सोमवार, 15 अप्रैल 2024

दैनिक जीवन मे क्या करें क्या न करे


तेल - मालिश

1. प्रतिपदा, षष्ठी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या के दिन शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए

2. रविवार, मंगलवार, गुरुवार और शुक्रवार के दिन तेल नहीं लगाना चाहिए

3. रविवार के दिन तैलाभ्यंग करने से क्लेश, सोमवार को कान्ति, मंगलवार को व्याधि, बुधवार को सौभाग्य, गुरुवार को निर्धनता, शुक्रवार को हानि और शनिवार को सर्वसमृद्धि की प्राप्ति होती है

4. रविवार को पुष्प, मंगलवार को मिट्टी, गुरुवार को दूर्वा और शुक्रवार को गोमय डालकर तेल लगाने से दोष नहीं

लगता

5. जो प्रतिदिन तेल लगाता हो, उसके लिए किसी भी दिन तेल लगाना दूषित नहीं है । जो तेल सुगंधित इत्र आदि से वासित हो, उसको लगाना भी किसी दिन दूषित नहीं है । सरसों का तेल ग्रहण काल को छोड़कर अन्य किसी दिन भी दूषित नहीं होता

6. सिर पर लगाने से हथेली पर बचे हुए तेल को शरीर के अन्य अंगों पर नहीं लगाना चाहिए



वस्त्र

1. एक वस्त्र धारण करके न तो भोजन करे, न यज्ञ करे, न दान करे, न अग्नि में आहुति दे, न स्वाध्याय करे, न पितृतर्पण करे और न देवार्चन ही करे

2. विद्वान् पुरुष धोबी के धोये हुए वस्त्र को अशुद्ध मानते हैं । अपने हाथ से पुनः धोने पर ही वह वस्त्र शुद्ध होता है

3. जिसकी किनारी या मगजी न लगी हो, ऐसा वस्त्र धारण करने योग्य नहीं होता

4. पहले से पहने हुए वस्त्र को बिना धोये पुनः नहीं पहनना चाहिये ।

5. वस्त्र के ऊपर जल छिड़कर ही उसे पहनना चाहिये ।

6. धन के रहते हुए पुराने और मैले वस्त्र नहीं पहनने चाहिये ।

7. मनुष्य को भीगे वस्त्र कभी नहीं पहनने चाहिये ।

8. अधिक लाल, रंगबिरंगे, नीले और काले रंग के वस्त्र धारण करना उत्तम नहीं है

9. कपड़ों और गहनों को उलटा करके न पहने । उनमें कभी उलट-फेर नहीं करना चाहिये अर्थात् उत्तरीय वस्त्र को अधोवस्त्र के स्थान में और अधोवस्त्र को उत्तरीय के स्थान में नहीं पहनना चाहिये । दूसरों के पहने हुए कपड़े नहीं पहनने चाहिये । जिसकी छोर फट गयी हो उस वस्त्र को नहीं धारण करना चाहिये । सोने के लिये दूसरा वस्त्र होना चाहिए । सड़कों पर घूमने के लिये दूसरा तथा देवताओं की पूजा के लिये दूसरा ही वस्त्र रखना चाहिये

10. नील में रंग हुआ वस्त्र दूर से ही त्याग देना चाहिये । जो नील का रंग हुआ वस्त्र पहनता है, उसके स्नान, दान, तप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण ओर पंचमहायज्ञ  ये सभी व्यर्थ हो जाते हैं । नील के रंगे वस्त्र धारण करके जो रसोई बनायी जाती है, उस अन्न को जो रखता है, वह मानो विष्ठा खाता है | वह अन्न देने वाला यजमान नरक में जाता है

11. इन पांच कार्यों में उत्तरीय वस्त्र अवश्य धारण करना चाहिये - स्वाध्याय, मल-मूल का त्याग, दान, भोजन और आचमन |


भोजन

1. दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख इन पांच अंगो को धोकर भोजन करना चाहिये । ऐसा करने वाला मनुष्य दीर्घ जीवी होता है ।

2. गीले पैरों वाला होकर भोजन करे गीले पैरों वाला ही भोजन करने वाला मनुष्य लम्बी आयु को प्राप्त करता है ।

3.सूखे पैर और अंधेरे में भोजन नहीं करना चाहिये ।

शास्त्र में मनुष्यों के लिये प्रात:काल और सायंकाल दो ही समय भोजन करने का विधान है,बीच में भोजन करने की विधि नहीं देखी गयी है । जो इस नियम का पालन करता है, उसे उपवास करने का फल प्राप्त होता है ।

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