हमारी इस धरती पर सभी ग्रहो मे से शनि ग्रह का प्रभाव मानवो व वस्तुओ पर सबसे ज़्यादा पड़ता
हैं संभवत: इसी कारण इस शनि ग्रह की स्वयं की प्रकृति व स्वभाव तथा इसके द्वारा मानव जीवन पर पड़ने वाले
प्रभाव के बारे मे जानना फलित ज्योतिष के लिए आवश्यक हो जाता हैं | यह शनि एक ऐसा ग्रह हैं जो हैं तो हमारी धरती से सबसे दूर परंतु सभी नजदीकी
ग्रहो से भी ज़्यादा प्रभाव दर्शाता हैं कतिपय विद्वानो द्वारा सबसे कमजोर समझा
जाने वाला यह ग्रह शनि हमारी इस धरती पर मानव जीवन को नियंत्रित करने मे सबसे
ज़्यादा मजबूत ग्रह साबित होता हैं |
साधारणत: यह माना जाता हैं की शनि
प्रकृतिनुसार एक पाप ग्रह हैं जो प्रत्येक वस्तु के अंधेरे पक्ष को दिखा कर बुराई
व परेशानी ही देता हैं परंतु वास्तव मे ऐसा मानना पूर्णतया सत्य नहीं हैं बल्कि
भ्रामक प्रचार भी हैं |
यह भी एक विरोधाभास हैं की शनि चमकदार सूर्य का पुत्र होने के
बावजूद अंधेरे का प्रतीक हैं और इसमे सूर्य की सभी शक्तियाँ नकारात्मक रूप से हैं
जिससे सूर्य को भी क्रूर ग्रह की संज्ञा मे रखा जाता हैं |
पुराने शास्त्रो मे इस
शनि को दुबला,पतला,बदसूरत,आलसी,भयानक व धीमी गति से चलने
के कारण लंगड़ा कहा गया हैं | यह एक राशि मे 2.5 वर्ष
गोचर करता हैं जिस कारण इसे पूरे भचक्र मे 12 राशियो का गोचर करने मे 30 वर्ष लग जाते
हैं अब
चूंकि
हमारी इस धरती पर मनुष्य का जीवन 90 वर्ष के करीब माना जाता हैं इस शनि का किसी के भी जीवन मे
केवल 3 बार ही भ्रमण हो पाता हैं | 30 वर्ष की आयु तक जो पहला शनि का भ्रमण होता हैं वो
जातक विशेष को कष्ट व बुरे प्रभाव देता हैं दूसरा भ्रमण जो 60 वर्ष की आयु तक होता
हैं लाभ व शुभता देने वाला होता हैं परंतु तीसरा भ्रमण जो 90 वर्ष की आयु तक होता हैं अत्यंत
कष्टदायक व मृत्युप्रदान करने वाला होता हैं ज़्यादातर जातक शनि के इस तीसरे भ्रमण से बच
नहीं पाते हैं
और उनकी मृत्यु हो जाती हैं |
इस शनि का चन्द्र राशि से अष्टम
गोचर भी अशुभता ही प्रदान करता हैं यह भी 90 वर्ष के जीवन मे 3 बार ही हो पाता हैं
इस प्रकार से धरती पर प्रत्येक व्यक्ति अथवा जातक को अपने जीवन के 30 वर्ष
(7.5*3+2.5*3=30) इस शनि ग्रह के रहमोकरम पर रहना पड़ता हैं जो की जीवन का एक
तिहाई हिस्सा होता हैं |
शनि ग्रह का शत्रु मंगल ग्रह माना जाता हैं जब भी
इनका गोचर मे किसी भी प्रकार से संबंध बनता हैं धरती पर युद्ध,दुर्घटना,अग्निकांड,बीमारी,प्राकृतिक आपदाए,बाढ़,व तूफान आदि से भयंकर तबाही होती हैं जिनसे जान माल का काफी नुकसान
होता हैं | इसी प्रकार से शनि राहू व शनि केतू का गोचरीय संबंध भी धरती पर शुभता
प्रदान नहीं करता यह संबंध यदि जातक विशेष की पत्रिका मे होतो जातक स्नायु संबंधी
रोगो व मानसिक बीमारी का शिकार रहता हैं जिसका प्रभाव दशा अंतर्दशा मे जातक
विशेष पर ज्यादा दिखाई पड़ता हैं |
कालपुरुष की पत्रिका मे शनि
मकर व कुम्भ राशि का स्वामी माना जाता हैं परंतु इनमे से कौन सी राशि ज़्यादा बेहतर
हैं इसपर हमेशा से विवाद रहता हैं अनुभव के आधार पर मकर राशि ज़्यादा शुभ जान पड़ती
हैं क्यूंकी जब यह लग्न मे होती हैं तब दूसरे भाव मे कुम्भ राशि पड़ती हैं जो की
लाभ भाव की राशि बनती हैं परंतु जब कुम्भ लग्न होता हैं तब मकर राशि व्यय भाव की राशि
बन जाती हैं चूंकि इन दोनों राशियो का स्वामी शनि ही हैं इसलिए मकर राशि ज़्यादा
शुभता वाली राशि हुई |
मकर राशि मे जन्म लेने वाले जातक पतले,लंबे,ईर्ष्यालु व अपने आप मे मग्न रहने वाले होते हैं जबकि कुम्भ राशि मे जन्मे जातक
दार्शनिक,आलसी,अवसादग्रस्त,व बिना वजह के चिंता करने वाले व मधुरभाषी होते हैं |
शनि पर किसी भी प्रकार
से पाप ग्रह का प्रभाव उन भावो के कारकत्वों को प्रभावित करता हैं जिस भाव का
स्वामी होता हैं | शनि ग्रह को स्थान की वृद्दि करने वाला कहा जाता हैं
इसलिए इसे अष्टम भाव मे होने पर आयुकारक माना जाता हैं परंतु इस अष्टम भाव मे होने
पर शनि या तो विवाह मे देरी करवाते हैं या पारिवारिक सुख मे कमी करते हैं |
कुंडली के केंद्र स्थान मे ऊंच अथवा
स्वग्रही शनि “शश” नामक पंच महापुरुष
मे से एक योग का निर्माण करते हैं यह योग जातक को राजा अथवा राजा समान बनाता हैं
जिसके पास जीवन की सभी सुख सुविधाए होती हैं परंतु जातक के पास यह सुख सुविधाए
कैसे आती हैं यह एक नैतिकता से भरा प्रश्न होता हैं |
जन्म पत्रिका मे शनि की स्थिति से
ज़्यादा उसकी दृस्टी अपना महत्व रखती हैं क्यूंकी शनि को 7वी दृस्टी के अलावा 3री व 10वी
दृस्टी भी प्रदान की गयी हैं शनि जातक विशेष की लगभग आधी कुंडली पर अपना नियंत्रण कर लेता हैं और उसके जीवन पर
अपना विशेष प्रभाव रखता हैं संभवत; इसी कारण शनि को कर्म व लाभ दोनों का स्वामी बनाया गया हैं और
यह दोनों भाव कुंडली मे एक साथ होते हैं |
धरती पर शनि आम जनता अथवा प्रजा का
प्रतिनिधित्व करता हैं भाषाओ मे इसे अँग्रेजी भाषा का कारक माना गया हैं इसका वाहन
कव्वे को बताया गया हैं नीलम इसका रत्न व सुनसान उजड़ा इलाका इसका प्रिय स्थान होता हैं |
दार्शनिक नज़रिये से देखे तो यह शनि पहले
जातक को गरीबी दिखाकर उसका गर्व तोड़ देते हैं फिर दुख शोक देकर उसको जीवन का असली
सच दिखाते हैं जिनसे त्रस्त
होकर जातक भगवान की और मुड़ता हैं और उसे आत्मिक ज्ञान प्राप्त होता हैं क्यूंकी
यदि दुख तकलीफ ना मिले तो जातक भगवान को याद नहीं करेगा और जीवन की सत्यता को नहीं
समझ पाएगा इन सबके लिए उसे एक ऐसे गुरु की आवशकता होती हैं जो उससे यह सब करवा सके
और ज्योतिषीय ग्रहो मे शनि से अच्छा यह काम कोई और अन्य ग्रह नहीं कर सकता इसलिए ज्योतिष मे शनि का
अपना अलग ही महत्व हो जाता हैं |
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