अगर ग्रहस्थ आश्रम
से मोक्ष मिलता तो........................
शुकदेवजी जब जन्म
के कुछ समय बाद वन को जाने लगे तो उनके पिता व्यासजी ने ने उनसे कहा “बेटा कुछ दिन
ठहरो मैं तुम्हारे कुछ संस्कार तो कर दू“ |
इस पर शुकदेवजी ने
कहा अब तक जन्म जन्मांतरों मे मेरे असंख्य संस्कार हो चुके हैं जिन्होने मुझे भटका रखा हैं इसलिए अब मैं संस्कारो से कोई
सरोकार नहीं रखना चाहता
अपने पुत्र की बात
सुनकर व्यासजी बोले तुम्हें ब्रह्मचर्य,ग्रहस्थ,वानप्रस्थ और सन्यास इन चारो आश्रमो मे प्रवेश करना ही चाहिए तभी तुम्हें
मोक्ष प्राप्त हो सकेगा |
शुकदेव बोले “अगर
ब्रह्मचर्य से मोक्ष मिलता तो नपुंसको को वह हमेशा ही प्राप्त रहता,अगर
ग्रहस्थाश्रम से मोक्ष मिलता होता तब तो सारी दुनिया को ही मुक्ति मिल गयी होती,अगर वानप्रस्थों को मोक्ष मिलता होता तो सारे पशु पक्षी मुक्त हो गए होते
और अगर सन्यास से मोक्ष मिलता हो,तब तो सारे दरिद्रों को वह
फौरन मिलना चाहिए” |
व्यासजी ने कहा
“ग्रहस्थों के लिए लोक परलोक दोनों सुखद होते हैं“|
पुत्रहीन व्यक्ति नरक गमन करता हैं |
अपने पिता की बातों
को काटते हुये शुकदेव ने कहा “अगर पुत्र होने से स्वर्ग मिलता तो शूकरो,कुत्तो,और टिड्डिओ को भी व मिलता होगा | व्यासजी “पुत्र के
दर्शन से मनुष्य पित्रऋण से मुक्त हो जाता हैं,पौत्र दर्शन
से देवऋण से मुक्त हो जाता हैं और प्रपौत्र के दर्शन से उसे स्वर्ग की प्राप्ति
होती हैं” |
शुकदेव ने जवाब
दिया गिद्दों की आयु बहुत लंबी होती हैं वे अपनी कई पीढ़ियाँ देखते हैं पौत्र
प्रपौत्र तो उनके लिए साधारण सी बात हैं पर ना जाने उनमे से कितनों को मोक्ष मिला
होगा |
यह सुनकर व्यासजी
निरुत्तर हो गए |
vv
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