मंगलवार, 10 सितंबर 2024

महाभारत और ज्योतिष

 

महाभारत में कर्ण को सूर्य का पुत्र कहा गया है जो मित्रता को सबसे ऊपर रखता है दान देने में सबसे आगे रहता है इसमे दर्द सहने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है समय आने पर अपनी विद्या भूल जाता है,कर्ण के जीवन से यह भी पता चलता है कि जिस जातक का सूर्य उच्च का होता है उसकी एक से अधिक माता तथा सौतेले भाई हो सकते हैं और उसे अपने जैविक पिता का सुख नहीं मिलता |

भगवान श्री कृष्ण के विषय में देखे तो महाभारत उनका चंद्रमा प्रधान होना निश्चित रूप से बताता है ऊंच का चंद्रमा होने के कारण उन्हें एक से अधिक माता का सुख मिला,वह 16 कलाएं संपूर्ण थे जो कि चंद्र की कलाई मानी जाती हैं,उनका रोहिणी नक्षत्र में जन्म होना यह बात साबित करता है कि वह सारथी का काम करेंगे तथा यह भी निश्चित करता है कि वह बिना बताए सब कुछ समझ जाने की कला जानते हैं चंद्रमा प्रधान होने के कारण उनके जीवन में कभी भी स्थाई नहीं रहा तथा वह जीवन पर्यंत भ्रमण करते रहे |

महाभारत में कुंती का चरित्र कर्क राशि के चंद्रमा का प्रतीक है इसमें स्पष्ट रूप से पता चलता है कि वह अपने साथ-साथ अपनी सौतन के पुत्रों को भी पालती है तथा अपने व अन्य पुत्रो में कोई भेदभाव नहीं करती है,उचित समय पर वह स्वार्थ के कारण कर्ण से अर्जुन को ना मारने का वरदान भी मानती है क्योंकि कर्ण उनका सौतेला पुत्र है जबकि अर्जुन उनका अपना पुत्र हैं  |

भीम को मंगल ग्रह का प्रतीक माना गया है क्योंकि उन्हें पवन से मांगा गया था इसलिए उन्हें हनुमान जी का भाई भी मांना जाता है अर्थात मंगल के नक्षत्र में जन्मे जातक खेल अथवा लड़ाई झगड़े में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकते हैं |

बुध ग्रह का प्रतीक शिखंडी के जीवन से लगता है जिसका पूर्व जन्म का नाम अंबा था जो मां दुर्गा का नाम है हम सभी जानते हैं कि बुध जब खराब होता है तो हमें मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए बुध को संभवत इसीलिए नपुंसक ग्रहों में गिना गया है इसका स्पष्ट प्रभाव हमें शिखंडी के जीवन में देखने पर आता है |

महाभारत में दो गुरु जिनमें कृपाचार्य और द्रोणाचार्य हैं ऊंच के गुरु तथा नीच के गुरु से संबंधित व्यक्तित्व रखते हैं जहां कृपाचार्य ऊंच गुरु हैं जिनके पास स्वयं कौरव पांडव शिक्षा प्राप्त करते हैं जबकि द्रोणाचार्य को स्वयं कौरव पांडव के पास जाकर उनको शिक्षा देनी पड़ती है जो स्पष्ट रूप से नीच गुरु का प्रभाव नजर आता है द्रोणाचार्य के जीवन की दो घटनाएं हैं जो उन्हे नीच के गुरु की ओर धकेलती हैं उसमें से अपने पुत्र को धनुर्विद्या की शिक्षा देना तथा चक्रव्यूह की रचना के बारे में जानकारी देना आता है वही कर्ण को सूत पुत्र होने के कारण शिक्षा ना देना अथवा उसे धनुर्विद्या का ज्ञान ना देना पता चलता है |

 

धनु राशि का प्रभाव - अर्जुन एवं द्रोपदी के स्वयंबर मे देखने पर आता है अर्जुन महान धनुर्धारी है तथा द्रौपदी का स्वयंवर उन्होंने अपनी धनुष की प्रवीणता से ही जीता था जब उन्हें उच्च का शुक्र वाली द्रौपदी को प्राप्त करने के लिए मछली की आंख में निशाना लगाना पड़ा जो शुक्र की उच्च राशि मीन से संबंधित है |

महाभारत में युधिष्ठिर का जीवन मकर राशि से प्रभावित है जिसका स्वामी शनि होता है तथा युधिष्ठिर धर्मराज के पुत्र माने गए हैं | मकर राशि से प्रभावित व्यक्ति के जीवन में एक बार कलंक अवश्य लगता है ऐसा हम युधिष्ठिर के द्रौपदी के जुए में हार जाने से समझ सकते हैं |

धृतराष्ट्र सांप का नाम होता है जिसका अर्थ अंधा होना होता है जो एकादश भाव अर्थात कुंभ राशि का प्रतीक है जिसमें राहु के शतभिषा नक्षत्र होने के कारण सौ पुत्रों का उल्लेख होता है | इस कुंभ राशि के सामने सिंह राशि आती है ज्योतिष सूर्य अथवा उजाले का प्रतीक होती है तो किस प्रकार समझा जा सकता है कि कुंभ राशि में भले ही 100 लोग क्यों न हो परंतु वे अंधकार मे हीं रहेंगे |

नकुल सहदेव और अश्वनी नक्षत्र अश्विनी कुमारों के द्वारा नकुल सहदेव की उत्पत्ति हुई थी जिससे यह पता चलता है कि लग्न में यदि केतू हो अथवा अश्वनी नक्षत्र में जन्मा जातक होतो व अच्छा ज्योतिषी बन सकता है हम सभी जानते हैं कि नकुल सहदेव ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे  |

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