मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

शनि का गोचर फल


गोचर का शनि चन्द्र लग्न से केवल तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में शुभ फल करता है । शेष भावों में उसका फल अशुभ ही होता है ।

शनि चन्द्र लग्न में जब गोचरवश आता है तो बुद्धि काम नहीं करती । शरीर निस्तेज सा रहता है,मानसिक और शारीरिक पीड़ा होती है । भाइयों तथा स्त्री आदि से झगड़ा होता है,शस्त्र और पत्थर से भरहता है,दूर स्थानों की यात्रा होती है,मित्र और घर हाथ से निकल जाते हैं । सभी कार्यों में असफलता मिलती है,अपमान होता है और कभी राज्य से बन्धन का भय भी रहता है,आर्थिक स्थिति में बहुत कमजोरी आ जाती है ।

शनि चन्द्र लग्न से जब द्वितीय भाव में जब गोचरवश आता हैं तब गृह क्लेश होता है अथवा बिना किसी कारण झगड़ा खड़ा हो जाता है,स्वजनों से वैर चलता है । धन की हानि होती है और कार्य सफल नहीं होते,जातक शारीरिक दृष्टि से कमजोर रहता है और उसके लाभ तथा सुख में बहुत कमी आ जाती है । स्त्री को कष्ट रहने और उसकी मृत्यु तक की संभवना रहती है । जातक को घर छोड़कर बाहर जाना पड़ सकता है । विदेश यात्रा की भी संभावना रहती है ।

शनि चन्द्र लग्न से तृतीय भाव में जब गोचरवश आता है तो आरोग्य, पराक्रम और सुख में वृद्धि होती है । हर कार्य में सफलता मिलने के साथ - साथ, धान और नौकरी की प्राप्ति अथवा उन्नति होती है । जातक स्वयं डरपोक भी हो तो भी उसे शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और शत्रु उसे धीर वीर ही समझते हैं । जातक को पशु धन की भी प्राप्ति होती है तथा भूमि प्राप्ति के लिए भी यह उपयुक्त समय होता है ।

शनि चन्द्र लग्न से चतुर्थ भाव में जब गोचरवश आता है तब शत्रुओं की वृद्धि होती है । स्थान परिवर्तन अथवा तबादला होता है । संबंधियों से वियोग भी हो सकता है । धन की कमी,यात्रा में कष्ट होता है और जातक के सुखों में कमी आती है, यह समय बहुत अपमानजनक सिद्ध होता है । जनता तथा राज्य दोनों द्वारा विरोध होता है । जातक के मन में ठगी और कुटिलता का संचार होता है ।

शनि चन्द्र लग्न से पंचम भाव में गोचरवश जब आता है तो बुद्धि में भ्रम उत्पन्न हो जाता है । योजनाएं न बन पाती हैं न सफल होती है । जनता से ठगी करने की संभावना रहती है । धन और सुख में विशेष कमी आ जाती है | जातक अपना अधिकांश समय दुष्ट स्त्रियों के साथ व्यतीत करता है | पुत्र की बीमारी अथवा मृत्यु की संभावना रहती है । अपनी स्त्री से वैमनस्य बढ़ता है अथवा स्त्री को वायु रोगों की संभावना रहती है । संतान अथवा पुत्र से हानि होती है |

शनि चन्द्र लग्न से छठे भाव में गोचरवश जब आता तो धन, अन्न और सुख की वृद्धि होती है । शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है | भूमि मकान आदि की प्राप्ति का समय होता है । जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है और उसे स्त्री भोगादि सुखों की प्राप्ति होती है ।

शनि चन्द्र लग्न से सातवें भाव में गोचरवश जब आता है तो घर छोड़ना पड़ता है, बार-बार यात्राएं होती हैं । स्त्री रोगी होती हैं अथवा उसकी मृत्यु होना भी संभव होता है । जातक गुप्त रोगों के कारण कष्ट पाता है । धन हानि होती है और मानसिक व्यथा बढ़ती है | यात्रा में कष्ट होता है और दुर्घटना की संभावना रहती है । मान - हानि होती है । नौकरी अथवा व्यापार छूट जाने तक की नौबत आ जाती है ।

शनि चन्द्र लग्न से आठवें भाव में गोचरवश जब आता है तो द्रव्य तथा धन की हानि होती है । कार्य सफल नहीं होते,अपमानित होने का भय रहता है । राज्य की ओर से भी भय रहता है । पुत्र से वियोग की संभावना रहती है । सत्री की मृत्यु तक की संभावना रहती है । जुए और दुष्ट व्यक्तियों की मित्रता के कारण कई प्रकार की परेशानियां आती हैं ।

शनि चन्द्र लग्न से नवें भाव में गोचरवश जब आता है तो दुःख, रोग और शत्रुओं की वृद्धि होती है । धर्म के कार्यों में मनुष्य पीछे हट जाता है अथवा धर्म परिवर्तन कर बैठता है । प्रादेशिक अथवा तीर्थ यात्राएं होती हैं, परन्तु लाभप्रद नहीं होती । भ्रातृ वर्ग से अनबन रहती है, मित्रों से कष्ट पाता है । लाभ में कमी आ जाती है । बंधन एवं आरोपों का भय रहता है ।

शनि चन्द्र लग्न से दशम भाव में गोचर वश जब आता है तो नौकरी अथवा व्यवसाय में परिवर्तन होते हैं और उनके संबंध में विघ्न-बाधाएं भी आती हैं,सफलता प्राप्त नहीं होती जातक पाप कर्म करता है और मानसिक व्यथा सहन करता है । उसे घर आदि से दूर रहना पड़ता है वह जनता का विरोध भी पाता है | स्त्री से वैमनस्य के कारण उससे पृथकत्व की संभावना रहती है । छाती के रोग होने की संभावना रहती है ।

शनि चन्द्र लग्न से एकादश भाव में गोचरवश जब आता है तो बहुत ज्यादा लाभदायक सिद्ध होता है । स्त्री वर्ग से, लोहे आदि से अथवा भूमि से, मशीनरी, पत्थर, सीमेंट, कोयला, चमड़ा आदि से लाभ देता हैं । रोग से मुक्ति मिलती है पदोन्नति होती है ।

शनि चन्द्र लग्न से द्वादश भाव में गोचरवश जब आता है तो अपने कुटुम्ब से दूर रहने पर विवश होना पड़ता है । संबंधियों तथा शुभ प्रतिष्ठित लोगों से मतभेद चलता है । धन का अनावशयक व्यय होता है । स्वास्थ्य भी खराब रहता है । दूर की यात्रा करनी पड़ती है जिसमें दुःख उठाना पड़ता है । इस समय धन नाश द्वारा भाग्य पतन का भय रहता है । सन्तान के लिए भी यह समय कष्टप्रद है । सन्तान की मृत्यु तक की संभावना रहती है ।

कण्टक शनि

जब गोचर का शनि चन्द्र लग्न से चौथे, सातवें और दसवें घर में भ्रमण करता है तो उसे कण्टक शनि कहा जाता है, यह साढ़े साती का दूसरा भेद है,कण्टक शनि में साधारणतया मानसिक दु:खों की वृद्धि होती है ।

(क) चन्द्र लग्न से चौथे स्थान में शनि होने पर स्वास्थ्य खराब होता है और निवास स्थान में परिवर्तन होता है ।

(ख) सप्तम स्थान में रहने पर दूर प्रवास होता है,यदि वहां चर राशि है तो यह फल निश्चित होगा ।

(ग) दशम स्थान में रहने से नौकरी,व्यवसाय में गड़बड़ी होती है तथा कार्य में असफलता पल्ले पड़ती है ।

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