शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

स्त्री पत्रिका मे गुरु

स्त्री पत्रिका मे गुरु

सर्वाधिक शुभ ग्रहो मे से एक गुरु ग्रह प्रत्येक जातक की कुंडली मे सौभाग्य,मान सम्मान चरित्र,ज्ञान,संतान इत्यादि का प्रतिनिधित्व करता हैं परंतु स्त्री जातको की कुंडली मे इस गुरु ग्रह को विशेष महत्व दिया जाता हैं क्यूंकी उनकी पत्रिका मे यह पति संतान दोनों का कारक बनता हैं | ऐसी स्त्री जिसका पति व संतान ना हो उसे भारतीय समाज मे भाग्यशाली अथवा शुभ नहीं समझा जाता हैं |   

स्त्री की पत्रिका चाहे किसी भी लग्न की हो उसमे गुरु ग्रह की स्थिति कमजोर,पीड़ित व अशुभ नहीं होनी चाहिए क्यूंकी स्त्री पत्रिका मे गुरु का लग्न अथवा चन्द्र से मजबूत व शुभ अवस्था मे होना उनके वैवाहिक जीवन के लिए अवश्यंभावी रूप से शुभता दर्शाता हैं |

स्त्री पत्रिका मे जब गुरु 3,6,8,12 भावो मे यदि स्वग्रही होकर ना स्थित हो तो उनके विवाह मे विलंब अवश्य होता हैं इन चारो भावो मे से तृतीय भाव को फिर भी सही माना जाता हैं क्यूंकी यहाँ से गुरु सप्तम व नवम दोनों भावो को दृस्टी प्रदान करता हैं | समान्यत: स्त्री पत्रिकाओ मे गुरु को 1,4,5,9,10 व 11 भावो मे शुभ माना व समझा जाता हैं परंतु इन भावो मे भी गुरु यदि वक्री होतो विवाह मे देरी अथवा बाधा प्रदान करता ही हैं | जब गुरु अस्त,कमजोर,व पीड़ित होतो कन्याओ मे विवाह से संबन्धित पक्ष शुभ नहीं होता उनके विवाह मे कई बार विवाह होने से पूर्व अंतिम समय पर विवाह विच्छेद होने की समभावनाए बनती हैं अथवा विवाह की बात बनते बनते रह जाती हैं |

इस गुरु ग्रह का देवत्व से भरा व सर्वाधिक शुभ ग्रह होने के बावजूद एक बहुत ही बड़ा विरोधाभास देखने मे आता हैं की यह गुरु किसी भी लग्न मे सम्पूर्ण रूप से शुभ भावो का स्वामी नहीं बनता हैं जबकि सर्वाधिक रूप से पाप ग्रहो मे गिने जाने वाले ग्रह शनि व मंगल कम से कम एक लग्न मे तो योगकारक पाये जाते हैं,यहाँ तक की वृश्चिक लग्न जिसमे इस गुरु ग्रह को अति शुभ माना जाता हैं उसमे भी यह एक मारक भाव के स्वामी बनते हैं |

गुरु का स्वामित्व भी इस प्रकार से हैं की यह सप्तम भाव मे होने पर भी मिले जुले परिणाम ही प्रदान करता हैं जातक देश के अनुसार ग्रह जो पंचम,अष्टम व मांदी राशि का स्वामी  होकर सप्तम भाव मे शुभ प्रभाव मे ना हो तो जीवन साथी की मृत्यु तक दे सकता हैं |

आइए लग्न अनुसार देखते हैं की गुरु क्या क्या प्रभाव स्त्री पत्रिका मे सप्तम भाव मे स्थित होकर दे सकते हैं |

मेष लग्न मे गुरु नवम व द्वादश भाव के स्वामी बनते हैं इस अवस्था मे गुरु का नवमेश होकर सप्तम मे बैठना तो शुभ हैं परंतु द्वादशेश होकर बैठना अशुभ विशेषकर यदि वह राहू के नक्षत्र मे होतो यह और भी अशुभ हो जाता हैं |

वृषभ,सिंह व वृश्चिक लग्नों के लिए गुरु पंचमेश व अष्टमेश बनते हैं जिसके विषय मे हम पहले ही कह चुके हैं की सप्तम भाव मे स्थित इस गुरु पर यदि शुभ प्रभाव ना होतो यह जीवन साथी की मृत्यु भी दे सकते हैं |

मिथुन व कन्या लग्न के लिए गुरु बाधकपति होते हैं सप्तम भाव मे होने पर यह हंस नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण तो करते हैं परंतु तब इनकी बाधकता और भी बढ़ जाती हैं और ये कई प्रकार की और भी अशुभता देते हैं |

कर्क लग्न मे गुरु सप्तम भाव मे होने पर नीच के हो जाते हैं जो विवाह हेतु अशुभ ही होते हैं वही 
तुला लग्न मे गुरु लग्नेश शुक्र का शत्रु होने के कारण अशुभ ग्रह ही बनता हैं इसका सप्तम भाव मे विशेषकर केतू व सूर्य के नक्षत्र मे होना अशुभता ही देता हैं |

मकर लग्न मे गुरु सप्तम भाव मे भले ही ऊंच के हो जाते हैं परंतु यहाँ यह तृतीयेश व द्वादशेश भी होते है जिस कारण अशुभता ही प्रदान करते हैं | कुम्भ लग्न के लिए गुरु मारक भाव का स्वामी बनता हैं जिसका दूसरे मारक भाव सप्तम मे होना किसी भी रूप से शुभता नहीं दे सकता वही धनु व मीन लग्नों के लिए यह दो केन्द्रो के स्वामी बनते हैं जिसका सप्तम भाव मे होना अशुभता ही प्रदान करेगा |

गुरु जब मांदी पति होकर सप्तम भाव मे स्थित होता हैं तब हानी ही करता हैं यहाँ यह भी ध्यान रखे की गुरु व बुध को लग्न मे दिग्बली माना जाता हैं तथा सप्तम भाव मे कमजोर व अशुभ माना जाता हैं वैसे भी गुरु की सप्तम भाव मे स्थिति से ज़्यादा उसकी सप्तम भाव पर दृस्टी शुभ होती हैं ऐसा अनुभव मे देखने मे भी आता हैं |

जातक देश के अनुसार पंचमेष का सप्तम भाव मे स्थित होना विवाह के लिए अशुभ माना जाता हैं जबकि अनुभवो मे यह देखा गया हैं की यह संबंध पंचम भाव हेतु अशुभता प्रदान करता हैं ऐसे मे जातक की कोई ना कोई संतान अवश्य नष्ट होती हैं ज्योतिष के महान ज्ञाता बी॰वी॰रमन की पत्रिका इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण हैं |

इस प्रकार हम कह सकते हैं की स्त्री पत्रिका मे गुरु यदि अशुभ भाव मे हो,चन्द्र संग हो, चन्द्र से सप्तम भाव मे हो तो शुरुआती परेशानियों के बाद विवाह शुभ रहता हैं | चन्द्र व गुरु का समसप्तक होना स्त्री हेतु विवाह मे शुभता ही दर्शाता हैं वही वैवाहिक शुभता के लिए सप्तम व नवम भाव का कोई ना कोई संबंध होना अवश्य होना चाहिए यदि इनके स्वामियो का परिवर्तन योग होतो बहुत ही शुभता रहती हैं | इसके साथ साथ लग्न व लग्नेश के स्थिति भी देखी जानी चाहिए |


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