श्राद्ध मे हैं भाव की अहमियत -
भक्ति की तरह
श्राद्ध मे भी भाव की अहमियत होती हैं | यदि अन्न,वस्त्र खरीदने के लिए धन ना हो तो शाक से श्राद्ध कर देना चाहिए | यदि शाक खरीदने की भी सामर्थ ना होतो तृण व काष्ठ आदि बेचकर शाक खरीदे व
श्राद्ध करे यदि इसकी भी व्यवस्था ना हो सके पद्म पुराण के अनुसार यदि गाय को घास
खिला दे तो भी श्राद्ध पूर्ण हो जाता हैं | यदि घास भी ना
मिले तो श्राद्धकर्ता एकांत मे दोनों हाथ उठाकर निम्नलिखित श्लोक से पितरो की
प्रार्थना करे |
न मेअस्ति वितनम न
धनम च नान्यच्छाध्ह्योपयोग्यम स्वपित्रन्नतों अस्मि |
त्रिप्यंतु भक्त्या
पितरो मयैतौ कृतौ भुजौवत्मर्नी मारुतस्य | |
अर्थात हे मेरे
पित्रगण | मेरे पास श्राद्ध के लिए ना तो धन हैं ना
धान्य | हाँ, मेरे पास आपके लिए
श्राद्ध और भक्ति हैं | मैं इन्ही के द्वारा आपको तृप्त करना
चाहता हूँ | आप तृप्त हो जाये,मैंने
शास्त्रा नुसार दोनों भुजाओ को आकाश मे उठा रखा हैं |
एक अन्य मत अनुसार
जातक विशेष के अपने सामर्थनुसार सोने के पिंड,चावल
के पिंड व मिट्टी के पिंड द्वारा भी अपने पूर्वजो को पिंड दान कर श्राद्ध कर्म
किया जा सकता हैं |
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