रविवार, 2 अक्तूबर 2016

कोटचक्र........2

कोटचक्र देखने की विधि इस प्रकार से हैं |

1)सबसे अधिक खतरा अथवा हानी तभी समझी जाती हैं जब पाप ग्रह इस कोट चक्र के मध्य हिस्से मे या उसके अंदर आए अथवा गोचर करते हो | ऐसा होने पर वह स्तम्भ अथवा दुर्ग को हानी पहुँचाने के काफी समीप होंगे |

2)पाप ग्रह प्रकार या उसके बाहर हो तो खतरा कम होता हैं |

3)अशुभ ग्रह प्रवेश द्वार पर और शुभ ग्रह निकास द्वार पर होतो खतरा अधिक होता हैं |

4)प्रवेश नक्षत्र,जन्म नक्षत्र से 4,11,18,25 अर्थात स्तम्भ पर नहीं पड़ना चाहिए |

5)1,2,3,8,9,10,15,16,17,22,23,24  नक्षत्र यदि प्रवेश द्वार पर पड़े तो शुभ नहीं होता हैं | इसी प्रकार जन्म के चन्द्र नक्षत्र से 16,19,व 23 नक्षत्र कोट अथवा जातक की आयु हेतु शुभ नहीं होता |

6)वही 5,6,7,12,13,14,19,20,21,26,27,28 नक्षत्र यदि निकास द्वार पर पड़े तो शुभ नहीं होता |

7)कोट स्वामी दुर्ग मे होने पर दुर्ग की रक्षा करता हैं |

8)कोटपाल बाहरी सीमा पर होने पर कोट सुरक्षित रहता हैं |

9)दुर्ग अथवा स्तम्भ मे पाप ग्रह उसे नष्ट कर देता हैं | जबकि बाह्य हिस्से पर पाप ग्रह हमला करने वालों को नष्ट कर देता हैं |

10)दुर्ग मे पाप ग्रह का होना और बाह्य हिस्से मे शुभ ग्रह का होना कोट का शत्रुओ द्वारा कब्जा होना बताता हैं | इसके विपरीत दुर्ग मे शुभ ग्रह व बाह्य पाप ग्रह का होना हमला असफल होना बताता हैं |

11)दुर्ग मे शुभ व मध्य मे पाप ग्रह का होना दुर्ग रक्षको का नष्ट होना बताता हैं जबकि दुर्ग व मध्य मे पाप ग्रह तथा बाह्य शुभ ग्रह का होना शत्रुओ द्वारा आसानी से दुर्ग जितना बताता हैं |

12)दुर्ग मध्य मे शुभ ग्रह तथा बाह्य अशुभ ग्रह होना युद्ध परंतु दुर्ग का सुरक्षित होना बताता हैं |

13)सभी ग्रहो का एक तरफ होना ज़बरदस्त युद्ध का होना परंतु किसी भी पक्ष का विजय ना होना बताता हैं |

14)एक ही तरफ पाप ग्रहो व शुभ ग्रहो का बराबर होना दोनों पक्षो मे समझौता होना बताता हैं |

15) चन्द्र का कोस्वामी होकर बाहर होना व सूर्य का शत्रु स्वामी होकर अंदर होना दुर्ग स्वामी का भागना बताता हैं |

16)अशुभ ग्रहो का गोचर कोट चक्र के प्रवेश मार्ग पर तथा शुभ ग्रहो का निकास मार्ग पर जातक को स्वास्थ्य संबंधी परेशानिया बताते हैं |

17)अशुभ ग्रह का बाहर जाते हुये वक्री हो जाना दुर्घटना अथवा हानी बताता हैं |

18)यदि दशा अशुभ हो,दुर्ग भंग योग हो और शुभ ग्रह प्रवेश मार्ग पर वक्री हो जाये तो जातक को खतरा होता हैं |

19)जब तीन या अधिक अशुभ ग्रह प्रवेश मार्ग मे हो तो जातक को बीमारी का खतरा होता हैं |

20)जन्म नक्षत्र पर अशुभ ग्रह वा जन्म चन्द्र पर अशुभ ग्रह जातक को स्वास्थ्य संबंधी समस्या दे सकता हैं |

21)कोट स्वामी व कोट पाल पर भी ग्रह प्रभाव देखे | कोट स्वामी को अंदर व कोटपाल को बाहर होना चाहिए |

22)कोट चक्र व दुर्घटना-दुर्ग भंग मे शामिल ग्रहो का जन्म कुंडली के छठे भाव से संबंध होना चाहिए दुर्घटना के कारक मंगल व राहू को भी देखे |

23)छठे भाव से संबन्धित कोई भी ग्रह निकास मार्ग पर वक्री होने पर चोट इत्यादि दे सकता हैं |

24)कोट चक्र के प्रकार व बाह्य भाग मे वक्री ग्रह बाहरी चोट दे सकता हैं जबकि मध्य भाग मे निकास मार्ग पर स्थित वक्री ग्रह आंतरिक चोट दे सकता हैं व प्रवेश मार्ग मे वक्री ग्रह बाहरी चोट देते हैं |

25)कोट चक्र व आत्महत्या-कोट चक्र के मध्य भाग मे वक्री पाप ग्रह हो तो जातक स्वयं नष्ट हो जाता हैं कोट नक्षत्र पर पाप ग्रहो का गोचर/कोट स्वामी का निकास मार्ग पर गोचर/कोट पाल का आंतरिक भाग मे होना भी आत्महत्या करवा सकता हैं |


कोट चक्र का प्रयोग दशा आदि के विश्लेषण के बाद ही करना चाहिए इसका प्रयोग मुख्यत:रोग से मुक्ति,कष्ट से मुक्ति व संसार से मुक्ति के लिए किया जाना चाहिए |

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