शनि ग्रह के चारो और 27
अंश के कोण पर झुके हुये 3 छल्ले बने हैं जो शनि के वृष,मिथुन व कुम्भ राशि पर होने पर दिखाई देते हैं जबकि इन 3 छल्लो
के कोने शनि के सिंह व कुम्भ राशि पर होने पर दिखते हैं शनि के द्वारा धरती पर
बैंगनी तरंगे परावर्तित की जाती हैं जो की सभी ग्रहो द्वारा परावर्तित की जाने वाली तरंगो से शक्तिशाली होती हैं | बैंगनी रंग की वेवलेंथ प्रकाशित किरणों मे छोटी होती हैं
जबकि इसकी विकिरण ऊर्जा लाल विकिरण की ऊर्जा से भी अधिक होती हैं | शनि के नक्षत्र कर्क राशि मे पुष्य,वृश्चिक मे
अनुराधा तथा मीन मे उत्तराभाद्रपद होते हैं तथा हथेली मे शनि का क्षेत्र मध्यमा
उंगली व उसके नीचे का क्षेत्र होता हैं |
ट्यूला मकर व कुंभ राशियो के नक्षत्रो द्वारा जामुनी व बैंगनी रंग
परिवर्तित किए जाते हैं सूर्य व ग्रहो की दूरी के अनुसार ग्रहो को राशियो का
स्वामित्व दिया गया हैं मकर व कुम्भ राशि
के नक्षत्र द्वारा जो रंग परिवर्तित किया जाता हैं वह शनि का ही रंग हैं |
प्राचीन विद्वान सिंह राशि को सूर्य का स्वामित्व व मुलत्रिकोण प्रदान
करते हैं व सूर्य को देवताओ का तथा शनि को शैतानो का राजा अथवा स्वामी मानते हैं सूर्य को चुनौती देने हेतु कुम्भ राशि को शनि का स्वामित्व व
मुलत्रिकोण प्रदान किया गया हैं | वैज्ञानिक दृस्टी से देखे तो कुम्भ राशि व शनि की रोशनी एक समान हैं
शुभग्रहों को कर्क राशि से विपरीत दिशा मे मुलत्रिकोण राशिया दी गयी हैं जबकि अशुभ
ग्रहो को सिंह राशि से सीधी दिशा मे मुलत्रिकोण प्रदान किए गए हैं |
अप्रैल माह मे सूर्य अश्विनी नक्षत्र, मेष व अग्नि राशि मे प्रवेश करता हैं जहां से उत्तरी
ध्रुव मे दिन की अवधि,गर्मी व प्रकाश बढ़ जाते हैं इस कारण
मेष सूर्य की ऊंच तथा तुला सूर्य की नीच राशि होती हैं जबकि शनि के लिए यह विपरीत स्थिति होती हैं |
12 राशियो के अलग अलग रंग के प्रकाश होते हैं जो उन राशियो मे स्थित
नक्षत्रो के रंगो के प्रकाश होते हैं ग्रहो को उनका स्वामित्व व मुलत्रिकोण भी इसी
आधार पर दिया गया हैं |
तुला राशि का रंग जामुनी हैं जो शुक्र ग्रह को दिया गया हैं शुक्र शनि का मित्र हैं तुला का चिह्न तराज़ू हैं जो न्याय
व शांति का प्रतीक हैं जो भौतिकता व आध्यात्मिकता की साम्यता बताता हैं | मानव शरीर मे कुंडलिनी भी इसी भौतिकता व आध्यात्मिकता को
दर्शाती हैं तुला राशि मे 3 नक्षत्र हैं चित्रा जो भौतिक संपन्नता स्वार्थी व
असामाजिक प्रकृति तथा वासना को बताता हैं,स्वाति जो सामाजिक
आर्थिक धार्मिक सांस्कृतिक और वासनात्मक जीवन मे संतुलन बताता हैं तथा विशाखा जो
जप नियम ध्यान धारण समाधि आसान प्राणायाम तथा विद्रोही प्रकृति को बताता हैं | यदि ध्यान से देखे तो यह सभी विशेषताए शनि की प्रकर्ति से मेल खाती हैं
इसलिए शनि को तुला राशि मे ऊंच का माना गया हैं |
शनि का उद्देश्य परेशानी देना,कुछ भौतिक संपन्नता देना और आध्यात्मिक नेत्र खोलने हेतु कष्ट प्रदान करना
होता हैं जिससे व्यक्ति विशेष स्वयं को जान पाता हैं शनि तुला लग्न हेतु योगकारक तथा मेष लग्न हेतु
बाधाकारक माना जाता हैं |
वैदिक ग्रंथो मे जो सात लोक दिये गए हैं उनमे शनि प्रेत लोक का
प्रतिनिधित्व करते हैं मानव शरीर के सात चक्रो मे शनि सहस्त्रार चक्र के स्वामी
माने जाते हैं मानव शरीर के विभिन्न हिस्से विभिन्न रंगो के दर्शाते हैं जो स्पेक्ट्रोमीटर से देखे जा सकते
हैं इनमे मानव शरीर के दिमाग का रंग बैंगनी होता हैं इस बैंगनी रंग की अन्य रंगो के मुक़ाबले कमी या
अधिकता जातक को मस्तिष्क व स्नायु रोग दे सकती हैं आयुर्वेद मे शनि को वात प्रकृति दी गयी हैं जो की इसके बैंगनी रंग के कारण होती हैं इस बैंगनी रंग
को सही करने हेतु नीलम रत्न धरण करवाया जाता हैं जिससे वात पित्त व कफ नियंत्रण
मे आ जाते हैं |
शनि स्वयं पर पड़ने वाले 42% प्रकाश को वापस भेज देते हैं शनि की विशेषता
यह भी हैं की वह सभी शक्तिशाली विकिरणों जैसे एक्स रे व अल्ट्रावोयलट किरणों को
वापस भेज देता हैं इतना परिवर्तन होने से इसकी आंतरिक सतह ठंडी रहती हैं जिस कारण वैज्ञानिक इस पर जीवन का संभव होना मानते हैं |
देखे जाने वाले किरणों की वेवलेंथ 5810 ए होती हैं जो गुरु ग्रह के समान होती हैं इससे कम वेवलेंथ वाली किरणे जो दिखाई देती हैं शनि की
मित्र होती हैं जिनमे बुध शुक्र की किरणे होती हैं चन्द्र मंगल व सूर्य शनि के
शत्रु हैं जबकि गुरु शनि से समता रखता हैं इस कारण शनि गुरु का संबंध शुभता देता
हैं |
शनि अपने समस्त प्रभाव निम्न तरीको से देता हैं |
1)भाव मे बैठे ग्रह व नक्षत्र स्वामी होने पर |
2)भाव मे स्थित होने पर |
3)भाव स्वामी के नक्षत्र स्वामी होने पर |
4)भाव स्वामी होने पर |
5)इन सबको द्वारा देखे जा रहे ग्रह होने पर |
इन प्रभावों की प्रकृति शनि की स्थिति पर निर्भर करती हैं |
दृस्टी –सभी ग्रहो की भांति शनि को सप्तम दृस्टी दी गयी हैं परंतु इस शनि को इसके अतिरिक्त तीसरी व दसवी दृस्टी भी प्रदान की गयी हैं शक्तिशाली बैंगनी किरणे सहस्त्रार चक्र की होने के कारण शनि को आयु कारक माना गया हैं अष्टम भाव आयु बताता हैं अष्टम से अष्टम तीसरा भाव
होता हैं और तीसरे से आठवा भाव दसवा होता
हैं इस कारण शनि आयु कारक होने से सातवे के अलावा तीसरे व दसवे भाव को भी देखता
हैं | शनि की दृस्टी खतरनाक
बैंगनी किरणों के कारण अशुभ मानी जाती हैं जबकि गुरु की दृस्टी पीली किरणों के शुभ मानी जाती
हैं जिस कारण शनि की स्थिति शुभ व दृस्टी अशुभ मानी जाती हैं इसी कारण शनि का अशुभ
भाव 3,6,11 मे होना शुभ फल देता
हैं परंतु गुरु की दृस्टी शुभ व स्थिति अशुभ या सम मानी जाती हैं ऐसे मे यह दोनों ग्रह जब एक दूसरे पर दृस्टी डालते हैं तो बहुत शुभ परिणाम देते हैं | इसी प्रकार शनि शुक्र का दृस्टी संबंध भी शुभ होता हैं
परंतु विवाह हेतु यह संबंध अशुभता व विलंबता अवश्य देता हैं ( क्यूंकी जहां शुक्र भोग,व भौतिक आनंद
प्रदाता हैं वही शनि आंतरिक सच व आध्यात्मिकता प्रदान करते हैं ) चूंकि चन्द्र बुध अपना स्थान तेजी से बदलते हैं उनका शनि को दृस्टी
देना शुभाशुभ नहीं होता |
शनि आंतरिक सत्य की सीख,शोक व पीडा द्वारा देते हैं जिससे भौतिकता नष्ट होकर आध्यात्मिकता मिलती
हैं शनि का निर्बल लग्न से,लग्नेश,चन्द्र
चंद्रेश अथवा 5,9 से संबंध व्यक्ति को हठयोगी बनाता हैं | शनि वृष,तुला लग्नों हेतु योगकारक तथा 1,3,5
लग्नों हेतु योगभंग
कारक होता हैं अन्य लग्नों मे यह शुभाशुभ प्रभाव अपनी स्थिति द्वारा देते हैं
राशियो मे यह 2 लगातार राशियो के स्वामी होते हैं जिनमे से एक शुभ व एक अशुभ होती
हैं शुभ शनि के लग्न से संबन्धित होने पर ही व्यक्ति लोकप्रिय होता हैं ( ऐसा संत-सन्यासीयो
की पत्रिका मे भी पाया जाता हैं ) शनि का असल मक़सद सत्य को
बताना हैं व्यक्ति जितना पीड़ित होता हैं उतना ही वह सीखता हैं यही शनि के प्रभाव
की विशेषता हैं शनि शुक्र की दशा अंतर्दशा मे यह दोनों एक दूसरे का फल प्रदान करते
हैं शनि भौतिकता हेतु अशुभ व व आध्यात्मिकता हेतु शुभ हैं मोक्षदाता हैं मारक रूप
मे यह सभी ग्रहो से बली हैं जीवन की ऊंच नीचता से यह हमें सबक देता हैं शनि के
बिना कोई भी शख्शियत ना तो भौतिक जगत मे और नाही आध्यात्मिक जगत मे महान बन सकती
हैं कोई भी अन्य ग्रह शनि से इस
संदर्भ मे मुकाबला नहीं कर सकता |
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