कोट चक्र.........1
कोट चक्र का अर्थ “किला” व उससे संबंधी
चक्रानुसार आकृति से होता हैं जिसका “कवि नरपति जी” के अनुसार ज्योतिष
विद्या मे प्रयोग राज्य व राजाओ से संबन्धित कार्यो मे किया जाता
था जिससे राजा यह अनुमान लगाते थे की आक्रमण,हमला अथवा युद्ध आदि होने पर
उनका किला सुरक्षित रह पाएगा या नहीं अथवा उसे कितना नुकसान
आदि होगा | मुग़ल कालीन समय मे
इसका उपयोग बादशाह हुमायूँ ने अपने ज्योतिषियो से करवाना
आरंभ किया था समय गुजरने के साथ साथ अब इस कोटचक्र विधि का उपयोग ज्योतिषियो द्वारा अन्य क्षेत्रो मे भी
होने लगा हैं | जिनमे प्रमुख
क्षेत्र चुनाव,किसी भी प्रकार की प्रतियोगिताए,युद्ध व परीक्षा संबंधी जानकारी आदि हैं |
आज के संदर्भ मे कोट
को जातक विशेष का शरीर मान उस पर होने वाले हमले व
बीमारी आदि का पता इस विधि से लगाया जा सकता हैं | इस विधि से यह आसानी से ज्ञात किया जा
सकता हैं की जातक के बीमार अथवा चोटिल आदि होने पर वह कितना सुरक्षित रह पाएगा,इससे बच पाएगा की नहीं,बीमारी उसे कब तक परेशान करेगी आदि |
इस विधि का उपयोग
करने से पहले सामान्य नियम जैसे जातक विशेष की संभावना,योग, दशा,स्थिति इत्यादि का भी हमें अध्ययन करना
होता हैं | इस विधि का प्रयोग
निम्न तरीके से किया जाता हैं |
1)जातक विशेष के जन्म
का नक्षत्र नाम उसके नामाक्षर वाले वर्ग की दिशा
मे रखा जाता हैं उसको प्रथम नक्षत्र मान कर क्रम के अनुसार अन्य नक्षत्रो को लिखा
जाता हैं उसी प्रकार नियत दिन
के गोचर के ग्रहो के नक्षत्र ज्ञात कर उन्हे भी कोट चक्र मे लिखा जाता हैं |
2)कोट चक्र का चित्रा
बनाया जाता हैं जिसमे 3 चतुर्भुज बनते हैं व उनकी दिशाए नियत की जाती हैं |
3)इसमे 28वा नक्षत्र “अभिजीत” भी लिया जाता हैं |
4)जातक का जन्म
नक्षत्र “उत्तर पूर्व” दिशा मे लिखा जाता
हैं |
चक्र के कुल 4 हिस्से
इस प्रकार से होते हैं |
प्रथम हिस्से को “दुर्ग या स्तम्भ” कहाँ जाता हैं इसमे
4 नक्षत्र होते हैं चार नक्षत्रो
से बना यह भाग कोट चक्र का आंतरिक भाग हैं जो कोट चक्र का सबसे ज़्यादा संवेदनशील
भाग होता हैं यदि दशा अशुभ हो और इस भाग मे पाप ग्रहो का गोचर हो तो जातक के लिए
शुभ स्थिति नहीं होती हैं | जातक के जन्मनक्षत्र से 4,11,18 व 25वा नक्षत्र दुर्ग
अथवा स्तम्भ मे लिखा जाता हैं जैसे यदि किसी का जन्म नक्षत्र कृतिका हो तो आर्द्रा,हस्त,पूर्वाषाढ़,तथा उत्तरा भद्रपद उसके कोट चक्र के दुर्ग
अथवा स्तम्भ भाग मे आएंगे | इस दुर्ग अथवा स्तम्भ के नष्ट होने पर कोट अथवा किला नष्ट माना
जाता हैं | पाप ग्रहो का दुर्ग
मे होना हानिकारक व शुभ ग्रहो का होना दुर्ग मे होना लाभदायक माना जाता
हैं |
इस दुर्ग अथवा स्तम्भ
के बाहर का हिस्सा “मध्य” कहलाता हैं जिसमे 8
नक्षत्र होते हैं इस भाग मे
जातक के जन्म नक्षत्र से 3,5,10,12,17,19,24,व 26वे नक्षत्र होते हैं | इस पर हमला होने पर दुर्ग को भारी खतरा माना जाता हैं |
तीसरा हिस्सा “प्रकार या चार दिवारी” कहलाती हैं इसमे भी 8 नक्षत्र
होते हैं इसमे जातक के जन्म नक्षत्र से 2,6,9,13,16,20,23,व 27वे नक्षत्र होते हैं | इस पर हमला होने की स्थिति मे दुर्ग
पर खतरे की घंटी बजना माना जाता हैं |
सबसे बाहरी हिस्सा “बाह्य” कहलाता हैं इसमे भी
8 ही नक्षत्र होते हैं इस भाग मे
जातक के जन्म नक्षत्र व उससे 7,8,14,15,21,22 व 28 वे नक्षत्र होते हैं | इस पर हमेशा रक्षक
तैनात रहते हैं ऐसा समझा जाता हैं |
यहाँ अभिजीत नक्षत्र भी रखेंगे यह ध्यान ज़रूर रखे जो कृतिका से 20वा
नक्षत्र पड़ेगा |
जन्म राशि का स्वामी ग्रह “”कोटस्वामी”” तथा जन्म नक्षत्र चरण का स्वामी ““कोटपाल”” कहलाता हैं जो की निम्न प्रकार से हैं |
(1)नक्षत्र अश्विन-शुक्र,शुक्र,शुक्र व अंतिम चरण चन्द्र,(2)भरणी- सभी चरण चन्द्र,(3)कृतिका सभी चरण सूर्य,(4)रोहिणी-पहला चरण सूर्य व शेष चरण चन्द्र,(5)मृगशिरा पहले दो चरण चन्द्र व अंतिम दो चरण मंगल,(6)आर्द्रा पहले तीन चरण मंगल व अंतिम चरण शुक्र,(7)पुनर्वसु पहले दो चरण मंगल व अंतिम दो चरण राहू,(8)पुष्य पहले तीन चरण राहू अंतिम चरण बुध,(9)अश्लेषा सभी चरण बुध,(10)मघा सभी चरण शनि,(11) पूर्व फाल्गुनी पहला चरण शनि व शेष चरण बुध,(12)उत्तरा फाल्गुनी पहले दो चरण बुध व अंतिम दो चरण शनि,(13)हस्त पहला चरण शनि,दूसरा चरण राहू शेष चरण बुध,(14)चित्रा पहले दो चरण शनि व अंतिम दो चरण चन्द्र,(15)स्वाति-पहले
तीन चरण चन्द्र व अंतिम चरण गुरु,(16)विशाखा व (17)अनुराधा के सभी चरण गुरु,(18)ज्येष्ठा पहला चरण गुरु बाकी चरण चन्द्र,(19)मूल-पहला,दूसरा चरण चन्द्र शेष चरण शनि,(20)पूर्वाषाढा –शनि,गुरु,शनि,बुध,(21)उत्तराषाढ़ा –पहले दो चरण शनि व अंतिम दो चरण शुक्र,(22)
अभिजीत-पहले तीन चरण शुक्र व चौथा चरण मंगल,(23)श्रवण व (24)धनिष्ठा के सभी
चरण मंगल,(25)शतभीषा पहला चरण मंगल शेष चरण राहू,(26)पूर्वभाद्रपद-दो
चरण राहू व दो चरण गुरु,(27)उत्तराभाद्रपद व (28)रेवती पहले दो चरण गुरु व शेष दो चरण शुक्र |
अशुभ ग्रह सूर्य,शनि,मंगल,राहू व केतू अशुभ राशि/अशुभ प्रभाव मे या वक्री
होने पर ज़्यादा अशुभ हो जाते हैं | यहाँ लंबे समय तक गोचर करने वाले ग्रहो पर ज़्यादा ध्यान रखना चाहिए |
कोटचक्र देखने की विधि
इस प्रकार से हैं |
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