सोमवार, 13 नवंबर 2017

हमारी दोगली मानसिकता


दो माह पहले गुड़गाँव के रियान इंटरनेशनल स्कूल मे हुई एक 7 वर्षीय बालक की हत्या ने जहां पूरे देश को झकझोर कर रख दिया वही हमारे समाज के दोगले चेहरे को भी उजागर करके रख दिया हमारे समाज मे जहां एक तरफ ये माना जाता रहा हैं की सरकारी स्कूल बेकार होते हैं वहाँ शिक्षा की अच्छी सुविधाए नहीं होती उनमे अधिकतर गरीब घरो से बच्चे पढ़ने आते हैं जो पढ़ाई कम अन्य ग़लत कामो मे ज़्यादा लगे रहते हैं आदि लेकिन पिछले एक साल मे देखे तो बच्चो के साथ अधिकतर ग़लत व दुखद घटनाएं आधुनिक शिक्षा के गढ़ माने जाने वाले ऊंचस्तरीय नामी प्राइवेट स्कूलो मे ही हुई हैं | अभी कुछ ही समय पहले दिल्ली के रियान इंटरनेशनल स्कूल मे एक बच्चे की लाश पानी के टँक मे पायी गयी थी | उसके बाद गाज़ियाबाद इंदिरापुरम के जी॰डी॰ गोयनका मे एक 8 वर्षीय बच्चे की गिरने से मौत हुई | वही अभी 3 दिन पहले नोएडा के पाथवेस स्कूल मे थप्पड़ मारने की घटना अभी पुरानी हुई ही नहीं थी की गुड़गाँव के इस नामी स्कूल का यह दुखद कांड सामने आ गया |

अभिभावक जहां ऊंची से ऊंची फीस देकर अपने बच्चे को अच्छे प्राइवेट स्कूल मे पढ़ाना चाहते हैं वही स्कूल भी पैसा कमाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं अधिकतर प्राइवेट स्कूल या तो बड़े नेताओ के हैं या बड़े कॉर्पोरेट घरानो के अथवा बड़े व्यापारियो के हैं उन्हे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की किनका बच्चा उनके यहाँ पढ़ता हैं उन्हे सिर्फ पैसा चाहिए और ऐसा हो भी क्यू ना आखिर हम आप जैसे अभिभावक ही उन्हे अपने बच्चे के साथ भारी भरकम फीस भी देते हैं अपने बच्चो की सुरक्षा सावधानी आदि के बारे मे स्कूल से कुछ जानकारी नहीं मांगते बस बच्चे को सो काल्ड नामी स्कूल मे भेजकर समाज मे यह दर्शाने की कोशिश करते हैं की हमारा बच्चा कितने बड़े स्कूल मे पढ़ता हैं और जब इन प्रकारो को कोई ऐसी घटना होती हैं तो कुछ दिन चीखते चिल्लाते हँगामा करते हैं फिर वही कहानी शुरू हो जाती हैं |

मेरा ये कदापि कहना नहीं हैं की आप अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे बड़े नामी स्कूलो मे ना भेजे बल्कि मैं ये कहना चाहता हूँ की ऐसे नामी स्कूलो मे बच्चे भेजने से पहले ये तो देखे की वो किस बात की इतनी फीस ले रहे हैं आखिर आपके बच्चे को क्या विशेष इन स्कूलो मे पढ़ाया या सिखाया जा रहा हैं चूंकि सभी बच्चे बड़े अथवा पैसे वाले घरो से होते हैं उनके पास वो सब सुविधा घर पर ही होती हैं जो उन्हे बाहरी दुनिया से जोड़ने व सीखने के लिए ज़रूरी होती हैं जहां तक सीखने सीखने की बात हैं तो शिक्षक होनेके कारण हम ये जानते हैं की बड़े व अमीर घरानो के बच्चे ही मोबाइल,लैपटाप आदि के कारण वो सब पहले से ही जान लेते हैं जो स्कूलो मे पढ़ाया नहीं गया होता वहाँ तो उन्हे उन सब कामो को करने का अवसर मिल जाता हैं जो वो घर पर नहीं कर सकते | ऐसे मे स्कूल की ज़रूरत सिर्फ इस बात का सर्टिफिकेट देने के लिए रह जाती हैं की आपका बच्चा दसवी अथवा 12वी पास हैं और कुछ नहीं और ये सर्टिफिकेट जीवन मे आपकी या आपके बच्चे की कामयाबी का सबूत कम से कम हमारे भारत देश मे तो नहीं हो सकता जहां बड़ी बड़ी संस्थाओ मे,विभागो मे,सरकार आदि मे परिवार वाद व भाई भतीजावाद के चलते अधिकतर कम पढे लिखे व नालायक ही काबिज हैं | पैसे का इतना बोलबाला हो चुका हैं की हम अपने नौनिहालों को ऐसे समाज की और धकेल रहे हैं जहां आदमी मशीनी होता जा रहा हैं इतने नामी स्कूल मे एक ऐसा व्यक्ति काम कर रहा होता हैं जो बच्चे से दुष्क्रम करने की चाह मे उसकी निर्दयता से हत्या कर देता हैं और अभिभावक पैसे कमाने की होड मे ये नहीं देखते की स्कूल का स्टाफ कैसा हैं व्यवस्था कैसी हैं जब कोई घटना होती हैं तब शोर मचाते हैं पर इससे क्या होगा क्या मारा गया बच्चा वापिस आ जाएगा जिसका गया हैं उससे पूंछों की उसने उस मासूम को कैसे कैसे सपने देखकर पाला होगा जब आप पैसा देते हैं तो स्कूल,अस्पताल या कोई भी संस्थान भी पैसा ही कमाना चाहेगी इसमे ग़लत क्या हैं वो क्यू सही रूप से पढ़ा लिखा स्वास्थ्य मानसिकता वाला स्टाफ रखना पसंद करेगी जिसे उसे ज़्यादा सैलरी देनी पड़े और उससे ऐसा पूछने वाला भी कौन हैं की उसने कितना पढ़ा लिखा समझदार स्टाफ रखा हैं |


जो हुआ अत्यंत दुखद हैं नहीं होना चाहिए था लेकिन क्या इन सबके लिए हम स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं बिलकुल हैं ज़रूरत हैं व्यवस्था को बदलने की मानसिकता को बदलने की,व्यवसायिकता व पाश्चात्य जगत की बराबरी के चलते आज देश के बच्चे व देश का भविष्य ऐसे जगह आ पहुंचा हैं की यदि अब भी हम नहीं बदले तो नौनिहालों को अच्छा भविष्य तो छोड़िए देने के लिए कुछ भी हमारे पास नहीं बचेगा यहा तक की नौनिहाल स्वयं भी नहीं,घृणा  होती हैं ऐसे समाज पर जो सिर्फ अपने दिखावे मात्र के लिए अपने आस्तित्व को ही समाप्त करने की और चल पड़ा हैं |    

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