गुरुवार, 30 जनवरी 2014

श्राद्ध मे हैं भाव की अहमियत -

श्राद्ध मे हैं भाव की अहमियत -

भक्ति की तरह श्राद्ध मे भी भाव की अहमियत होती हैं | यदि अन्न,वस्त्र खरीदने के लिए धन ना हो तो शाक से श्राद्ध कर देना चाहिए | यदि शाक खरीदने की भी सामर्थ ना होतो तृण व काष्ठ आदि बेचकर शाक खरीदे व श्राद्ध करे यदि इसकी भी व्यवस्था ना हो सके पद्म पुराण के अनुसार यदि गाय को घास खिला दे तो भी श्राद्ध पूर्ण हो जाता हैं | यदि घास भी ना मिले तो श्राद्धकर्ता एकांत मे दोनों हाथ उठाकर निम्नलिखित श्लोक से पितरो की प्रार्थना करे |

न मेअस्ति वितनम न धनम च नान्यच्छाध्ह्योपयोग्यम स्वपित्रन्नतों अस्मि |
त्रिप्यंतु भक्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौवत्मर्नी मारुतस्य | |

अर्थात हे मेरे पित्रगण | मेरे पास श्राद्ध के लिए ना तो धन हैं ना धान्य | हाँ, मेरे पास आपके लिए श्राद्ध और भक्ति हैं | मैं इन्ही के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूँ | आप तृप्त हो जाये,मैंने शास्त्रा नुसार दोनों भुजाओ को आकाश मे उठा रखा हैं |

एक अन्य मत अनुसार जातक विशेष के अपने सामर्थनुसार सोने के पिंड,चावल के पिंड व मिट्टी के पिंड द्वारा भी अपने पूर्वजो को पिंड दान कर श्राद्ध कर्म किया जा सकता हैं | 








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