जब चंद्रमा गोचर में कुंभ और मीन राशि से होकर गुजरता है तो यह समय अशुभ माना जाता है इस दौरान चंद्रमा धनिष्ठा से लेकर शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद एवं रेवती से होते हुए गुजरता है इसमें नक्षत्रों की संख्या पांच होती है इस कारण इन्हें पंचक कहा जाता है ।
कुछ कार्य ऐसे
हैं जिन्हे विशेष रुप से पंचक के दौरान करने की मनाही होती है ।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों और नक्षत्र के अनुसार ही किसी कार्य को करने या न करने के लिये समय तय किया जाता है जिसे हम शुभ या अशुभ मुहूर्त कहते हैं । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में आरंभ होने वाले कार्यों के परिणाम मंगलकारी होते हैं जबकि शुभ मुहूर्त को अनदेखा करने पर कार्य में बाधाएं आ सकती हैं और उसके परिणाम अपेक्षाकृत तो मिलते नहीं बल्कि कई बार बड़ी क्षति होने का खतरा भी रहता है । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अशुभ और हानिकारक नक्षत्रों के योग को ही पंचक कहा जाता है इसलिये पंचक को ज्योतिष शुभ नक्षत्र नहीं मानता ।
पंचक प्रमुख रुप से पांच प्रकार का माना जाता है इसमें रोग पंचक, नृप पंचक, चोर पंचक, मृत्यु पंचक और अग्नि पंचक हैं ।
रोग पंचक - रविवार को शुरू
होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है । इस दौरान पंचक में पांच दिनों के लिये
शारीरिक और मानसिक रुप से काफी यातनाएं झेलनी पड़ सकती है इसलिये स्वास्थ्य के
प्रति विशेष रुप से सावधान रहने की आवश्यकता होती है । इस दौरान यज्ञोपवीत करना भी
वर्जित माना जाता है ।
नृप या राज पंचक
- इस पंचक की शुरुआत सोमवार से मानी जाती
है । इस दौरान किसी नई नौकरी को ज्वाइन करना अशुभ माना जाता है, लेकिन
नौकरी सरकारी हो तो उसके लिये इसे शुभ माना गया है । सरकारी नौकरी इस पंचक में
ज्वाइन करने से लाभ मिलता है ।
चोर पंचक - इस
पंचक की शुरुआत शुक्रवार से होती है । इस पंचक के दौरान यात्रा करने से अपने आपको
दूर रखना चाहिये । व्यावसायिक रुप से लेन-देन करना भी इसमें शुभ नहीं माना जाता ।
अगर ऐसा किया जाता है तो उसमें आर्थिक नुक्सान होने का खतरा बना रहता है ।
मृत्य पंचक - यह शनिवार को
शुरु होता है । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जोखिम से भरा कोई भी कार्य इस पंचक के
दौरान नहीं किया जाना चाहिये । विवाह जैसे शुभ कार्य की भी इस दौरान मनाही होती है
। इसमें जान और माल का नुक्सान हो सकता है इसलिये इसे मृत्य पंचक कहा जाता है ।
अग्नि पंचक - यह मंगलवार को
शुरु होता है । घर बनाना हो या फिर एक घर से दूसरे घर में प्रस्थान करना अथवा ग्रह
प्रवेश करना अग्नि पंचक के दौरान इन कार्यों को नहीं किया जाता । न्यायालय संबंधी
कार्यों को इस पंचक के दौरान किया जा सकता है ।
इसके अलावा
बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी
नहीं माना गया है । इन दो दिनों में शुरू होने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों
के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं ।
पंचक का कौन सा नक्षत्र है किसके लिये हानिकारक - पंचक धनिष्ठा नक्षत्र से शुरु होता है और रेवती नक्षत्र तक रहता है |
धनिष्ठा नक्षत्र
में अग्नि का भय रहता है इस समय दक्षिण दिशा की यात्रा अथवा छत डलवाने या फिर घास,
लकड़ी, ईंधन आदि भी एकत्रित नहीं करना चाहिये ।
शतभिषा नक्षत्र
में कार्य के दौरान आपसी कलह, वाद-विवाद और झगड़ा होने की संभावनाएं
बढ़ जाती इसलिये इस नक्षत्र के दौरान कार्यों को नहीं किया जाता बहुत ही जरुरी हों
तो अतिरिक्त सावधानी जरुर रखें ।
पूर्वाभाद्रपद
नक्षत्र आपकी सेहत के लिये हानिकारक होता है अत: इस दौरान अपनी सेहत का जरुर ध्यान
रखना चाहिये ।
उत्तराभाद्रपद
नक्षत्र व्यावसायिक रुप से आपके लिये बहुत हानिकारक होता है इस दौरान अपनी जेब
संभालकर रखें अनावश्यक और अतिरिक्त खर्च बढ़ने की संभावना रहती है व्यवासाय में
आर्थिक नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है । निवेश करने का विचार तो इस नक्षत्र में
विशेष रुप से न करें |
रेवती नक्षत्र
में भी धन की हानि होने की संभावनाएं रहती है ।
पंचक में यदि
किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसका अंतिम संस्कार विशेष विधि के तहत किया जाना
चाहिये अन्यथा पंचक दोष लगने का खतरा रहता है जिस कारण परिवार में पांच लोगों की
मृत्यु हो सकती है । इस बारे में गुरुड़ पुराण में विस्तार से जानकारी मिलती है
इसमें लिखा है कि अंतिम संस्कार के लिये किसी विद्वान ब्राह्मण की सलाह लेनी
चाहिये और अंतिम संस्कार के दौरान शव के साथ आटे या कुश के बनाए हुए पांच पुतले
बना कर अर्थी के साथ रखें और शव की तरह ही इन पुतलों का भी अंतिम संस्कार पूरे
विधि-विधान से करना चाहिये ।
इस दौरान कोई
पलंग, चारपाई, बेड आदि नहीं
बनवाना चाहिये माना जाता है कि पंचक के दौरान ऐसा करने से बहुत बड़ा संकट आ सकता
है ।
पंचक शुरु होने
से खत्म होने तक किसी यात्रा की योजना न बनाएं मजबूरी वश कहीं जाना भी पड़े तो
दक्षिण दिशा में जाने से परहेज करें क्योंकि यह यम की दिशा मानी जाती है । इस
दौरान दुर्घटना या अन्य विपदा आने का खतरा आप पर बना रहता है ।
पंचक में करने
योग्य शुभ कार्य
पंचक में आने
वाले नक्षत्रों में शुभ कार्य भी किये जा सकते हैं । पंचक में आने वाला
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र वार के साथ मिलकर सर्वार्थसिद्धि योग बनाता है, वहीं
धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद
व रेवती नक्षत्र यात्रा, व्यापार, मुंडन आदि शुभ
कार्यों में श्रेष्ठ माने गए हैं ।
पंचक को भले ही
अशुभ माना जाता है, लेकिन इस दौरान सगाई, विवाह
आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं ।
पंचक में आने
वाले तीन नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद व रेवती रविवार को होने
से आनंद आदि 28 योगों में से 3 शुभ योग बनाते
हैं, ये शुभ योग इस प्रकार हैं- चर, स्थिर
व प्रवर्ध । इन शुभ योगों से सफलता व धन लाभ का विचार किया जाता है ।
मुहूर्त
चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार पंचक के नक्षत्रों का शुभ फल
घनिष्ठा और
शतभिषा नक्षत्र चल संज्ञक माने जाते हैं । इनमें चलित काम करना शुभ माना गया है
जैसे- यात्रा करना, वाहन खरीदना, मशीनरी
संबंधित काम शुरू करना शुभ माना गया है ।
उत्तराभाद्रपद
नक्षत्र स्थिर संज्ञक नक्षत्र माना गया है । इसमें स्थिरता वाले काम करने चाहिए
जैसे - बीज बोना, गृह प्रवेश, शांति
पूजन और जमीन से जुड़े स्थिर कार्य करने में सफलता मिलती है ।
रेवती नक्षत्र
मैत्री संज्ञक होने से इस नक्षत्र में कपड़े, व्यापार से
संबंधित सौदे करना, किसी विवाद का निपटारा करना, गहने
खरीदना आदि काम शुभ माने गए हैं ।
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