दक्षिण भारत
में कुंडली के साथ-साथ नवांश कुंडली दिखाने का भी चलन है जबकि उत्तर भारत में नवांश
को षडवर्गों में से
एक समझा जाता है,कहीं-कहीं चंद्र लग्न को भी महत्व दिया जाता है पर यह
तथ्य अवश्य देखा जाना चाहिए की नवांश दर्शाने का क्या कारण हो सकता
है |
1)नवांश से हम उसके अंतिम अथवा प्रथम नवांश होने से जातक के
लग्न का सही व सटीक पता लगा सकते
हैं तजुर्बेकार ज्योतिषी ज़्यादातर ऐसा ही करते हैं |
2)उच्च का ग्रह नवांश में कैसा है कहीं नीच/स्वग्रही तो नहीं
उससे उसके फलित में असर पड़ता है बृहद जातक के अनुसार कुंडली का उच्च ग्रह यदि नवांश में नीच
अथवा शत्रु राशि का हो गया हो तो वह अपनी दशा-अंतर्दशा में
सही फल प्रदान नहीं करता है | इसी आधार पर बहुत से
विद्वान नवांश कुंडली को वृक्ष का फल मानते हैं जिसमें वृक्ष लग्न कुंडली को माना
जाता है और हम जानते ही हैं कि कोई भी बड़ा पेड़ फल तब तक नहीं दे सकता जब तक उसके
अंदर फल देने की क्षमता ना हो जबकि कभी-कभी छोटा पेड़ भी अपनी क्षमता के अनुसार बड़े-बड़े फल दे देता है |
3)इस नवांश से द्रेष्कोण देखना आसान हो जाता है हम
जानते हैं लग्न और नवांश के बाद द्रेष्कोण का ही महत्व होता है जिससे किसी भी ग्रह के अच्छे बुरे
फलों को ज्ञात किया जा सकता है फलदीपिका के अनुसार वर्गों के स्वामी यदि मजबूत हो तो
जातक राजा के समान होता है अर्थात नवांश,द्रेष्कोण और लग्न के स्वामी
मजबूत हो तो जातक राजा के समान सभी प्रकार के सुख सुविधा का भोग कर पाता है
4)नवांश से नक्षत्र में स्थित ग्रह का भान सही प्रकार से हो जाता है |
लग्न लग्न व चंद्र
लग्न में सिर्फ इतना फर्क होता है चंद्र राशि वाले भाव को लग्न मान लिया जाता हैं जिससे दशा-अंतर्दशा में फलित करने मे सुविधा होती है
परंतु यह भी देखा जाना चाहिए कि लग्नेश चंद्र लग्नेश से कहीं मजबूत तो नहीं है
यदि ऐसा हो तो लग्न को ही महत्व दिया जाना चाहिए चंद्र लग्न को नहीं क्योंकि लग्न जातक के शरीर का प्रतिनिधित्व
करता है जबकि चंद्रमा जातक की मानसिकता को बताता है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें