करण
एक तिथि
के आधे भाग को “करण” कहते हैं (एक तिथि मे दो करण होते हैं) इसे चन्द्र के भोगांश
से सूर्य के भोगांश को घटाकर शेषफल को 6 अंशो से भाग देकर जाना जाता हैं |
करण = (चन्द्र
भोगांश - सूर्य भोगांश) / 6अंश
करण
मुख्यत: 11 होते हैं
जिनमे 7 चर करण (बव,बालव,कौलव,तैतिल,गर,वनिज
व विष्टि) तथा 4 स्थिर (शकुनि,चतुष्पाद,नाग
व किन्तुघ्न) करण होते हैं | यह 7 चर
करण एक महीने मे 8 बार आते हैं जबकि स्थिर करण 4 बार आते हैं जिनसे कुल 60
(7*8+4=60) करण हो जाते हैं |
करणो का
क्रम - 1)बव, 2) बालव,
3) कौलव,
4) तैतिल, 5) गर,
6) वनिज, 7) विष्टि
8) शकुनि
(कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का दूसरा भाग),9)
चतुष्पाद (अमावस्या का पहला भाग),10)
नाग (अमावस्या का दूसरा भाग),11)
किन्तुघ्न (शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का पहला भाग)
किन्तुघ्न
से गणना आरंभ करने पर 7 (चर करण) 8 बार पुनरावरत होते हैं अर्थात दोबारा आते हैं
(शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तक) अंत मे तीन स्थिर करण
(कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दूसरे भाग से शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पहले भाग तक) आते
हैं |
आइए इसे
एक उदाहरण से समझते हैं |
23-3-2010
को सूर्य भोगांश 11राशि 8अंश 14मिनट हैं तथा चन्द्र भोगांश 2राशि 2अंश 26मिनट हैं
तो करण बताए ?
= (2राशि
2अंश 26मिनट) - (11राशि 8अंश 14मिनट)/12अंश
= (14राशि
2अंश 26मिनट) - (11राशि 8अंश 14मिनट)/12अंश
= 2राशि
24अंश 12मिनट /12अंश
= 84अंश
12मिनट /12 अंश
= 7.01(अष्टमी
तिथि )
करण = 84अंश
12मिनट /6अंश
=14.02
(पंद्रहवा करण) जो की किन्तुघ्न शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से गिनने पर “विष्टि” करण
हुआ |
यदि
भोगांश अंतर 0 से 180 के बीच आए तो तिथि शुक्लपक्ष की तथा 180 से 360 के बीच आए तो
तिथि कृष्ण पक्ष की होगी इसी प्रकार यदि तिथि 0.50 से पहले की हो तो दिन का पहला
करण व तिथि 0.50 से अधिक की हो तो दिन का दूसरा करण होगा |
इस
प्रकार हम पंचांग के पांचों तत्वो को गणितीय दृस्टी से निकाल कर मुहूर्त स्वयं
प्राप्त कर सकते हैं |
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