार वायु रोग सम्भावित होते हैं |
25) पूर्वाभादपद
- जातकों को
त्रिदोष विकार,सिरदर्द, गुर्दे के रोग,यकृत विकार हर्निया,वमन, मासिक धर्म विकार,गुर्दा रोग,चिन्ता
व्याकुलता देखी जाती है।
26) उत्तराभादपद - पीलिया, अतिसार ज्वर, वायुशूल गठिया एनीमिया,मिर्गी
जैस एरोग हो सकते हैं |
27) रेवती
- त्रिदोष विकार उरुशूल, कान विकार,गठिया,यकृत विकार तलुआ विकार प्रायः होते रहते हैं |
ज्योतिष शास्त्र में सत्ताईस नक्षत्रों नवग्रहों और द्वादश राशियों के द्वारा रोग के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं कालपुरुष के विभिन्न अंगों को नियंत्रित और निश्चित करने वाली राशियों ग्रहों से शरीर के किसी न किसी अंग पर रोग का जो प्रभाव पड़ता है उसे एक ज्योतिषी व चिकित्साविद ग्रह दान,जप औषधी के द्वारा इत्यादि ठीक कर सकता है क्योकि ज्योतिष विज्ञान का और चिकित्सा शास्त्र का सम्बन्ध प्राचीन काल से रहा है।
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