गुरुवार, 12 सितंबर 2024

लिव इन रिलेशनशिप और विवाह


भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाह बताए गए हैं जिनमे ब्रह्म विवाह, देव विवाह, आर्श विवाह, प्राजापत्य विवाह, गंधर्व विवाह, असुर विवाह, राक्षस विवाह और पिशाच विवाह आते हैं आजकल के भौतिकतावादी संसार मे प्रेम विवाह भी किए जाते हैं जिन्हे शास्त्र गंधर्व विवाह की ही श्रेणी मे रखता हैं | गंधर्व विवाह के अंतर्गत लड़का और लड़की आपसी सहमति के साथ बिना माता पिता या परिवार की आज्ञा से विवाह करते हैं ।

इतिहास मे देखे तो राजा दुष्यंत और शकुंतला एवं भीम और हिडिंबा ने गंधर्व विवाह ही किया था ।

आधुनिक समय में गंधर्व विवाह के बिगड़े हुये रूप को लिव इन रिलेशनशिप कहा जाने लगा है बस इसमें इतना ही बदलाव हुआ है कि वर और वधू एक दूसरे को बिना किसी सामाजिक मान्यता अथवा बंधन मे बंधकर एक साथ पति पत्नी की तरह रहते है और शारीरिक संबंध भी बनाते हैं ।

आजकल की युवा पीढ़ी ज्यादातर लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है और शहरो में तो ये आम प्रचलन हो गया है, लेकिन लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद भी सबकी शादी पारंपरिक तरीके से नहीं हो पाती है और उन्हें अलग होना पड़ता है।

जो लड़के और लड़की लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए सारी उम्र गुजार देते हैं या लिव इन रिलेशनशिप में रहने के कुछ समय बाद शादी कर लेते है उनके लिए तो ठीक है लेकिन जो लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद एक दूसरे से विवाह नहीं कर पाते हैं उनके लिए समस्या हो जाती है और वो समस्या कई प्रकार की होती है ।

लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद कुछ जातकों का जब विवाह के लिए ज्योतिष से कुंडली दिखाई जाती है तो ज्योतिषी भी कुंडली मे विवाह से संबन्धित 2 7 11 भावो को लेकर बैठ जाते है, इन्ही भाव की सक्रियता देखते हुए विवाह का विश्लेषण करते हैं जो कि सही नहीं होता है ।


कोई भी जातक अथवा जातिका जब लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद किसी और से शादी करता/करती है तो ये शास्त्र अनुसार उसका दूसरा विवाह माना जाएगा और ज्योतिष में सप्तम भाव से पहले और नवम भाव से दूसरे विवाह का विचार किया जाता हैं ।

क्योंकी अब ये विवाह जातक का दुसरा विवाह होगा ओर ज्योतिषी को 2 7 11 भावो के साथ 9वे भाव की सक्रियता भी देखनी पड़ेगी और यदि जातक दो लिव इन रिलेशनशिप में रहा या रही हो तो तीसरे विवाह का विचार करना पड़ेगा ऐसे मे जातक खुद तो ज्योतिषी को ये सब बताएगा नहीं लेकिन समझदार ज्योतिषी कुंडली में पहले ही 5 7 8 12 भावो की सक्रियता देख ले और फिर जातक से ही स्पष्ट रूप से पूछ ले तो ही सही उत्तर मिल पाएगा

कोई जब लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद किसी और से शादी करता है और कुछ समय के बाद वैवाहिक जीवन में समस्या आती हैं तो उसकी कुण्डली विश्लेषण करते समय दशा के साथ बस सप्तमेश और सप्तम भाव की स्थिती देखी जाती है और उसी के अनुसार उपाय बता दिये जाते हैं जिससे समस्या जस की तस बनी रहती है ।ऐसे मे सही समाधान के लिए नवम भाव और नवमेश का विश्लेषण जरूरी हो जाता है और उसी के अनुसार उपाय बताए जाए तो परिणाम बेहतर होता है |

किसी कुंडली में पहला विवाह सुखदाई होता है जिस कारण लिव इन रिलेशनशिप लंबे समय तक सही रहते है लेकिन किसी कारणवश जिसके साथ रहते हैं उससे विवाह नहीं हो पाता हैं । अब ऐसे मे ये जब भी विवाह करेंगे और यदि इनका नवम भाव और नवमेश पीड़ित हो या पापकर्तरी में हो तो भले ही सप्तम भाव और सप्तमेश की स्थिति अच्छी हो वैवाहिक जीवन में समस्या आएगी ही आएगी

इसी तरह किसी की कुंडली में विधवा या विधुर योग है और लिव इन रिलेशनशिप में रहता है या रहती है तो भी इसका परिणाम उन्हें मिलता है ।

शादी से पहले लोग कुण्डली तो मिलवा लेते हैं जिसने कुंडली में उपस्थित गुण और दोष का पता चल जाता है और समय रहते उपाय भी कर लिया जाता है लेकिन लिव इन रिलेशनशिप में रहने से पहले कुंडली कोई नहीं दिखाता  और ये स्वाभाविक भी है लेकिन कुंडली के गुण और दोष अपना काम जरुर करते हैं ।

पहली शादी के लिए सप्तम भाव और सप्तमेश, दूसरी शादी के लिए नवम भाव और नवमेश तथा तीसरी शादी के लिए एकादश भाव और एकादशेश का विश्लेषण कारक, दशा और गोचर के साथ करना चाहिए । भले ही समाज के सामने वैदिक रीति से एक ही शादी हुई हो लेकिन जब वैवाहिक जीवन में समस्या आए तो विवाह से पूर्व लिव इन रिलेशनशिप को देखते हुए सम्बन्धित भाव और भावेश का उपाय करना चाहिए |

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