कोटचक्र देखने की विधि
इस प्रकार से हैं |
1)सबसे अधिक खतरा
अथवा हानी तभी समझी जाती हैं जब पाप ग्रह इस कोट चक्र के “मध्य” हिस्से मे या उसके
अंदर आए अथवा गोचर करते हो | ऐसा होने पर वह स्तम्भ अथवा दुर्ग को
हानी पहुँचाने के काफी समीप होंगे |
2)पाप ग्रह “प्रकार” या उसके बाहर हो तो
खतरा कम होता हैं |
3)अशुभ ग्रह प्रवेश
द्वार पर और शुभ ग्रह निकास द्वार पर होतो खतरा अधिक होता हैं |
4)प्रवेश नक्षत्र,जन्म नक्षत्र से 4,11,18,25 अर्थात स्तम्भ पर
नहीं पड़ना चाहिए |
5)1,2,3,8,9,10,15,16,17,22,23,24 नक्षत्र यदि प्रवेश द्वार पर पड़े तो शुभ नहीं होता हैं | इसी प्रकार जन्म के चन्द्र नक्षत्र से
16,19,व 23 नक्षत्र कोट अथवा जातक की आयु हेतु शुभ नहीं
होता |
6)वही 5,6,7,12,13,14,19,20,21,26,27,28 नक्षत्र यदि निकास
द्वार पर पड़े तो शुभ नहीं होता |
7)“कोट स्वामी” दुर्ग मे होने पर
दुर्ग की रक्षा करता हैं |
8)“कोटपाल” बाहरी सीमा पर होने
पर कोट सुरक्षित रहता हैं |
9)दुर्ग अथवा स्तम्भ
मे पाप ग्रह उसे नष्ट कर देता हैं | जबकि बाह्य हिस्से पर पाप ग्रह हमला करने वालों को नष्ट कर देता हैं |
10)दुर्ग मे पाप ग्रह
का होना और बाह्य हिस्से मे शुभ ग्रह का होना कोट का शत्रुओ द्वारा
कब्जा होना बताता हैं | इसके विपरीत दुर्ग
मे शुभ ग्रह व बाह्य पाप ग्रह का होना हमला असफल होना बताता हैं |
11)दुर्ग मे शुभ व
मध्य मे पाप ग्रह का होना दुर्ग रक्षको का नष्ट होना बताता हैं जबकि दुर्ग व मध्य मे
पाप ग्रह तथा बाह्य शुभ ग्रह का होना शत्रुओ द्वारा आसानी से दुर्ग जितना बताता
हैं |
12)दुर्ग व मध्य मे शुभ ग्रह तथा बाह्य अशुभ ग्रह होना युद्ध परंतु दुर्ग का सुरक्षित होना बताता
हैं |
13)सभी ग्रहो का एक
तरफ होना ज़बरदस्त युद्ध का होना परंतु किसी भी पक्ष का विजय ना होना
बताता हैं |
14)एक ही तरफ पाप ग्रहो व शुभ ग्रहो का बराबर होना दोनों
पक्षो मे समझौता होना बताता हैं |
15) चन्द्र का कोटस्वामी होकर बाहर
होना व सूर्य का शत्रु स्वामी होकर अंदर होना दुर्ग स्वामी का भागना बताता हैं |
16)अशुभ ग्रहो का गोचर कोट चक्र के प्रवेश मार्ग पर तथा शुभ ग्रहो का
निकास मार्ग पर जातक को स्वास्थ्य संबंधी परेशानिया बताते हैं |
17)अशुभ ग्रह का बाहर जाते हुये वक्री हो जाना दुर्घटना अथवा हानी बताता
हैं |
18)यदि दशा अशुभ हो,दुर्ग भंग योग हो और शुभ ग्रह प्रवेश मार्ग पर वक्री हो जाये तो जातक को
खतरा होता हैं |
19)जब तीन या अधिक अशुभ ग्रह प्रवेश मार्ग मे हो तो जातक को बीमारी का
खतरा होता हैं |
20)जन्म नक्षत्र पर अशुभ ग्रह वा जन्म चन्द्र पर अशुभ ग्रह जातक को
स्वास्थ्य संबंधी समस्या दे सकता हैं |
21)कोट स्वामी व कोट पाल पर भी ग्रह प्रभाव देखे | कोट स्वामी को अंदर व कोटपाल को बाहर होना चाहिए |
22)कोट चक्र व दुर्घटना-दुर्ग भंग मे शामिल ग्रहो का जन्म कुंडली के छठे
भाव से संबंध होना चाहिए दुर्घटना के कारक मंगल व राहू को भी देखे |
23)छठे भाव से संबन्धित कोई भी ग्रह निकास मार्ग पर वक्री होने पर चोट इत्यादि दे सकता हैं |
24)कोट चक्र के प्रकार व बाह्य भाग मे वक्री ग्रह बाहरी चोट दे सकता हैं
जबकि मध्य भाग मे निकास मार्ग पर स्थित वक्री ग्रह आंतरिक चोट दे सकता हैं व
प्रवेश मार्ग मे वक्री ग्रह बाहरी चोट देते हैं |
25)कोट चक्र व आत्महत्या-कोट चक्र के मध्य भाग मे वक्री पाप ग्रह हो तो
जातक स्वयं नष्ट हो जाता हैं कोट नक्षत्र पर पाप ग्रहो का गोचर/कोट स्वामी का
निकास मार्ग पर गोचर/कोट पाल का आंतरिक भाग मे होना भी आत्महत्या करवा सकता हैं |
कोट चक्र का प्रयोग
दशा आदि के विश्लेषण के बाद ही करना चाहिए इसका प्रयोग मुख्यत:रोग से मुक्ति,कष्ट
से मुक्ति व संसार से मुक्ति के लिए किया जाना चाहिए |
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