मंगलवार, 31 जनवरी 2017

ग्रह शुभ व अशुभ कैसे ?



ज्योतिष अध्ययन करते समय अक्सर यह कहा व सुना जाता हैं की गुरु ग्रह शुभ हैं शुक्र ग्रह उससे कम शुभ हैं तथा शनि सबसे ज्यादा अशुभ ग्रह हैं पर अनुभव मे यह कथन पूर्ण रूप से सत्य नहीं पाया जाता| बल्कि ऐसा पाया जाता हैं की ग्रह भी हम मानवो की तरह शुभ व अशुभ दोनों प्रकार से व्यवहार कर रहे होते हैं | प्रत्येक व्यक्ति हेतु शुभाशुभ ग्रह उसकी कुंडली अनुसार नियत व निश्चित होते हैं जबकि हमारे प्राचीन विद्वानो ने प्रत्येक ग्रह को उसकी प्रकृति व स्वभाव के अनुसार शुभ अथवा शुभ ग्रह माना हैं |

ज्योतिष के पितामह महाऋषि पाराशर ने बुध,गुरु,शुक्र व पूर्ण चन्द्र को शुभ तथा सूर्य,शनि,राहू,केतू,मंगल व अर्ध चन्द्र को अशुभ ग्रहो की श्रेणी मे रखा हैं उनका ऐसा कहने अथवा मानने के पीछे उदेश्य क्या रहा हैं यह किसी भी ग्रंथ मे नहीं लिखा गया हैं इस प्रश्न का संभवत:हल जानने के लिए हमें ज्योतिष के मूल आधार तत्वो को सबसे पहले भली भांति समझना होगा |

1)हमारे भचक्र की उत्तरी 6 राशियाँ ( 1,2,3,4,5,6 ) सांसारिक हैं जिन पर राहू का नियंत्रण रहता हैं जबकि भचक्र की शेष 6 दक्षिणी राशियाँ ( 7,8,9,10,11,12 ) आत्मिक हैं जिन  पर केतू का नियंत्रण रहता हैं |

2)आत्मिक अर्थात शुभ, आनंद व खुशी उत्पादित करने की हमारे दिमाग की अवस्था होती हैं जबकि सांसारिक अर्थात अशुभ, सुख व दुख उत्पादित करने की हमारे शरीर व इंद्रियो की अवस्था होती हैं |

3)आत्मिक अथवा शुभ मानवता की भलाई के लिए स्वयं को बलिदान करने को तत्पर रहते हैं जबकि सांसारिक अथवा अशुभ अपने स्वार्थ के कारण मानवता को नुकसान देने के लिए तत्पर रहते हैं |

4)ग्रहो की सकारात्मक शक्ति उनकी नकारात्मक शक्ति को हमेशा बदलती रहती हैं |

5)सूर्य,चन्द्र राहू पूर्ण रूप से सांसारिक ग्रह हैं जिनका भचक्र की उत्तरी राशियो अर्थात सांसारिक राशियो (1,2,3,4,5,6 ) पर प्रभाव रहता हैं | जिसे हम इस प्रकार से समझ सकते हैं |

सूर्य बुध की तरह 2 प्रकार से सकारात्मक ग्रह हैं जिसका सिंह राशि पर प्रभुत्व व मेष राशि मे ऊंचता हैं |

चन्द्र 2 प्रकार से नकारात्मक ग्रह हैं जिसकी कर्क राशि मे प्रभुत्व व वृष राशि मे ऊंचता हैं |

राहू नकारात्मक व सकारात्मक दोनों होने से संतुलित हो जाता हैं क्यूंकी इसकी नकारात्मकता  कन्या राशि मे प्रभुत्व व सकारात्मकता मिथुन राशि मे ऊंचता हैं |

अब चूंकि राहू संतुलित अवस्था मे हैं वो असंतुलित सकारात्मक सूर्य व असंतुलित नकारात्मक चन्द्र पर नियंत्रण रखता हैं जिस कारण सभी 6 उत्तरी राशियो पर उसका प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण हो जाता हैं |

राहू व सूर्य प्रकृति अनुसार अशुभ अथवा पाप ग्रह हैं चन्द्र भी पाप ग्रह संग पाप प्रभाव देता हैं विशेषकर जब वह सूर्य के ठीक सामने हो अर्थात पूर्णमासी का हो परंतु यह चन्द्र जब भचक्र की दक्षिणी आत्मिक राशि विशेषकर कुम्भ मे होता हैं ( जब सूर्य सिंह मे होता हैं ) तब शुभता प्रदान करता हैं |

गुरु,शुक्र,बुध,मंगल,शनि व केतू पूर्ण रूप से आत्मिक ग्रह हैं जिनका भचक्र की अंतिम 6 दक्षिणी राशियो पर प्रभाव हैं जिसे इस प्रकार समझा जा सकता हैं |

गुरु का सकारात्मक आत्मिक प्रभुत्व धनु राशि पर हैं जबकि नकारात्मक सांसारिक राशि कर्क मे वह ऊंचता प्राप्त करता हैं | गुरु की नकारात्मक सांसारिक दृस्टी को उसकी सकारात्मक आत्मिक दृस्टी बदल देती हैं जिससे गुरु का स्वार्थपना स्वार्थ हीनता मे बदलकर हमारी धरती पर उसे जीवन हेतु सबसे शुभ ग्रह बना देता हैं |

भारतीय ज्योतिष मे इसी कारण गुरु ग्रह को विशेष महत्व प्रदान कर 4 भावो (2,5,9,व 11 ) का कारक कहा गया हैं जिनसे क्रमश: धन,संतान,धर्म व सम्मान देखा जाता हैं जबकि अन्य 8 ग्रहो को 1-1 भावो का कारक कहा गया हैं जिसमे राहू को ( मंगल को नहीं ) छठे भाव का तथा केतू को ( शनि को नहीं ) बारहवे भाव का कारक कहा गया हैं |

बुध ग्रह को सकारात्मक सांसारिक राशि मिथुन का प्रभुत्व तथा कारात्मक आत्मिक राशि कुम्भ मे ऊंचता दी गयी हैं इस विपरीतता के कारण बुध स्वयं को नपुंसक दर्शाते हैं और भचक्र मे किसी भी वृत ( उत्तरी अथवा दक्षिणी ) मे अपना कोई फल प्रदान नहीं करते तथा अपने सहचर्य के अनुसार ही अपना फल शुभ ग्रहो गुरु,शुक्र व पूर्ण चन्द्र संग शुभ तथा अशुभ ग्रहो के संग अशुभ प्रदान करते हैं |

शुक्र का सकारात्मक प्रभुत्व आत्मिक राशि तुला मे हैं जबकि नकारात्मक ऊंचता आत्मिक राशि मीन मे हैं तथा नकारात्मक प्रभुत्व सांसारिक राशि वृष मे हैं उसकी संतुलित आत्मिकता उसके नकारात्मक सांसारिक स्वार्थ को बदल देती हैं जिससे वह धरती पर गुरु के बाद सबसे शुभ ग्रह माना जाता हैं |

मंगल का नकारात्मक प्रभुत्व आत्मिक राशि वृश्चिक राशि का हैं जबकि नकारात्मक ऊंचता आत्मिक मकर राशि मे हैं और उसका सकारात्मक प्रभुत्व सांसरिक राशि मेष मे हैं इसकी सकारात्मक सांसारिक स्वार्थता आत्मिक नकारात्मकता मे बदल जाती हैं जिससे यह धरती पर पाप ग्रह का प्रभाव देने लगता हैं |

शनि की नकारात्मक व सकारात्मक प्रभु सत्ता आत्मिक मकर व कुम्भ राशियो मे हैं जबकि सकारात्मक ऊंचता आत्मिक तुला राशि मे हैं | शनि केतू की तरह ही पूर्ण आत्मिक ग्रह हैं जिसका मानता से सीधा कोई लगाव नहीं हैं इसी कारण इस शनि को मानव शरीर का अंत करने वाला मृत्यु देव समझा गया हैं जिस कारण इसे पाप ग्रह की श्रेणी मे रखा गया हैं | इस शनि का कार्य भी केतू की ही भांति पवित्रता लिए हुये होता हैं जिससे मानव चरित्र का विकास कठिन परिश्रम,शोक,चिंता व पीड़ा के द्वारा होता हैं और मानव मानवता की सेवा करनेवाला बन जाता हैं |

केतू अपनी सकारात्मक ऊंचता आत्मिक धनु राशि मे व नकारात्मक प्रभुत्व आत्मिक मीन राशि मे प्रदान करता हैं जिस कारण केतू संतुलित आत्मिक ग्रह बन गुरु,बुध,शुक्र व मंगल पर नियंत्रण रखता हैं |  

शनि की ही भांति यह केतू भी पूर्ण आत्मिक हैं जिसका धरती पर मानवता से कोई सीधा लगाव नहीं हैं इसलिए केतू को भी पाप ग्रहो की श्रेणी मे रखा गया हैं | यह केतू भी शनि की तरह मानव को तपाकर उसके सभी बंधनो से उसे मुक्त कर अपनी आत्मा को पहचानने का ज्ञान देता हैं जिससे मानव सांसारिक प्रयोजनों को छोड़ एकाग्र होकर परमात्मा को पाने की और बने लगता हैं और अंतत: समाधिस्थ होकर मोक्ष पाता हैं |

शनि का तरीका जहां सीधा मानव के शरीर व मस्तिष्क को स्वार्थ से परे करना होता हैं वही केतू का तरीका अप्रत्यक्ष रूप से मानव को कार्य बंधन व बाहरी आडंबरो से भीतर की और ले जाने का होता हैं |



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