शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

2025 मे 12 चीनी पशु राशियों के लिए भविष्यवाणियाँ और उपाय


अपने जन्म के वर्ष से अपनी पशु राशि का पता लगाएँ

चूहा (1948, 1960, 1972, 1984, 1996, 2008, 2020)

2025 वर्ष का अवलोकन : चूहे के वर्ष में जन्मे लोगों को इस वर्ष सब तरफ से सुधार देखने को मिलेगा । करियर और वित्तीय अवसरों के लिए अच्छा समय आएगा पदोन्नति हो सकती है कुल मिलाकर करियर में इस वर्ष किस्मत चमकेगी । अधिक सफलता पाने के लिए अपने काम में लगातार लगे रहें । वित्त और निवेश योजनाओं के साथ सतर्क रहें |

स्वास्थ्य : इस पूरे वर्ष हालाँकि आप स्वस्थ और सकारात्मक महसूस करेंगे फिर भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए निवारक उपाय करते रहे और छोटी - मोटी बीमारियों से भी सावधान रहें । मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें । अधिक आराम करें और बाहरी गतिविधियों में शामिल हों ; खुद को तरोताजा करने के लिए बगीचों में जाएँ ।

करियर और धन : करियर में बहुत सुधार होगा, और काम पर पहचान मिलेगी । करियर के बहुत से नए अवसर और मौजूदा भूमिका में पदोन्नति के संकेत हैं । वरिष्ठों के साथ अच्छा संचार करियर को बढ़ावा देगा और प्रेरित महसूस करेगा । आय में भी सुधार होगा, और जो लोग काम कर रहे हैं वे वेतन वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं ।

संबंध और प्रेम : अपने नेटवर्क का विस्तार करने और नए लोगों से जुड़ने का साल रहेगा ! सामाजिक अवसरों में वृद्धि होगी । लाभार्थियों का समर्थन मिलेगा, जिससे टीमवर्क और करियर को बढ़ावा मिलेगा । विवाहित लोगों का अपने जीवनसाथी के साथ अच्छा रिश्ता रहेगा । सिंगल लोगों को अच्छा साथी मिल सकेगा कुल मिलाकर इस वर्ष रिलेशनशिप लक बहुत अच्छा है ।

2025 में लकी रंग: पीला, भूरा, सफेद

लकी दिशा: दक्षिण-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम

सहायक राशि: ड्रैगन, बंदर

2025 के लिए लकी चार्म: रूटीलेटेड क्वार्ट्ज या स्मोकी क्वार्ट्ज ब्रेसलेट पहनें; उत्तर या उत्तर - पूर्व में चूहे की आकृति लगाकर प्रदर्शित करें ।

 

गुरुवार, 30 जनवरी 2025

सूर्य व चन्द्र परिवार

सूर्य और चंद्रमा को एक-एक राशियां प्रदान की गई हैं तथा सूर्य से आगे की ओर तथा चंद्रमा से पीछे की ओर जाने पर हमें क्रमश: बुध,शुक्र,मंगल,गुरु शनि की राशियां क्रम से मिलती हैं जो हमारे ब्रह्मांड में सौर परिवार अथवा चंद्र परिवार स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं अब यदि इसी क्रम को समझे तो राजा और रानी को सर्वप्रथम राजकुमार अर्थात बुद्ध की आवश्यकता होती है उसके बाद शुक्र (अमात्य कारक) मंगल (सेनापति) गुरु (ज्ञान कारक) तथा शनि (सेवक) की आवश्यकता क्रम अनुसार जीवन भर चलती रहती है यही हमारे ज्योतिष का मूलभेद है आप चाहे चंद्र परिवार से आए चाहे सूर्य परिवार से आए आपको नियमित यही क्रम लिया जाएगा यदि आप चंद्र परिवार से आते हैं तो आपको 10 वर्ष शुरू के पश्चात 17 वर्ष बुद्ध के 20 वर्ष शुक्र के 7 वर्ष मंगल के 16 वर्ष गुरु तथा 19 वर्ष शनि सेवक के चाहिए होते हैं यही हमारी विशोन्तरी दशा का क्रम निर्धारण करती हैं मानव जीवन का प्रभाव भी कुछ ऐसा ही चलता है | आप देखें जब आपका जन्म होता है तो उसके 17 वर्ष आपको शिक्षा साथी भाई बहन यार दोस्त विनोद हास्य खेलकूद के मिलते हैं जो बुद्ध के होते हैं उसके बाद 20 वर्ष जो की वैवाहिक जीवन भोग विलास जीवनसाथी से संबन्धित होते हैं उसके बाद 7 वर्ष आपको स्वयं को साबित करने (मंगल) में लगते हैं तथा यह 7 वर्ष गुजरने के बाद 16 वर्ष आपको गुरु अथवा पिता का मार्गदर्शन चाहिए होता है जिसके तहत आप धर्म - कर्म अध्यात्म की ओर बढ़ते हैं इसके आगे 19 वर्ष की आयु जो शेष रह जाती है उसमें आपको सेवक की आवश्यकता पड़ती है जो शनि ग्रह से संबंधित देखे जाते हैं |

इसी को अगर हम सूर्य के क्रम से देखें तो वहां भी ऐसा ही होता है परंतु सूर्य की विशोन्तरी दशा चन्द्र दशा से थोड़ी कम अर्थात 6 वर्ष की होती है | इस कारण सूर्य से आगे की ओर राशि वाले लोग अपने जीवन में सफलता थोड़ी जल्दी प्राप्त कर लेते हैं जिनमें क्रमशः सिंह कन्या तुला वृश्चिक धनु और मकर राशि के लोग होते हैं जबकि चंद्र परिवार से संबंधित लोग जिनमे क्रमशः मिथुन वृषभ मेष मीन और कुंभ आती है इनका जीवन में थोड़ा देर से उदय होता है |

इस प्रकार यदि हम देखें तो सूर्य और चंद्रमा आकाश में विचरण करते हुए अपने दो परिवारों का निर्माण करते हैं जिनसे धरती पर जीवन चलता रहता है पुरुष राशियों में हम जानते ही हैं विषम राशियाँ रखी गई हैं तथा चंद्र राशियों में सम राशियों को रखा गया है इस आधार पर भी आप देखे तो दोनों और बराबर बराबर स्त्री पुरुष राशियाँ बनती हैं परंतु फिर भी जीवन के उदाहरण को आप ज्योतिष के तरीके से देखें तो आप पाएंगे कि सूर्य परिवार के लोगों ने चंद्र परिवार के मुकाबले ज्यादा तरक्की की है जिसको जितनी कम अवस्था में सफलता प्राप्त हो जाएगी उसको उतना ही धरती पर सफल माना जाता है वहीं कुछ व्यक्तियों को एक उम्र के बाद सफलता नसीब होती है और यह प्रत्येक लग्न के अनुसार अलग - अलग हो सकती है इसलिए जब भी कभी कम उम्र में किसी जातक को आप सफल या प्रसिद्ध पाएंगे तो अवश्य ध्यान रखिएगा की काफी हद तक उसके लग्न अथवा चन्द्र लग्न का सौर परिवार से संबंध हो सकता है यहां यह भी देख लीजिएगा की लग्न और लग्न के स्वामी की क्या स्थिति है यहां चंद्र परिवार से संबंधित जातक लोग ज्यादा सांसारिक रूप से कामयाब देखे गए हैं जबकि सूर्य परिवार से जन्मे लोग अध्यात्म की दृष्टि से ज्यादा कामयाबी की ओर बढ़ते हुए दिखाई देते हैं परंतु फिर भी देखने में आया है कि सूर्य परिवार के लोग जल्दी सफलता प्राप्त कर लेते हैं शायद इसी कारण उनको जल्दी अध्यात्म अथवा धर्म कर्म रास आ जाता है और वह सांसारिक जीवन की सच्चाई को समझ जाते हैं अपना आत्मिक उत्थान करने के लिए आगे की यात्रा की ओर बढ़ जाते हैं |

यह भी ध्यान मे रखे की आपके जन्म के समय जो लग्न आपको मिला है उसके अनुसार कौन सा ग्रह आपको किस भाव या किस राशि के फल आपको प्रदान कर रहा है ज्योतिष के ऐसे बहुत सारे भेद हैं जो आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं |

बुधवार, 29 जनवरी 2025

दिल्ली चुनाव 2025 (साबरमती बनाम यमुना)

अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे जो साबरमती रिवर फ्रंट बनाया गया है उसे देखकर लगता है की नदियों की देखभाल किस प्रकार से की जानी चाहिए क्योंकि देश के शीर्ष दो व्यक्ति गुजरात से आते हैं अच्छी तरह जानते हैं कि व्यापार कैसे किया जाता है रिवर फ्रंट को देखकर समझ में आ जाता है कि व्यापार की दृष्टिकोण से उसका कितना महत्व है गुजरात के रहने वाले लोग अच्छी तरह जानते हैं की साबरमती नदी का रिवर फ्रंट बना देने से उन्हें बहुत सारी आमदनी होगी और जिससे उनकी अर्थव्यवस्था पर बहुत सारा फर्क पड़ेगा क्योंकि गुजरात के लोकल लोग ही रात में रहते हैं |

अब बात करें दिल्ली की दिल्ली की आबादी का 60% लोग दिल्ली के मूल निवासी नहीं है उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वहां बह रही यमुना कितनी अच्छी स्वच्छ या साफ सुथरा है या नहीं उन्हें फर्क पड़ता है इस बात से कि उनको नित्य जीवन में आ रही कठिनाइयों से किस प्रकार से राहत प्रदान की जाए उनके लिए मुफ्त बिजली पानी का होना यमुना की सफाई से कई गुना बढ़िया है क्योंकि यमुना उनकी अपनी नदी तो है नहीं और यह बात माननीय केजरीवाल जी भी अच्छी तरह से जानते हैं इसीलिए उन्होंने पिछले 10 सालों में यमुना के लिए कुछ भी नहीं किया और ना ही वह आगे कभी करने वाले हैं |

यदि केजरीवाल व्यापारिक घराने से आते तो वह समझते की यमुना जहां दिल्ली में प्रवेश करती है वहां से लेकर जमुना बैंक तक अगर यमुना रिवर कॉरिडोर बनाया जाता और उसमें बहुत सारे लोगों को काम धंधा दिया जाता तो एक बहुत बड़ा अर्थव्यवस्था दिल्ली के लिए पैदा की जा सकती थी परंतु केजरीवाल यह भी भली भांति से जानते हैं की यमुना नदी के चाहने वाले जो दिल्ली के मूलनिवासी हैं उन्हें वोट नहीं देने वाले उन्हें वोट देने वाले वह लोग हैं जिनको रोज बिजली पानी मुफ्त मे चाहिए | यमुना नदी दिल्ली में साफ हो ना इस बात से इन बाहरी लोगो को कोई फर्क नहीं पड़ता है |

व्यापार की दृष्टिकोण से यमुना रिवर फ्रंट बनाने की बात सुनने में भले ही अच्छी लगे परंतु इसमें बहुत सारे खर्चे की योग भी बनेंगे बस यही छोटी सोच माननीय केजरीवाल को मोदी जी जैसे नेताओं से अलग बनाती है केजरीवाल छोटे सोच को लेकर चलते हैं जबकि मोदी जैसा बड़ा विजन उनके बस में नहीं है वरना देने वालों ने तो उन्हें 10 साल दिए थे वह चाहते तो दिल्ली को बहुत आगे ले जा सकते थे और आगे भविष्य में प्रधानमंत्री भी बन सकते थे अब उनकी इसी छोटी सोच के चलते पार्टी को भी लाले पड़ने लगे हैं आने वाले एक-दो साल में आम आदमी पार्टी समझौता समाप्ति की ओर जा रही है |

यह तो तय है कि अगर इस बार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी आती है तो जमुना रिवर फ्रंट अवश्य बनेगा क्योंकि उससे  व्यापार मिलना है और हम सभी जानते हैं कि दिल्ली में पैसा कहीं से नहीं पाया जा सकता बनाया ही जा सकता है जो की शीर्ष के दो गुजराती भली - भांति जानते हैं |

पिछले 10 सालो मे अरविंद केजरीवाल समझ ही नहीं पाए की वो भारत देश की दोनों बड़ी पार्टियों के द्वारा बेवकूफ बनाकर दिल्ली के सी एम बना दिए गए दोनों बड़ी पार्टी भलीभांति जानती हैं कि दिल्ली मे कमाई तो हो सकती नहीं हैं और केंद्र मे जो सरकार रहेगी उसका हस्तक्षेप अवश्य ही दिल्ली पर बना रहेगा ऐसे मे दिल्ली की सरकार किसी की भी बने उससे कोई फर्क पड़ने वाला तो है नहीं |

वैसे आज की स्थिति देखे तो लग रहा है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर इस बार सरकार बना लेगी पूर्ण बहुमत किसी भी पार्टी को मिल पाना थोड़ा सा मुश्किल नजर आ रहा हैं |

 

शनिवार, 25 जनवरी 2025

ग्रहों दोषों का शमन करते हैं रत्न

 


सामान्यतः ग्रहों के प्रतिकूलता के शमन हेतु रत्नों को धारण करने का विधान है । इन रत्नों को लेकर कहीं - कहीं हमारे ज्योतिविंद अथवा रत्न धारण करने वाले जातक दुविधा को प्राप्त हो जाते हैं । कुछ लोगों का मानना है कि जो ग्रह प्रतिकूल प्रभाव डालता है उसकी प्रतिकूलता को नष्ट करने के लिए उससे संबंधित रत्न को धारण करना चाहिए जबकि दूसरा मत है कि कमजोर ग्रह की ताकत बढ़ाने के लिए संबंधित रत्न धारण करना श्रेयस्कर माना जाता है । उदाहरण के लिए यदि शनि प्रतिकूल है तो कुछ लोग उसकी प्रसन्नता के लिए नीलम, नीली, जमुनिया आदि रल धारण करने की सलाह देते हैं किंतु यदि शनि चंद्रमा पर या उसके भाव पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है तो कुछ ज्योतिर्विद शनि का नग न पहनकर चंद्रमा की ताकत बढ़ाने के लिए मोती चंद्रमणि आदि धारण करने की बात करते हैं ।

ये दोनों तर्क अपने - अपने स्थान पर सही हो सकते हैं परंतु किसी भी ज्योतिर्विद को समग्र कुंडली तथा संबंधित ग्रहों के पड़ने वाले प्रभाव को देखकर ही ऐसा निर्धारित करना होगा । वस्तुतः मणि, मंत्र और औषधि यह तीनों ही उपचार शास्त्र सम्मत हैं । इसलिए इनका प्रयोग उपचार की दृष्टि से करना चाहिए ये कोई चमत्कारिक पत्थर नहीं होते । ग्रहों की शांति के लिए नवग्रह यंत्र की अंगूठी धारण करने का भी विधान है । इससे सभी ग्रह प्रसन्न हो जाते हैं इसका उल्लेख मुहूर्त चिंतामणि में इस प्रकार किया गया है –

'वज्रं शुक्रेब्जे सुमुक्ता प्रवालं भीमेगो गोमेदमाक सुनीलम् ।

केती वैदूर्य गुरौ पुष्पकं ज्ञे पाचिः प्रामाणिक्य मर्के तु मध्ये ।'

अर्थात सोने की अंगूठी में रत्रों को जड़ने के लिए नौ कोष्ठ, अष्टदल कमल का निर्माण कराएं, पूर्व भाग में होरा, चंद्रमा की तुष्टि के लिए अग्निकोण में सुंदर मोती,मंगल की प्रसन्नता के लिए दक्षिण में मूंगा, राहु की प्रसन्नता के लिए नैऋत्य में गोमेद, शनि की अनुकूलता के लिए पश्चिम में सुंदर नीलम, केतु के लिए वायव्य में वैदूर्य, गुरु के प्रीत्यर्थ उत्तर में पुष्पक अर्थात पोखराज, बुध की प्रसन्नता के लिए ईशान कोण में पन्ना और सूर्य के लिए बीच में माणिक जड़वाकर प्राण प्रतिष्ठा के बाद धारण करें । इसके अतिरिक्त पृथक - पृथक रत्नों को अलग - अलग राशि तथा ग्रहों के क्रम में धारण करने की मान्यता हैं |

सूर्य के लिए माणिक अथवा पद्म पराग, चंद्र के लिए मोती यह मोती हाथी, सांप, सीपी, शंख, मेघ, बांस, मछली और सुअर से उत्पन्न होता है,इनमें सीपी का मोती सर्वश्रेष्ठ है । मंगल के लिए मूंगा इसका अपना धारण करने का विधान है । मंगलवार को मेष या वृश्चिक राशि पर चंद्रमा या मंगल हो एवं दो चरण वाले मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्र हों उस दिन सूर्योदय से 10 बजे दिन के पहले उत्तम प्रकार के मूंगे को सोने की अंगूठी में जड़वाकर धारण करना चाहिए । मूंगे की माला भी धारण की जा सकती है ।

बुध के लिए पन्ना, बुधवार हस्त, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्र एवं पूर्वाह्न के समय जड़वाकर पहनना उत्तम माना गया है । प्रत्येक राशि की दृष्टि से इन रत्नों की माप निर्धारित की गयी है । गुरु के दोष शमन के लिए पुखराज, गुरु पुष्य के दिन धारण करना श्रेयस्कर रहता है । मेषादि राशियों के क्रम में उसकी माप निर्धारित की जाती है । शुक्र का रत्न हीरा, यह शुक्र के दोष का शमन करता है पति -पत्नी के प्रेम का वर्धक है । भूत - प्रेतादि बाधाओं को नष्ट करता है, काम कला को सशक्त बनाता है इसे शुक्रवार भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में धारण करना चाहिए । शनि के लिए नीलम, मकर कुंभ के शनि में अथवा शनिवार, चित्रा, स्वाति, विशाखा, श्रवण एवं घनिष्ठा नक्षत्र में सोने अथवा पंचधातु की अंगूठी में मढ़वा कर धारण करना श्रेयस्कर होता है । जिस राशि में शनि हो उसके अनुसार उसकी तौल होनी चाहिए ।

राहु के लिए गोमेद स्वच्छ गोमेद धारण करने से राहु ग्रह जनित समस्त रोग शांत होते हैं । राजकीय कर्मचारी, वकील, न्यायाधीश आदि को इसके धारण करने से बड़ी राहत मिलती है । मिरगी, बवासीर, तिल्ली, वायुविकार आदि रोगों में लाभ मिलता है इसकी अंगूठी बुध या शनिवार, स्वाति, शतभिषा एवं आर्द्रा नक्षत्र के योग में मढ़वाकर पहनना चाहिए जन्मकाल में जिस राशि पर राहु हो उसी क्रम से उसके माप को निर्धारित किया जाना चाहिए ।

केतु के लिए लहसुनिया धारण किया जाता है जिस दिन मेष, मीन या धनु राशि पर चंद्रमा हो उस दिन लोहे या सोने की अंगूठी में इसे धारण करें । 11 से अधिक रत्ती का वैदूर्य धारण करना अच्छा होता है कहा भी गया है कि नवरल की अंगूठी धारण करने की क्षमता न हो तो पृथक नग धारण करना चाहिए -

'माणिक्य मुक्ताफलविद्रुमाणि गारुत्मकं पुष्पकवज्रनीलम् ।

गोमेद वैदूर्यकमकंतः स्यू रत्नान्यथो ज्ञस्य मुदे सुवर्णम् ॥'

राहु की प्रसन्नता के लिए लाजावर्त, शुक्र और चंद्र की प्रसन्नता के लिए चांदी, गुरु लिए मोती, शनि के लिए लोहा, सूर्य और भौम के लिए मूंगा धारण करने का भी विधान बताया गया हैं

 

गुरुवार, 23 जनवरी 2025

ज्योतिष और योग

यदि योग और ज्योतिष का  गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया जाय तो इन दोनों मे बहुत अधिक साम्यता देखने को मिलती हैं । योग क्रिया पर आधारित एक प्रकार की साधना है और क्रिया ज्योतिष के मान बिन्दुओं पर आधारित होती हैं । ज्योतिष के आधार पर अपनायी गयी क्रिया कभी निष्फल नहीं होती है, इसीलिए प्रत्येक क्रिया में मुहूर्त का विशेष महत्व है । यदि ब्राह्म मुहूर्त में योग साधना की जाय तो उसका फल अनुकूल होगा परन्तु यदि मध्याह्न अथवा असमय में योग क्रिया की जाय तो निष्फल सिद्ध होगी । जिस प्रकार सूर्य और चन्द्र ज्योतिष के नियामक हैं उसी प्रकार से ये योग के भी नियहैं ।

सूर्य प्राणवायु हैं और चन्द्र अपानवायु ये प्राण और अपानवायु ही योग विद्या की कारक है । ज्योतिष में जिस प्रकार स्वस्थ रहने के बारे में कुण्डली के विभिन्न भावों का अध्ययन किया जाता है, उसी प्रकार योग में स्वास्थ्य के प्रति सचेष्ट रहना योगी का प्रथम सोपान हैं । ज्योतिष में मन का कारक चन्द्रमा है चन्द्रमा के कारण ही मस्तिष्क में उतार-चढ़ाव और पृथ्वी पर ज्वार भाटे की स्थिति पैदा होती है । योगी इसी मन को प्राण और अपानवायु का सहारा लेकर स्थिर करने का प्रयास करता है । वह स्थिर तन को स्वस्थ, मन को स्थिर और आत्मा को परमपद में प्रतिष्ठित करने अथवा मृतत्व को प्राप्त करने का अमोघ साधन तथा महाज्ञान मानता है । हठ योग में आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के साथ-साथ कुण्डलिनी जागरण, मुद्राबन्ध आदि अभ्यास, षटचक्रभेदन, नादानुसांधान तथा अमृतपान आदि पर विशेष बल दिया जाता है । हम जानते हैं कि शरीर का प्रत्येक भाग रक्त, मज्जा, हड्डी, सहस्त्रार, आज्ञाचक्र, कण्ठचक्र, विशुद्धचक्र, अनहतनाद, मूलाधार तक सभी ग्रहों के स्थान हैं और विभिन्न ग्रहों के आधार पर विभाजित हैं । नाभि, योनि द्वार, जंघा, उरु आदि सभी नौ ग्रहों तथा उनके अधिष्ठात्री देवताओं के आधार पर विभाजित हैं ।

जिस प्रकार ज्योतिष में सूर्य की प्रधानता है उसी प्रकार नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि स्थित कर कौटि सूर्य का प्रकाश का ध्यान करने से दीर्घजीवी होने तथा हठात् ज्योतिर्मय शिव स्वरूप को प्राप्त करने की योगसाधना वर्णित है । हठ योग में जिस प्रकार बिन्दु, पवन और मन की स्थिरता को महत्व दिया गया है, जिस प्रकार प्राणवायु, सूर्यनाड़ी और चन्द्र नाड़ी को बन्द कर सुषुप्रा में योगी मन को स्थिर करता है, सुषुम्ना मध्यवर्तनी ब्रह्मनाड़ी के मुख को खुला पाकर वायु उसी मार्ग से उर्ध्वगमन करती है, कुण्डलिनी प्राणवायु के निरोध से ऊपर उठती है, षडचक्र वेधन करती है उसी प्रकार ज्योतिष में सूर्य ग्रहराज माना जाता है, उसी के प्रकाश से चन्द्रमा प्रकाशित है । चन्द्रमा का पुत्र बुध और सूर्य का पुत्र शनि हमारे जीवन मे अपना विशेष महत्व रखता है । मंगल भूमि पुत्र तथा राहु और केतु एक ही शरीर के दो भाग हमेशा वक्री फल देते हैं,गुरु और शुक्र ज्ञान के कारक ग्रह हैं । जिस प्रकार ब्रह्माण्ड में आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी का समावेश है उसी प्रकार मुख, दो नेत्र, दो कान, दो नासारंध्र एक उपस्थ और एक गुदा शरीर के नौ दरवाजे और ब्रह्मा विष्णु, रुद्र, ईश्वर तथा सदाशिव विद्यमान रहते हैं । जिनकी अनुभूति एवं संतुलन के आधार पर योगी साधना की पराकाष्ठा तक पहुंचता है ।

इस प्रकार हम देखते हैं कि योग और ज्योतिष परस्पर एक दूसरे के पूरक हैं । एक अच्छे साधक को ज्योतिष का ज्ञान होना आवश्यक है ।