तेल - मालिश
1. प्रतिपदा,
षष्ठी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी,
पूर्णिमा और अमावस्या के दिन शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए ।
2. रविवार, मंगलवार,
गुरुवार और शुक्रवार के दिन तेल नहीं लगाना चाहिए ।
3. रविवार के दिन
तैलाभ्यंग करने से क्लेश, सोमवार को कान्ति, मंगलवार
को व्याधि, बुधवार को सौभाग्य, गुरुवार
को निर्धनता, शुक्रवार को हानि और शनिवार को सर्वसमृद्धि की
प्राप्ति होती है
।
4. रविवार को पुष्प,
मंगलवार को मिट्टी, गुरुवार को दूर्वा और शुक्रवार को गोमय
डालकर तेल लगाने से दोष नहीं
लगता ।
5. जो प्रतिदिन तेल
लगाता हो, उसके लिए किसी भी दिन तेल लगाना दूषित नहीं है । जो तेल
सुगंधित इत्र आदि से वासित हो, उसको लगाना भी किसी दिन दूषित नहीं है । सरसों का तेल
ग्रहण काल को छोड़कर अन्य किसी दिन भी दूषित नहीं होता ।
6. सिर पर लगाने से
हथेली पर बचे हुए तेल को शरीर के अन्य अंगों पर नहीं लगाना चाहिए ।
वस्त्र
1. एक वस्त्र धारण
करके न तो भोजन करे, न यज्ञ करे, न
दान करे, न अग्नि में आहुति दे, न
स्वाध्याय करे, न पितृतर्पण करे और न देवार्चन ही करे ।
2. विद्वान् पुरुष
धोबी के धोये हुए वस्त्र को अशुद्ध मानते हैं । अपने हाथ से
पुनः धोने पर ही वह वस्त्र शुद्ध होता है ।
3. जिसकी किनारी या
मगजी न लगी हो, ऐसा वस्त्र धारण करने योग्य नहीं होता ।
4. पहले से पहने
हुए वस्त्र को बिना धोये पुनः नहीं पहनना चाहिये ।
5. वस्त्र के
ऊपर जल छिड़कर ही उसे पहनना चाहिये ।
6. धन के रहते हुए पुराने और मैले वस्त्र नहीं पहनने
चाहिये ।
7. मनुष्य को
भीगे वस्त्र कभी नहीं पहनने चाहिये ।
8. अधिक लाल,
रंगबिरंगे, नीले और काले रंग के वस्त्र धारण करना
उत्तम नहीं है ।
9. कपड़ों और गहनों
को उलटा करके न पहने । उनमें कभी उलट-फेर नहीं करना चाहिये अर्थात्
उत्तरीय वस्त्र को अधोवस्त्र के स्थान में और अधोवस्त्र को उत्तरीय के स्थान में
नहीं पहनना चाहिये
। दूसरों के पहने हुए कपड़े नहीं पहनने चाहिये । जिसकी छोर फट
गयी हो उस वस्त्र को नहीं धारण करना चाहिये । सोने के लिये
दूसरा वस्त्र होना चाहिए । सड़कों पर घूमने के लिये दूसरा तथा देवताओं
की पूजा के लिये दूसरा ही वस्त्र रखना चाहिये ।
10. नील में रंग हुआ
वस्त्र दूर से ही त्याग देना चाहिये । जो नील का
रंग हुआ वस्त्र पहनता है, उसके स्नान, दान,
तप, होम, स्वाध्याय,
पितृतर्पण ओर पंचमहायज्ञ ये सभी व्यर्थ हो जाते हैं । नील के रंगे
वस्त्र धारण करके जो रसोई बनायी जाती है, उस अन्न को जो
रखता है, वह मानो विष्ठा खाता है | वह अन्न देने
वाला यजमान नरक में जाता है ।
11. इन पांच कार्यों
में उत्तरीय वस्त्र अवश्य धारण करना चाहिये - स्वाध्याय,
मल-मूल का त्याग, दान, भोजन और आचमन |
भोजन
1. दोनों हाथ,
दोनों पैर और मुख इन पांच अंगो को धोकर भोजन करना चाहिये । ऐसा करने वाला
मनुष्य दीर्घ जीवी होता है ।
2. गीले पैरों वाला
होकर भोजन करे गीले पैरों वाला ही भोजन करने वाला मनुष्य
लम्बी आयु को प्राप्त करता है ।
3.सूखे पैर और
अंधेरे में भोजन नहीं करना चाहिये ।
शास्त्र में
मनुष्यों के लिये प्रात:काल और सायंकाल दो ही समय भोजन करने का विधान है,बीच में भोजन
करने की विधि नहीं देखी गयी है । जो इस नियम का पालन करता है, उसे
उपवास करने का फल प्राप्त होता है ।
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