एकादशेश
कितना शुभाशुभ
एकादश
भाव मे सभी ग्रहो को शुभ माना जाता हैं जबकि एकादशेश को ज्योतिष के सभी प्राचीन
विद्वान अशुभ मानते हैं भारतीय हिन्दू ज्योतिष के पितामह ऋषि पाराशर एकादशेश को
दुखदायक अथवा अशुभ कर्ता कहते हैं उनके द्वारा बृहत पाराशर होरा शास्त्र मे
“त्रिषडायाधिपा: सर्वेग्रह: पापफल: स्मृता” लिखा गया हैं |
ऋषि
पाराशर ने एकादश भाव मे बैठे शुभग्रह तथा एकादशेश संग बैठे ग्रह के लिए भी अशुभ
प्रभाव कहें हैं अनुभव मे एकादश भाव मे सभी ग्रह शुभता देते देखे गए हैं परंतु जब
कोई ग्रह एकादशेश संग होता हैं तो वह अशुभफल ही देता हैं यदि एकादशेश को पाप ग्रह
माना जाये तो एकादश भाव,एकादशेश संग बैठा
ग्रह तथा एकादश भाव मे बैठा ग्रह तीनों ही अशुभ हो जाएंगे |
पराशरानुसार
एकादश भाव लाभ,पुत्रवधू,दामाद,आय तथा पशुओ का माना जाता हैं |प्रत्येक व्यक्ति इस संसार मे सांसारिक वस्तुओ के पीछे भागता हैं और जब तक
व्यक्ति को यह वस्तुए प्राप्त नहीं होती उसे सफल व सम्मानित नहीं माना जाता हैं
यदि एकादशेश व एकादश भाव कमजोर होतो व्यक्ति चाहे कितना ही गुणवान क्यू ना हो उसे
सफलता,सम्मान व आदर प्राप्त नहीं होता दूसरे शब्दो मे कहे तो
जिस व्यक्ति का एकादशेश व एकादश भाव मजबूत हो उसे ही समाज मे इज्जत,सम्मान,खुशी,आदर इत्यादि
प्राप्त होते हैं सभी प्रकार के लाभ इत्यादि एकादशेष तथा एकादश भाव से से जुड़े
ग्रहो की दशा अंतर्दशा मे ही संभावित होते हैं इसीलिए इनसे जुड़ी दशाओ का इंतज़ार
प्रत्येक व्यक्ति को रहता हैं इस प्रकार कहाँ जा सकता हैं की एकादशेश पाप ग्रह
नहीं होता दूसरी तरफ से देखे तो यह उन सभी व्यक्तिओ के लिए शुभ होता हैं जो
सांसारिक वस्तुओ की प्राप्ति मे लगे रहते हैं क्यूंकि एकादश भाव से जुड़े ग्रहो की
दशा अंतर्दशा मे ही इन सब वस्तुओ की प्राप्ति होती हैं ऐसे मे एकादशेश का लग्नेश से
संबंध भी अपना विशेष महत्व रखता हैं |
इस
विषय मे भावार्थ रत्नाकर मे कहा गया है की कर्क लग्न के लिए बुध तीसरे व बारहवे घर
का स्वामी होने के साथ साथ लग्नेश चन्द्र का शत्रु भी हैं जिससे यह कर्क लग्न के
लिए अशुभ हुआ वही नैसर्गिक शुभ ग्रह शुक्र चतुर्थ व एकादश भाव का स्वामी होते हुये
तथा केंद्र स्वामी होने के कारण अशुभ परिणाम दे सकता हैं परंतु शुक्र एकादशेश होने
के कारण शुभ प्रभाव देता हैं जब यह बुध और शुक्र पंचम भाव मे होते हैं तो दोनों
पंचमेश मंगल संग शत्रुता के चलते स्वयं भले ही प्रसन्न ना रहे परंतु शुभ फल ही देते
हैं जिससे स्पष्ट होता हैं की एकादशेश व उसके संग बैठा पाप ग्रह शुभता ही देते हैं
|
इसी
प्रकार एक अन्य सूत्र मे मीन लग्न हेतु शनि का द्वादश मे होना शुभ बताया गया
हैं द्वादशेश को सम प्रभाव देने वाला माना
जाता हैं जिसके सम होने से शनि कैसे शुभफल दे सकता हैं यदि उसका दशमेश से संबंध हो
अर्थात शनि योगप्रदायक हो तब भी ऐसा नहीं हो सकता क्यूंकी मीन लग्न मे दशमेश व
लग्नेश गुरु होने से उसे केंद्राधिपति दोष लगता हैं जिससे गुरु स्वयं प्रभावहीन हो
जाता हैं फिर भी इस शनि को शुभ कहाँ गया हैं ऐसा संभवत: शनि के एकादशेश व द्वादशेश
दोनों होने की वजह से कहा गया होगा |
फलदीपिका
मे कहा गया हैं की एकादशेश की दशा मे जातक विशेष को संपन्नता,नौकर चाकर,मित्रता व सभी सांसारिक सुख इत्यादि
प्राप्त होते हैं जिससे भी यही साबित होता हैं की एकादशेश लाभकारी ही होता हैं
पाराशर जी यह भी कहते हैं की एकादशेश यदि नीच राशि मे हो 6,8,12 मे हो,पाप ग्रहो संग हो तो जातक चाहे कितना भी त्याग
इत्यादि करले गरीबी मे ही जीता हैं |
यदि
एकादशेष पाप प्रभाव मे हो तो हानी होगी लाभ नहीं और बिना लाभ के जीवन बेकार हैं
अत: हम यह कह सकते हैं की एकादशेश यदि ठीक से स्थित होतो वह व्यक्ति के जीवन के
चमकीले हिस्से को दर्शाता हैं अंधेरे हिस्से को नहीं हमे यह भी ज्ञात होता हैं की
एकादश भाव शरीर का लाभ होता है और शरीर तब ही आनंद अथवा लाभ प्राप्त कर सकता हैं
जब एकादशेश व एकादश भाव मजबूत हो,यह भाव
परिवार व वाणी भाव से दशम होता हैं व्यक्ति तब ही परिवार मे पसंद किया जाता हैं जब
वह अपने कर्मो के द्वारा उचित धन संपत्ति कमाता हो और धन तभी आता हैं जब लाभ हो,एकादशेश व एकादश भाव मजबूत हो,भाई व मित्र भी आपको
धन होने पर ही पसंद करते हैं इसलिए यह तीसरे से नवम भाव हैं सुख भाव से यह अष्टम
भाव होता हैं जो सुख की आयु बताता हैं पंचम से सप्तम होने से यह ये बताता हैं की
लाभ पाने के लिए पूर्व पुण्य गँवाने पड़ते हैं छठे से छठा होने पर यदि यह भाव व
उसका स्वामी मजबूत हो यह इस बात का संकेत होता हैं की आपके शत्रु,रोग व ऋण कभी नहीं होंगे सप्तम से पंचम भाव होने से यह जीवन साथी की शुभता
के बारे मे बताता हैं अष्टम से चतुर्थ होने से यह इस बात का परिचायक बनता हैं की
आयु का सूख तभी हैं जब आपको लाभ होता रहे नवम से तीसरा भाव होने से यह संदेश देता
हैं की धर्म व लाभ एक साथ नहीं हो सकते दशम से दूसरा भाव होने से यह भाव कर्मो का
धन भाव बन जाता हैं जो कर्म करने पर लाभ होने की प्रेरणा देता हैं यह सभी तथ्य
हमें एकादशेश की शुभता ही दर्शाते हैं अर्थात इसे अशुभ कदापि नहीं कहाँ जा सकता |
संभवत:
पराशरजी इसे अशुभ इसलिए कहते हैं क्यूंकी यह द्वादश का द्वाश भाव होता हैं अर्थात
मोक्ष का व्यय भाव, एकादश भाव हमें
लाभ की प्रेरणा देता हैं जिसके होने से हम मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते,यह सुख का मृत्यु भाव हैं,तथा बुद्दि,संतान व पूर्वपुण्यों का सप्तम भाव हैं यह सभी भाव हमें बांधते हैं अर्थात
इनसे मुक्ति ही हमें मोक्ष दिलाती हैं |
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