वह विज्ञान जिसके माध्यम से किसी के भी ऊपरी मन को एक कृत्रिम नींद मे
सुलाया जाता हैं और उस के आंतरिक मन को जाग्रत करके उसे नियंत्रण मे लेकर उससे
मनवांछित कार्य करवाये जा सकते हैं |
हिप्नोटिज्म मुख्यत: तीन बातों पर निर्भर करता हैं |
1) प्रत्यासा(उम्मीद)- माध्यम को आप पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए |
2) भावना- इससे सम्मोहन मे वृद्दि होती हैं व पूर्णता आती हैं |
3) प्रभाव – माध्यम पर एक विशेष प्रभाव स्थापित करना |
हिप्नोटिज्म की तीन अवस्थाए होती हैं |
1) साधारण - इस अवस्था मे माध्यम अपनी आँखें खोलने मे असमर्थ होता जाता हैं
व उसके हाथ पैर उसके नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं और उसे ज्ञात भी नहीं रहता की वह क्या कर
रहा हैं या उसकी अवस्था क्या हैं |
2) मध्यम – इस अवस्था मे कुछ गहरी नींद आ जाती हैं व भावना ग्रहण करने की
क्षमता शून्य हो जाती हैं और जो भी आज्ञा उसे दी जाती हैं वह उसे पालन करने लगता
हैं |
3) अचेतना – यह सबसे गहरी निद्रा अवस्था होती हैं जिसमे दिये गए सभी कार्य
पूर्ण होते हैं व जागने पर भी याद रहते हैं |
हिप्नोटिज्म का प्रारंभिक ज्ञान – हिप्नोटिज्म विज्ञान कोई भी सीख सकता
हैं यदि इसका गंभीरता के साथ अध्ययन किया जाये तो निश्चय ही सफलता मिलती हैं | इसके लिए माध्यम का सामान्य बुद्धि का होना ज़रूरी होता
हैं समवयस्क व्यक्ति को हिप्नोटिज्म करना आसान होता हैं इस नींद की अवस्था मे
व्यक्ति की आंतरिक अंतर्मुखी शक्तिया ज़्यादा विकसित शक्तिशाली अनुशासित और
प्रभावकारी हो जाती हैं जिसकी वजह से वह सभी प्रकार के कार्य कर सकता हैं |
इस विद्या से कष्ट व बुरी आदतों को छुड़ाया जा सकता हैं |बिना इच्छा के किसी भी हिप्नोटिज्म नहीं किया जा सकता हैं इसके लिए माध्यम
को आप पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए | इस क्रिया का उपयोग
मनोरंजन व खेल के लिए नहीं करना चाहिए |
योग- योग के 5 भेद हैं जो मनुष्यो की 5 शक्तिओ से लिए गए हैं |
हठयोग प्राणशक्ति से,ध्यान योग मन शक्ति से,कर्म योग क्रिया शक्ति से,भक्ति योग भावना शक्ति से तथा ज्ञान योग बुद्दि शक्ति से लिए गए हैं |
योग के 8 अंग हैं – यम अहिंसा,सत्या,असतेज,ब्रह्मचर्य तथा
अपरिग्रह का व्रत पालन ही यम कहलाता हैं |
नियम- स्वाध्याय,संतोष,तप,पवित्रता और ईश्वर के प्रति चिंतन को नियम कहते
हैं |
आसन- सुविधापूर्वक एक चित्त और स्थिर होकर बैठने को आसन कहते हैं |
प्राणायाम- श्वास और निश्वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की
क्रिया प्राणायाम कहलाती हैं |
प्रत्याहार- इंद्रियो को अपने भौतिक विषयो से हटाकर चित्त मे रम जाने की
क्रिया को प्रत्याहार कहते हैं |
इन पांचों मे पूर्णता प्राप्त करने के बाद ही शेष तीन अंगो को करना चाहिए |
धारण- चित्त को किसी एक विचार पर बांध लेने की क्रिया को धारण कहते हैं |
ध्यान- जिस अवस्था मे बंधा हुआ चित्त बाह्य कारणो से भी ना हटे उसे ध्यान
कहते हैं |
समाधि- जब ध्येय वस्तु के ध्यान मे खुद का भी ध्यान ना रहे उसे समाधि कहते
हैं |
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