संस्कृत
भाषा मे मंगल शब्द का शाब्दिक अर्थ “उन सभी वस्तुओ से होता हैं जो आस्तित्व व सृजन
हेतु आवश्यक होती
हैं“ इसी कारण सभी सृजनात्मक कार्यो को “मांगलिक कार्य”
भी कहा जाता हैं | मंगल
ग्रह नैसर्गिक व प्राकृतिक रूप से सृजनात्मक हैं किन्तु जब इसकी यही सृजनात्मक विशेषताएँ
ग़लत रूप से प्रयुक्त होने लगती हैं तो यह विध्वंशक रूप ले लेता हैं और इसे मंगल की
जगह अमंगल समझा जाने लगता हैं |
सभी
ज्योतिषीय ग्रंथो मे मंगल ग्रह के कारकत्व दिये गए हैं परंतु इसके आंतरिक चरित्र
के विषय मे किसी भी ग्रंथ मे कोई भी उल्लेख नहीं किया गया हैं जिससे इसका वास्तविक
रूप समझ मे नहीं आ पाता हैं यह कोई भी ग्रंथ अथवा विद्वान नहीं बता पाता की इसे
क्रूर ग्रह होने पर भी मंगल नाम क्यू दिया गया हैं |
मंगल
शब्द संस्कृत के मूल शब्द मांग से बना हैं जिसका अर्थ चलने वाला अर्थात गति करने
वाला होता हैं यह वह ऊर्जा हैं जो स्थिर अथवा जड़त्व वस्तुओ को हिलाती हैं |
हम सभी जानते हैं की ब्रह्मांड मे सभी शक्तियो का श्रोत सूर्य होता हैं परंतु यह भी सत्य हैं
की सूर्य स्वयं गति नहीं करता हैं,सूर्य
का वाहन मंगल हैं तथा इस मंगल की गति के कारण ही धरती पर जीवन होता हैं इसी गति अथवा
बहाव को पुराणो मे गंगा कहा गया हैं यह गंगा शंब्द गम धातु से बना हैं जिसका
शाब्दिक अर्थ भी मंगल की भांति चलने वाला अथवा गति करने वाला होता हैं |
इस
प्रकार देखे तो मंगल व गंगा का अर्थ समान होता हैं |
यहाँ यह भी ध्यान दे की मकर राशि का मंगल ग्रह व
गंगा से संबंध हैं,मंगल मकर
राशि मे ऊंच होता हैं वही मकर राशि के प्रतीक मकर को पुराणो के अनुसार गंगा का
वाहन कहाँ गया हैं |
मंगल की
किरणों का धरती पर आना गंगा के बहाव के समान ही होता हैं राशियो मे यह सर्वप्रथम
मेष राशि अर्थात कालपुरुष के सिर का स्पर्श सबसे पहले करती हैं जिसका प्रथम
नक्षत्र अश्विनी होता हैं जिसके प्रतीक दो घोड़े होते हैं यह घोड़े गति का
प्रतिनिधित्व करते हैं जो मंगल की विशेषता होती हैं |
पुराणो
के अनुसार जब गंगा के रूप मे ऊर्जा धरती पर आई तो उसके आक्रामक बहाव अथवा वेग को
शिव (कालपुरुष) ने अपने सिर (मेष राशि) से नियंत्रित किया था जिससे यह सिर पर
विराजित हो गयी सिर का यह वो स्थान होता हैं जो की परम शिव का स्थान माना जाता हैं,प्रयोगिक
अथवा विज्ञान के रूप मे देखे तो सिर का यह हिस्सा सेरेबेलम कहलाता हैं जिससे शरीर
मे होने वाली सभी क्रियाओ का नियंत्रण होता हैं |
मंगल की सकारात्मक ऊर्जा शरीर के ऊपरी हिस्से अर्थात सिर मे तथा नकारात्मक ऊर्जा
शरीर के निचले हिस्से अर्थात कुंडलिनी शक्ति के रूप मे सर्पाकार अवस्था मे रहती
हैं मंगल की यह नकारात्मक ऊर्जा भावानुसार वृश्चिक राशि मे पड़ती हैं जो ज्योतिष मे
कुंडलिनी शक्ति को ही दर्शाती हैं यही वह शक्ति हैं जो धरती पर सभी जीवो को जन्म
देती हैं (वृश्चिक राशि प्रजनन अंगो व काम संबंधो से संबन्धित होती हैं)
इस
प्रकार यह मंगल भौतिक जगत मे दो प्रकार से कार्य करता हैं तथा इसके दो भाव बनते
हैं जो बाहरी शक्ति व भीतरी शक्ति को दर्शाते हैं | इसका
सकारात्मक व बाहरी शक्ति का भाव मेष (अग्नि) राशि को दर्शाता हैं जो कालपुरुष के
जन्म,सिर,चेहरे
आदि को बताता हैं तथा इसका नकारात्मक व भीतरी शक्ति का भाव वृश्चिक (जलीय) राशि को
बताता हैं जो कालपुरुष के गुप्त व उत्सृजन अंग,मृत्यु
अथवा जीवन की निकासी को बताता हैं |
जिससे इस मंगल के कारण धरती पर जीवन के संचालन का पता चलता हैं संभवत;
इसी कारण इसे मंगल नाम दिया गया हैं |
मंगल
कर्क राशि मे नीच का हो जाता हैं अर्थात प्रभावहीन हो जाता हैं कर्क का स्वामी
ग्रह चन्द्र होता हैं व कर्क राशि जलीय राशि भी हैं जहां मंगल की ऊर्जा जल प्रभाव
के कारण निष्प्रभावी हो जाती हैं और अपना सम्पूर्ण प्रभाव नहीं दे पाती |
वही मकर राशि मे जाने पर यह मंगल ऊंच का प्रभाव देते हैं क्यूंकी मकर राशि का
स्वामी शनि होता हैं जो की ठड़कता एवं किसी भी वस्तु को जमाना (जड़त्वता) का प्रतीक
हैं जो जल को भी जमा सकता हैं जिस कारण इस राशि मे मंगल की ऊर्जा ठोस शक्ति का
आकार ले लेती हैं जिससे मंगल अपना पूर्ण प्रभाव इस राशि मे दे पाता हैं |
यहाँ यह भी ध्यान रखे की मकर शब्द का शाब्दिक अर्थ “शक्ति
का होना अर्थात जिसके पास शक्ति हैं” होता हैं |
आत्मा
“लिंग“ से परे होती हैं परंतु मंगल के प्रभाव से उसमे जन्म लेने पर लिंग निर्धारण
होता हैं इस प्रकार मंगल पृथ्वी पर भोग सुख अथवा यौन सुख का कारक बन पृथ्वी पर
जीवन चलाता हैं जिससे सम्पूर्ण सृष्टि चलती हैं | भारतीय
ज्योतिष के प्राचीन पुरोधा मंगल के इस प्रभाव से भली भांति परिचित थे इसी कारण वर
वधू चयन के समय वह सबसे पहले इस मंगल ग्रह की स्थिति दोनों पत्रिकाओ मे देखते थे
वह यह जानते थे की यदि मंगल की स्थिति ठीक ना हुई तो यह वैवाहिक अथवा भोग सुख मे
अवश्य ही तनाव उत्पन्न करेगा जिससे यह मंगल ना होकर अमंगल हो जाएगा |
जब मंगल
पत्रिका मे 1,4,7,8 व 12 भाव
मे होता हैं तो वह जातक को जुनूनी,आक्रामक,गुस्सेबाज़,ऊर्जावान
व अधिक कामी बनाता हैं ऐसे मे यदि उसका जीवन साथी भी उस प्रकार का ना हुआ तो उसके
सांसारिक जीवन मे अवश्य ही परेशानिया हो जाएंगी |
सभी वैवाहिक स्त्रीयों मे इस मंगल की संवेदन तरंग पायी जाती हैं जिस कारण उन्हे
माथे अथवा मांग मे सिंदूर लगाया जाता हैं जो इस मंगल का ही प्रतीक होता हैं संभवत:
इसी कारण विवाह आदि मांगलिक कारणो मे लाल रंग का प्रयोग ज़्यादा किया जाता हैं |
मंगल
सृजनकर्ता हैं हमारा जन्म इसी मंगल के प्रभाव से होता हैं स्त्रीयों मे मासिक धर्म
मंगल के कारण ही होता हैं जबकि मासिक चक्र चन्द्र से होता हैं यदि मंगल की स्थिति
स्त्री की पत्रिका मे ठीक ना होतो उसे मासिक धर्म संबंधी रोग होते हैं और यदि इसी
मंगल की खराब स्थिति के कारण उसे मासिक धर्म ही ना होतो वह संतान उत्पन्न करने मे
असमर्थ होती हैं यही वह तथ्य हैं जो मंगल को सृजन करने वाला बनाता हैं इसी मंगल की
दूसरी राशि वृश्चिक द्वारा ही स्त्री पुरुष के यौन अंगो अथवा जननांगो का निर्धारण
होता हैं |
मंगल भूख
व तृष्णा का ग्रह हैं हमारा खान पान इसी मंगल की अग्नि (जठराग्नि) से प्रभावित
होता हैं जब भोजन अथवा पानी लाल रंग का प्रयोग किया जाता हैं तब हमारी भूख प्यास
बढ़ जाती हैं ऐसा विज्ञान भी मानता हैं मुख्यत: देखे तो हमारी सभी पसंद-नापसंद इस
मंगल पर ही निर्भर करती हैं जो भी वस्तु हमें पसंद अथवा आकर्षित करती हैं मंगल के
कारण ही करती हैं इसी मंगल के कारण ही हम कुछ पैदा करते हैं नष्ट करते हैं फिर कुछ
नया पैदा करते हैं सृजन करते हैं |
मंगल
हमारी ऊर्जा हैं जो शुभ होने पर चन्द्र संग मिलकर हमारा रक्त संचालन करता हैं मंगल
जहां रक्त व मज्जा का प्रतिनिधित्व करता हैं वही साहस,पुरुषार्थ,आत्मविश्वास
हेतु भी देखा जाता हैं जो सभी प्राणियों मे पाया जाता हैं और बिना इन सबके कोई भी
जीवन मे कुछ प्राप्त नहीं कर सकता,इसी
मंगल के अशुभ होने पर यह अहम,क्रोध,धैर्यहीनता,झगड़ने
की प्रवृति,कमजोर का
शोषण करने की इच्छा,रक्तपात
हेतु प्रेम,भोग
प्रवृति,चौर्यक्रम व हत्या जैसे फल
भी प्रदान करता हैं |
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