कुंडली मे 1,5,9 भाव
सबसे शुभ,4,7,10 शुभ,2,3,11 सम तथा 6,8,12
अशुभ कहें जाते हैं |
1)ग्रह अपनी मूल त्रिकोण राशि का पूरा फल व स्वराशि का आधा फल प्रदान करते
हैं अर्थात मेष लग्न मे गुरु भाग्य स्थान का पूरा व द्वादश स्थान का आधा फल प्रदान
करेगा यह नियम फलदीपिका के 15वे अध्याय भाव चिंता से लिया गया हैं |
2)ज्योतिष रत्नाकर के अनुसार ग्रहो का अन्य ग्रहो व भावो पर प्रभाव उनके
दीप्तांशो पर निर्भर करता हैं जो इस प्रकार से हैं |
सूर्य 10 अंश,चन्द्र 5
अंश,मंगल 4 अंश,बुध 3.5 अंश,गुरु व शनि 4.5 अंश,शुक्र 3 अंश,राहू केतू जिस ग्रह की राशि मे होंगे उनके दीप्तांश उसी ग्रह के अनुसार
होंगे |
उदाहरण के लिए यदि लग्न 13 अंश का हैं और भाग्य स्थान मे गुरु 18 अंश का
हैं तो गुरु का प्रभाव किसी भी दृस्ट गृह व भाव पर 4.5 अंश आगे या पीछे तक ही होगा
इस प्रकार गुरु के अंश लग्न के अंश से अधिक होने पर उसका प्रभाव ना तो नवम भाव पर
होगा और ना ही लग्न पर यदि यह अंतर 4.5 से कम होता तब प्रभाव होता | इस प्रकार अंतर अधिक होने पर गुरु का प्रभाव किसी भी भाव
पर नहीं हैं | अब यदि तीसरे भाव मे सूर्य 10 अंश का हैं तो
उसका प्रभाव तीसरे व नवम दोनों भावो पर होगा गुरु के अंश मे केवल 8 का अंतर होने
से (सूर्य दीप्तांश से ज़्यादा) सूर्य की गुरु पर दृस्टी मानी जाएगी जबकि गुरु की
सूर्य पर नहीं | इसी प्रकार अन्य ग्रहो का प्रभाव होगा |
3)भाव स्वामी की अपेक्षा भाव का बलाबल प्रमुख होता हैं जिसके अनुसार यदि
किसी भाव पर अशुभ प्रभाव पड़ रहा होतो उसके स्वामी का बली होना अधिक सहायक नहीं
होगा जबकि शुभ प्रभाव होने पर उसके स्वामी की निर्बलता कम करने मे सहायक होगा | ऐसा (सचिन तेंदुलकर)की कुंडली मे देख सकते हैं |
4)नवांश कुंडली का महत्व
5)वक्री ग्रह यदि अस्त ना होतो युवा अवस्था मे नीच राशि पर होने पर भी बली
होते हैं |
6) जो ग्रह जिस भाव मे हो उसके स्वामी का बलाबल भाव मे बैठे ग्रह को
प्रभावित करेगा | उदाहरण के लिए
सिंह राशि मे बैठे मंगल को सूर्य का बली होना बढ़ाएगा जबकि बलहीन होना मंगल को निर्बल
करेगा | यह बल दो प्रकार का होगा साधारण बल तथा विशेष बल |
साधारण बल मे ग्रह का अस्त/ऊंच/नीच/मित्र राशि मे होना तथा
बाल/कुमार/प्रोढ़/वृद्द अवस्था मे होना |
विशेष बल मे ग्रह की भाव पर स्थिति,ग्रह की मूल त्रिकोण/सम राशि पर पड़ने वाले प्रभाव/जिस राशि मे ग्रह हैं उसके
स्वामी की स्थिति |
आइए अब उपरोक्त नियमो के अनुसार कुंडली का अध्ययन करते हैं | 5/11/1970 14:25 दिल्ली की यह पत्रिका कुम्भ लग्न
व कुम्भ नवांश की हैं |
1)प्रथम नियम के अनुसार कुंडली के शुभ,अशुभ व सम ग्रहो का निर्धारण करे |
सूर्य सप्तम भाव का स्वामी होने से शुभ तथा साथ मे मारकेश भी हैं |
चन्द्र छठे भाव का स्वामी होने से अशुभ हैं |
मंगल सम राशि दशम मे व मूल त्रिकोण राशि तीसरे भाव मे होने से शुभ
हैं |
बुध सम राशि पंचम मे व मूल त्रिकोण राशि अष्टम मे होने से अशुभ हैं परंतु
पंचम भाव के फल भी देगा जिसके लिए हमें
कारक गुरु को भी देखना होगा |
गुरु मूल त्रिकोण राशि लाभ भाव मे होने से तथा सम राशि दूसरे भाव मे होने
से सम ग्रह हैं इसकी स्थिति के अनुसार ही इसका फल होगा |
शुक्र भाग्य(मूल त्रिकोण) व चतुर्थ भाव(सम राशि) का स्वामी होने से अत्यंत
शुभ हैं |
शनि लग्न व द्वादश का स्वामी होने से शुभ हैं |
इस प्रकार इस कुंडली मे सूर्य,शुक्र,शनि,मंगल शुभ तथा चन्द्र,बुध,अशुभ व गुरु सम ग्रह हुये |
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर व्याख्यान
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