रविवार, 2 अक्टूबर 2016

कोट चक्र .......3

आइए अब एक उदाहरण देखते हैं |

5/4/1942 12:00:05 लाहोर पाकिस्तान मे तुला लग्न मे जन्मे इस जातक को 2011 के मार्च माह मे गले के कैंसर (गांठ ) का पता चला तथा चिकित्सको ने इन्हे बताया की कैंसर अपनी फाइनल स्टेज मे हैं और इनके पास जीवन के कुछ ही माह शेष बचे हैं | आइए इनकी कुंडली की विवेचना इनकी उस समय की दशा व कोट चक्र के आधार पर करते हैं |

प्रस्तुत तुला लग्न की कुंडली मे लग्नेश शुक्र एकादश भाव मे मंगल,सूर्य व राहू के साथ हैं | कुंडली के दूसरे व तीसरे भाव पर मंगल,शनि,गुरु,चन्द्र व राहू की दृस्टी हैं जिस कारण सांस नली व गले का हिस्सा प्रभावित नज़र आता हैं | 2011 मे इन्हे शुक्र मे चन्द्र की दशा थी शुक्र लग्नेश,अष्टमेश होकर पाप ग्रहो से पीड़ित हैं तथा इनके जन्म नक्षत्र से छठे नक्षत्र का स्वामी भी हैं इसने विशेषकर राहू के प्रभाव मे होने से शरीर मे हो रही बीमारी का पता चलने ही नहीं दिया वही चन्द्र कर्मेश होकर तृतीयेश व षष्ठेश गुरु संग हैं जो वैसे भी तुला लग्न हेतु अशुभ ही होता हैं | जातक को गले मे तकलीफ होने पर जांच कराने पर बीमारी का पता चला परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी | जातक 6 अप्रैल 2011 को आनन फानन मे अस्पताल मे भर्ती कर दिया गया चिकित्सक जब तक इलाज के विषय मे कुछ कर पाते जातक की आवाज चली गयी तथा उन्हे घुटने निगलने मे तकलीफ होने लगी जिससे उनका स्वास्थ्य तेजी से गिरने लगा और 14/4/2011 को रात 11:30 पर उनकी मृत्यु हो गयी इस समय उनकी सूक्ष्म दशा शुक्र-चन्द्र-शुक्र-शुक्र-बुध की थी  शुक्र चन्द्र के विषय मे हम देख ही चुके हैं वही बुध द्वादश भाव मे जातक की मृत्यु को स्पष्ट रूप से सांकेतिक कर रहा हैं |
गोचर मे शनि द्वादश भाव मे वक्री होकर स्थित था जो राशि से चतुर्थ हैं ( राशि से चतुर्थ व अष्टम शनि हानिकारक होता हैं ) वही गुरु(षष्ठेश),मंगल(मारकेश) बुध वक्री(द्वादशेश) छठे भाव मे ही थे जिनकी द्वादश भाव पर दृस्टी थी वही लग्नेश इन सभी से द्वादश भाव मे गोचर कर रहा था |
कोट चक्र मे देखे तो मृत्यु वाले दिन निम्न प्रभाव दिखते हैं |

1)सूर्य मध्य भाग मे प्रवेश कर रहा हैं जबकि चन्द्र मध्य भाग से बाहर जा रहा हैं | सूर्य का नक्षत्र दुर्ग मे नही हैं परंतु चन्द्र का नक्षत्र दुर्ग मे हैं |

2)गुरु,बुध(व) प्रकार मे हैं जो मध्य की और प्रवेश कर रहे हैं यहाँ गुरु इस लग्न हेतु अशुभ हैं |

3) बुध (कोटस्वामी) हैं जो प्रकार से मध्य की ओर प्रवेश कर रहा हैं परंतु वक्री होकर अशुभ हो गया हैं |

4)राहु (कोटपाल) होकर बाहरी प्रवेश द्वार पर स्थित हैं परंतु वक्री गृह होने पर अपनी शुभता खो चुका हैं |

5)मंगल तथा शनि (व) दोनों पाप गृह होकर प्रवेश (बाह्य) द्वार पर प्रवेश कर रहे हैं जबकि शुक्र(लग्नेश) केतू बाहर जा रहे हैं |

6)शनि मंगल (प्रवेश करते हुए गृह ) पाप गृह होकर चन्द्र व गुरु नक्षत्र मे हैं गुरु,बुध बुध नक्षत्र मे तथा शुक्र स्वयं गुरु नक्षत्र मे हैं इन सभी नक्षत्रो के स्वामी दुर्ग मे स्थित हैं |

इस प्रकार यह सभी अवयव उस नियत दिन जातक हेतु अशुभता ही दर्शा रहे थे |   

कोई टिप्पणी नहीं: