अमावस्या और पित्र
श्राद
हमारे सभी प्राचीन
धर्म व ज्योतिष शास्त्रो मे अमावस्या का दिन पितरो की शांति हेतु श्राद्द कर्म करने के लिए
विशेष महत्व का बतलाया गया हैं | पित्रपक्ष अर्थात जब सूर्य कन्या राशि
मे गोचर करता हैं तब उस माह मे पड़ने वाली अमावस्या को
हमारे विद्वान नक्षत्र अनुसार विशेष रूप से अधिक महत्व का बताते हैं | इस अमावस्या को भारतीय ज्योतिष के
अनुसार उन सभी पितरों की शांति हेतु विशेष माना जाता हैं जिनकी मृत्यु अकाल अथवा
अस्वाभाविक रूप से हुई होती हैं | यह अमावस्या कन्या राशि मे पड़ती हैं जहां से
सूर्य का गोचर अपनी नीच राशि की और होता हैं और धरती पर ठंड का आगमन होने लगता हैं
|
विभिन्न
शास्त्रानुसार ऐसा कहा गया हैं की जो अमावस्या अनुराधा,विशाखा एवं स्वाति नक्षत्र से युक्त हो
उसमे श्राद्द कर्म करने से पित्र 8 वर्षो तक तृप्त
रहते हैं, जो अमावस्या पुष्य,पुनर्वसु
या आर्द्रा नक्षत्र से युत हो उसमे पूजित होने से पित्र 12 वर्षो तक तथा अमावस्या
के धनिष्ठा,पूर्वभाद्रपद्ब या शतभीषा नक्षत्र मे होने पर श्राद्द
किए जाने पर पित्र हमेशा के लिए तृप्त हो जाते हैं | श्राद्द कर्म के
अतिरिक्त यदि कोई वर्ष भर प्रत्येक अमावस्या के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ करता
हैं तो भी पित्रो की मुक्ति हो जाती हैं | इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति
यह सब भी नहीं कर सकते उन्हे सिर्फ अपनी रसोई मे जल के स्थान मे अपने पितरों के लिए सरसों के तेल
का "दिया" जलाना चाहिए तथा स्नान करते समय पित्रो के लिए जलांजलि ( हाथसे जल लेकर
पूर्व दिशा की और छोड़ना ) देनी चाहिए |
इस वर्ष यह अमावस्या
30 सितंबर को पड़ रही हैं |
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