हम सभी जानते
हैं कि कुंडली का चतुर्थ भाव माता,वाहन,योग्यता,सुख-दुख तथा हृदय
रोग का कारक होता है जब कभी भी इस भाव में पाप ग्रह स्थित होता है तो इस भाव से संबंधित
कारको व वस्तु की प्राप्ति
जातक को बड़ी मुश्किल व परेशानियों से ही हो पाती है | ऐसे में यदि चौथे
भाव में राहु हो तो जातक को माता का आशीर्वाद तो बहुत वर्षों तक मिलता रहता है परंतु
माता का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता उसे असाध्य रोग लगे रहते हैं,अनुभव मे देखने मे
आता है की चतुर्थ भाव में राहु के होने से जातक को जीवन में सुख अथवा आनंद की प्राप्ति
की अनुभूति मुश्किल से ही होती है |
जन्म लग्न या
चंद्र लग्न से चौथे भाव में राहु अथवा चतुर्थेश के साथ राहु हो तो जातक को उसकी अपनी
पिछली तीन पीढ़ियों में किसी की अकाल मृत्यु के कारण इस जन्म में अशांति,दुख,तकलीफ व ग्रह बाधा बनी रहती है,घर में असंतोषपूर्ण माहौल रहता है बहुधा ऐसा उसकी पिछले तीन चार पीढ़ी में किसी व्यक्ति की संपत्ति के
कारण हत्या अथवा आत्महत्या करने से होता है जिससे जातक को इस जन्म मे शास्त्र अनुसार ब्रह्म हत्या
के दोष का भागी बनना पडता हैं यदि इस दोष की
शांति ना कराई जाये तो यह दोष कई पीढ़ियो तक चलता रहता है जिससे जातक
को इस जन्म में तथा उसकी आने वाली पीढ़ी को अगले कई जन्मो तक बहुत से कष्ट भोगने अथवा भुगतने पड़ते हैं |
प्रस्तुत लेख मे
हमने ऐसी ही कुछ कुंडलियों के उदाहरण देने का प्रयास किया हैं जिनसे
इस चतुर्थ भाव के राहु के फलो को पिछले जन्मो मे किए गए पाप कर्मो के द्वारा
स्पष्ट रूप से देखा व समझा जा सकता हैं |
1)3 फरवरी 1944 रात 11:40 खेरपुरा मेष लग्न में जन्मे इस जातक की पत्रिका में चतुर्थ
भाव में कर्क राशि का राहु है | इस राहु के चतुर्थ भाव में कर्क
राशि में होने से ज्ञात होता है कि जातक के परिवार में किसी स्त्री को संपत्ति के कारण
घर से निकाल दिया गया था तथा उसने विष प्रयोग कर आत्महत्या कर ली थी जिस कारण जातक
को इस जन्म में सुख का अभाव है जातक के अपने माता पिता से संबंध अच्छे नहीं
हैं तथा जातक की पत्नी असाध्य रोग कैंसर से पीड़ित है जातक की दुर्घटना के
कारण पांव में रौड डाली गई है जिस कारण उसे चलने में भयंकर पीड़ा होती है इस प्रकार देखे तो जातक
शारीरिक रूप से,माता-पिता,पत्नी तथा हर प्रकार के सुख से वंचित है |
2)18/ 8/1944 9:35 कानपुर मेष
लग्न मे जन्मे इस जातक की पत्रिका मे राहू चौथे भाव मे कर्क राशि का हैं तथा चतुर्थेश चन्द्र अस्त अवस्था मे हैं जो कुल देवी का श्राप
बताता हैं घर की परेशानियों के कारण जातक अविवाहित रहा इनकी माता आज भी ज़िंदा हैं परंतु बहुत सी
बीमारियो से पीड़ित रही हैं इनके कई मकान हैं परंतु काम की अधिकता के कारण इन्हे ज़्यादा बाहर रहना पड़ता हैं जिससे घर का कोई सुख नहीं मिल पाता हैं |
3)2/2/1941 2:35 दोपहर उज्जैन मिथुन लग्न की इस पत्रिका में चतुर्थ भाव
में कन्या राशि का राहु स्थित है जिस कारण जातक की माता जीवित होते हुए भी हृदय रोग
से पीड़ित है जातक की पत्नी को भी हृदय रोग और मधुमेह की बीमारी है पंचमेश शुक्र
के संग सूर्य अष्टम
भाव में होने से जातक को संतान की तरफ से असंतोष है तथा नेत्र में बीमारी है जातक की पुत्रवधु
का व्यवहार भी उनके प्रति अनुचित है |
4)16/1/1938 20:00 बजे झालरापाटन
राजस्थान सिंह लग्न की इस पत्रिका मे चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि का राहु है जो पिछले जन्म
में भाई से संबंधित भूमि का कोई लेन-देन बताता है इस जातक की कोई पुत्र संतान
नहीं है तथा उसके भाई उससे हमेशा कुछ ना कुछ लाभ उठाते रहते हैं राहु की चंद्रमा
पर दृष्टि होने से जातक हृदय रोग से ग्रसित हो गया है | सप्तम भावस्थ
मंगल होने से पत्नी का स्वभाव बेहद उग्र है जिससे घर पर हमेशा अशांति का माहौल बना रहता
हैं पत्नी सुख में भी कमी लगी रहती है |
5)22/12/1937 23:05 झालरापाटन राजस्थान,सिंह लग्न कि इस पत्रिका में चौथे
भाव में वृश्चिक राशि का राहु शुक्र के साथ है जिससे पता चलता है कि जातक
ने पूर्व जन्म में अपने नाना की संपत्ति पर कब्जा कर लिया था इस कारण जातक को घर-सुख के अतिरिक्त योग्य संतान होने के बावजूद दूरी के कारण संतान सुख मिल पाना
मुश्किल हो रहा है | सप्तम भाव में मंगल होने से तथा सप्तमेश के अष्टम भाव मे होने से पत्नी का स्वास्थ्य
ठीक नहीं रहता तथा भाइयों से भी अनबन लगी रहती है |
6)30/8/1971 12:25 कोटा,तुला लग्न की इस पत्रिका में चतुर्थ भाव में मकर राशि का राहु मंगल सप्तमेश के साथ है शनि चतुर्थेश
अष्टम भाव मे हैं जिससे परिवार मे कुल देवता का श्राप प्रतीत होता हैं इस जातक की पत्नी को रात्रि में दो आकृतियां
दिखलाई देती हैं जिस कारण उसका पति और ससुर से हमेशा टकराव सा रहता है तथा यह परिवार से अलग रहती है इसका जेठ पागल है तथा उसकी
पत्नी उसे छोड़कर चली गई है |
7)16/2/1953 23:52 कोटा,तुला लग्न इस पत्रिका में चौथे भाव में मकर का राहु है उच्च का शनि लग्न में होने से शश योग का निर्माण हुआ
है जातक के सिर से पिता का साया
बचपन में ही उठ गया था | शुक्र के छठे भाव मे होने से तथा षष्ठेश
गुरु के सप्तम मे होने यह जातिका मधुमेह के रोगी रही तथा इसका अपने पति से सदैव टकराव
रहता है ऐसा लगता है जैसे किसी मृत आत्मा का श्राप इन्हें ढो ना पड़ रहा है इनका एकमात्र पुत्र स्वर्गवासी हो गया
तथा अब यह निसंतान रहती हैं |
8)23/1/1952 4:05 कोटा वृश्चिक लग्न इस पत्रिका में चतुर्थ
भाव में राहु होने से यह पता लगता है कि जातक ने पूर्व जन्मों में किसी की
कृषि की भूमि का अपहरण कर लिया था तथा उस जातक के आत्महत्या करने
से जातक को वर्तमान जन्म में बहुत से कष्टों का सामना करना पड़ रहा है जातक की एक संतान
गुजर चुकी है तथा एक संतान अपाहिज है | लग्नेश मंगल पर
राहु की दृष्टि होने से जातक को रक्तचाप एवं हृदय रोग हैं तथा भाइयों
से उसके संबंध अच्छे नहीं हैं |
9)12/3/1933 23:45
कोटा,वृश्चिक लग्न की इस पत्रिका में कुंभ राशि का राहु शुक्र संग चतुर्थ भाव में है जो पूर्व
जन्म में ज़मीन हड़पने के कारण चाचा की हत्या का प्रयोजन बताता है चतुर्थ भाव पापकर्तरी
में भी है | जातक ने कोई भी पुत्र संतान ना होने की वजह से अपने भाई को ही
अपना पुत्र बनाया था जो कुछ समय बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो गया जिससे भविष्य मे इन्हे भाई की संतान का ही उत्तरदायित्व निभाना पड़ा | सप्तमेश शुक्र के राहू संग होने से पत्नी असाध्य
रोग से पीड़ित रही हैं |
10)8/2/1971 3:20 देहरादून वृश्चिक लग्न मे जन्मे इस जातक की पत्रिका मे चौथे भाव मे कुम्भ राशि
का राहू हैं जो इनके द्वारा पिछले जन्म मे ब्राह्मण की कुटिया को जलाए जाने का पता बताता हैं जातक स्वयं
ज्योतिषी हैं उसकी माता का स्वस्थ्य हमेशा खराब रहा हैं उनके कई शल्य चिकित्साये हुई हैं जातक का संबंध अपने माता पिता से अच्छा नहीं हैं
जातक उनसे अलग रहता हैं तथा उसे घर का सुख नाममात्र का हैं उसे काम के सिलसिले मे अक्सर
बाहर रहना पड़ता हैं |
11)13/12/1950 7:23 फ़ैज़ाबाद उत्तर प्रदेश मे धनु लग्न मे जन्मे इस जातक की पत्रिका
मे मीन राशि का राहू चौथे भाव मे हैं जिससे इनके पिछले जन्म मे किए गए कर्मो द्वारा
ब्राह्मण दोष का पता चलता हैं जातक बहुत धनवान हैं
उसके कई काम हैं जिस कारण महीने मे 20 -25 दिन उसे पत्नी व बच्चो से दूर विदेशो मे रहना पड़ता हैं बहुत सी संपत्ति
होने के बावजूद घर का सुख नहीं मिल पाता जातक अपनी संतान व अपने सांझेदारों से काफी दुखी रहते हैं और उन्हे बहुत सी बीमारियाँ भी लगी हुई हैं |
12)19 मार्च 1985 4:00 बजे कोटा,मकर लग्न की इस पत्रिका में चतुर्थ भाव में
मेष का राहु मंगल संग है लग्न में नीच का बृहस्पति
होने से तथा उस पर शनि का प्रभाव होने से जातक को रात में अपनी स्वर्गीय माता के दर्शन होते
हैं जिससे जातक को रात मे नींद नहीं आती तथा घर का माहौल भी ठीक नहीं रहता |
ऐसे में श्राप मुक्ति के
लिए निम्न उपाय करने चाहिए |
1)जातक को स्वर्ण का
बना सर्प किसी कर्मकांडी ब्राह्मण को विधिवत राहू
का पूजन कराकर दान में देना
जाएं चाहिए |
2)श्रीमद भगवत कथा का पाठ अपने निवास पर कर्मकांडी ब्राह्मणो से कराना चाहिए |
3)गया में जाकर पितरों का श्राद्ध करना चाहिए |
4)विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ नित्य करना चाहिए |
5)हर अमावस्या को एक किशोर ब्राह्मण बालक को भोजन खीर सहित कराना चाहिए |
6)पित्रों हेतु रसोई मे पानी के स्थान
में सरसों के तेल का दिया जलाया जाना चाहिए |