गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

मेष लग्न मे गुरु



मेष लग्न मे गुरु

सभी ग्रहो मे गुरु ग्रह को सबसे ज़्यादा सात्विक व शुभता प्रदान करने वाला कहाँ जाता हैं इसके प्रभावों से जातक विशेष को लाभ व शुभता ही मिलेगी ऐसा विश्वास किया जाता हैं परंतु अनुभव मे ऐसा भी देखने मे आता हैं की कहीं कहीं गुरु ग्रह के फलजातक विशेष को  अशुभता लिए हुये मिले यह भी पाया गया की जो ग्रह गुरु संग था अथवा गुरु से देखा जा रहा था उसने भी अपने शुभ फलो की जगह अशुभफल ही प्रदान किए | गुरु को शुभग्रहों की श्रेणी मे रखा गया हैं परंतु सभी लग्नों मे यह शुभता प्रदान करता नहीं देखा गया जब भी गुरु सूर्य,मंगल,शनि,राहू व केतू के प्रभाव मे होता हैं तो यह अपने कारकत्वों की कमी प्रदान करता हैं तथा साथ वाले पापी ग्रह के प्रभाव मे वृद्दि कर देता हैं |

मेष लग्न मे गुरु नवम व द्वादश भाव का स्वामी होता हैं इसकी सूर्य पंचमेश संग युति राजयोग का निर्माण करती हैं परंतु यदि यह युति 6,8,12 भावो मे होने से शुभता के जगह अशुभता ही देती हैं | यह युति यदि केंद्र मे हो बहुत शुभफल देती हैं जातक अपने क्षेत्र मे काफी नाम कमाता हैं |

मंगल लग्नेश व अष्टमेश स्वामी होकर जब गुरु से युति करता हैं तब यह युति बड़े ही विचित्र फल प्रदान करती हैं एक तरफ तो यह राजयोग देती हैं वही दूसरी तरफ यह दो बुरे भावो के फल भी प्रदान करती हैं जातक भ्रमित सा रहता हैं और यदि इस युति पर शनि या बुध ग्रह का प्रभाव पड़ रहा होतो और भी अशुभफलों की वृद्दि हो जाती हैं |

गुरु की बुध संग युति मेष लग्न मे 3,6,9,12 भावो के स्वामियों की युति बनती हैं जो ना सिर्फ विपरीत भावो की युति हैं बल्कि दो शत्रु ग्रहो की भी युति हैं जिस कारण अशुभफलों की ही प्राप्ति होती हैं परंतु यह युति अगर बुध की नीच राशि मे बने तो कुछ शुभफल भी मिलते देखे गए हैं |
गुरु संग शुक्र की युति जातक विशेष को जहां एक तरफ सांसारिक वस्तुओ की और खींचती हैं वही दूसरी और आध्यात्मिक व धार्मिक जीवन की और जाने को प्ररित भी करती हैं क्यूंकी यहाँ इस लग्न मे शुक्र दो भोग स्थानो का स्वामी बनता हैं वही गुरु धर्म और मोक्षता जैसे भावो को बताता हैं ऐसे मे जातक दो पाटो मे झूलता रहता हैं उसकी सांसरिक चाह के चलते  गुरु अपने शुभफल कम ही दे पाता हैं |

गुरु की शनि संग युति जहां एक तरफ राजयोग का निर्माण करती हैं वही दूसरी तरफ यह कुंडली के अंतिम चार भावो का फल भी प्रदान करती हैं गुरु यहाँ शनि संग होने से शनि की विशेषताओ को ज़्यादा दर्शाता हैं जातक विशेष कुछ करना पसंद नहीं करता परंतु बातें बड़ी बड़ी करता हैं उसका आध्यात्मिक रुझान ज़्यादा होता जाता है जिससे वह जीवन मे सांसारिक रूप से असफल ही रहता हैं 

गुरु की राहू केतू से युति इस बात पर निर्भर करती हैं की राहू केतू किस राशि पर हैं (चूंकि राहू केतू अपनी स्वामित्व वाली राशि के अनुसार ही फल प्रदान करते हैं ) यदि इनके राशि स्वामी गुरु ग्रह के मित्र हुये तो शुभफल प्राप्त होते हैं और यदि शत्रु हुये तो अशुभफल की प्राप्ति होती हैं |

गुरु का चन्द्र संग होना ही एक ऐसी युति हैं जो इस मेष लग्न मे शुभ कही जा सकती हैं परंतु यहाँ भी चन्द्र को नीच,निर्बल व कमजोर नहीं होना चाहिए और नाही यह युति 6,8,12 मे होनी चाहिए संभवत: इसी कारण हमारे विद्वान इस युति को गजकेसरी योग कहते हैं जो बहुत ही शुभ युति कहलाती हैं |

संक्षेप मे यह कहाँ जा सकता हैं की मेष लग्न के लिए गुरु अलग अलग प्रभाव प्रदान करता हैं जिसे हम पूर्णरूप से शुभाशुभ नहीं कह सकते यह गुरु ग्रह की स्थिति व विभिन्न ग्रहो संग उसकी युति द्वारा ही जाना जा सकता हैं की वह कौन सा व कैसा फल प्रदान करेगा |

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