सोमवार, 31 मई 2010

जून माह का आंकलन

जून माह का ग्रह गोचर-- सूर्य १५ तारीख को मिथुन राशी में,मंगल पुरे महीने सिंह राशी में,बुध ६ तारीख को वृष तथा २२ तारीख को मिथुन राशी में,गुरु पुरे माह मीन में,शुक्र ९ तारीख को कर्क राशी में ,शनि,राहू व केतु क्रमश:कन्या,धनु व मिथुन में रहेंगे|

इस महीने की शुरुआत मंगलवार से हो रही तथा इस माह ५ मंगल, व ५ बुधवार होंगे जिनके प्रभाव से महंगाई बढेगी जिससे जनता में आक्रोश होगा,सीमाओ पर युद्ध जैसे हालात पैदा होंगे,नए नए अविष्कार होंगे जिससे देश की उन्नति होगी |माह की शुरुआत में मंगल शनि का एक दुसरे से १२वे होना तथा गुरु शनि का समसप्तक होना भयंकर रूप से अग्निकांडो व प्राक्रतिक आपदाओं का योग बना रहा हैं |९ तारीख से मंगल व शुक्र का एक दुसरे से १२वे होना स्त्री जातियो हेतु परेशानियो को बता रहा हैं, वही इस माह शनि अमावस्या का रोहिणी नक्षत्र में होना पानी की कमी होना दर्शा रहा हैं |१५ तारीख से सूर्य का केतु संग होना व शनि की दृष्टी में आना कही न कही सत्ता परिवर्तन करवा सकता हैं,बुध ग्रह का इन दोनों से २२ तारीख को मिलना तथा २६ तारीख को चन्द्र ग्रहण पड़ना भयंकर रूप से आंधी- तूफानों का आना व कही कही सुखा तथा अकाल पड़ना दर्शा रहे हैं |

सोना चांदी-शनि ग्रह का मार्गी होना सोना,चांदी में मंदी लाएगा,परन्तु ११.१२,व १३ तारीख को सोने में फिर तेजी आएगी जो की माह के अंत तक बनी रहेगी|

विभिन्न राशियो हेतु यह माह -मेष,वृष,मिथुन,कर्क,तुला,वृश्चिक,धनु व मीन राशियो हेतु यह माह सामान्य व उन्नति दायक रहेगा,वही कन्या,मकर व कुम्भ हेतु मिश्रित जबकि सिंह राशी हेतु संघर्ष पूर्ण रहेगा |

इस माह की भविष्यवाणी-किसी बड़े ओद्योगिक घराने में कोई घोटाला व मानहानि होने का अंदेशा हो सकता हैं |

गुरुवार, 27 मई 2010

सिंह राशी में मंगल

लीजिये मित्रो मंगल ग्रह(पिछले लगभग आठ महीनो से अपनी नीच राशी कर्क को छोड़कर) सिंह राशी में प्रवेश कर गए |सामान्यत:मंगल हर राशी में डेढ़ माह तक रहता हैं परन्तु अपनी इस नीच राशी में कुछ समय वक्री रहने की वजह से इस बार यह काफी समय से कर्क राशी में ही रहे जिसकी वजह से धरती पर काफी उथल पुथल तथा हलचल रही (ज्वालामुखी फटे,हिंसात्मक घटनाएं आदि हुई)

मंगल का यह सिंह राशी का प्रवेश भारत हेतु मंगलदायक सिद्द होगा भारत के शत्रु शांत होंगे तथा खनिज पदार्थ व बिजली के क्षेत्र में भारत काफी तरक्की हासिल करेगा, भारत का पराक्रम भी बढेगा परन्तु इस परिवर्तन से शेयर बाज़ार में ज़रूरकुछ समय के लिए गिरावट आ सकती हैं |

मंगल ग्रह की कारकता-यह अग्नि तत्त्व,पित्त प्रकृति व मज्जा का स्वामी हैं तथा शक्ति,पराक्रम,बल,भूमि,सम्पदा व सम्पति,युद्ध,सेना शस्त्र,रसोई,कृषि,धैर्य,मासिक धर्म,फोड़ा फुंसी,चर्मरोग,चेचक,मिर्गी आदि का कारक हैं |

विभिन्न राशियो पर मंगल ग्रह के इस परिवर्तन से निम्न प्रभाव पड़ेंगे |

मेष राशी-पेट के रोग हो सकते हैं,खर्चे बढ सकते हैं |हनुमान चालीसा का पाठ करे|

वृष राशी-घर में अशांति हो सकती हैं ,भू सम्पति में हानि तथा व्यवशाय में लाभ भी होगा | हनुमानाष्टक का पाठ करे |

मिथुन राशी-धन ,यश,सम्मान बढेगा तथा जीवन में सरलता आएगी |

कर्क राशी- भाग्य,धर्म,यश की वृद्दि होगी परिवार का सुख मिलेगा |

सिंह राशी- भवन, भूमि,शरीर व माँ की तरफ से सुख मिलेंगे |गायत्री मंत्र का जप करे |

कन्या राशी-शत्रु व खर्चे बढेंगे |मंगलवार को हनुमान मंदिर में दिया जलाये|

तुला राशी-धन,स्त्री,कुटुंब व सुख में वृद्दि होगी |

वृश्चिक राशी- व्यापार में सफलता तथा सांसारिक सुखो में वृद्दि होगी, हो सके तो यथा शक्ति दान करे |

धनु राशी-बहुत खर्चे होंगे,विदेश से शुभ समाचार मिलेंगे| ॐ कमल वसिन्ये नमः मंत्र का जाप करे |

मकर राशी- भूमि, माता व मकान सुख में कमी होगी परन्तु आमदनी अच्छी होगी | ॐ अंग अंगारकाय नमः मंत्र की एक माला रोजाना जपे|

कुम्भ राशी-भाग्य उदय व जीवन सुखी होगा |मंगल वस्तुए दान करे|

मीन राशी- विदेश व्यापार से नुक्सान व असंतोष होगा| ६ मंगलवार व्रत करे |

बुधवार, 19 मई 2010

१३ दिनों का पक्ष

हमारे भारतीय शास्त्रों में जब भी १३ दिनों का पक्ष का ज़िक्र हुआ हैं उसमे भयानक परिस्थितियो के बारे में कहा गया हैं|जब भी १३ दिनों का पक्ष आता हैं बहुत ज्यादा नरसंहार जन धन की हानि होती हैं अगर हमारे इतिहास पर ध्यान दिया जाये तो हमें ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं जिनमे १३ दिनों के पक्ष के विषय में यह सभी बाते लागू होती हैं| भारत वर्ष में १५,१५ दिनों का शुक्ल कृष्ण पक्ष होता हैं किसी भी कारण से यदि एक दिन धट जाए तो उसे तिथि क्षय माना जाता हैं परन्तु यदि दो दिन एक ही पक्ष में घट जाए तो यह प्रजा जनता हेतु शुभ नहीं माना जाता हैं तथा इसके बेहद गंभीर व भयानक परिणाम होते हैं |
) महाभारत का युद्ध ऐसे ही १३ दिनों के पक्ष में हुआ था |
) दूसरा विश्व युद्ध (हिरोशिमा-नागासाकी पर परमाणु हमला) इसी पक्ष में हुआ|
)१९५९ में भाद्रपद माह में अमरीका चिली में भूकंप आया था |
)१९६२ में भारत चीन का युद्ध|
)१९७६ में भारत में इमरजेंसी लगायी गयी तथा चीन में भूकंप आया था |
)१९८२ में इजरायल लेबनान में युद्ध हुआ था
ऐसे अन्य बहुत से उदाहरण हैं जिनसे इन १३ दिनों के पक्ष के विकराल भयानक रूप के बारे में पता चलता हैं|
वैसे भारत विश्व में इसके आगमन की दस्तक तो हो ही गयी हैं ज्वालामुखी फिर से फूट पड़ा,थाईलैंड में हिंसा भड़की,पूर्व उप राष्ट्रपति का निधन हुआ,४० जवानो की हत्या हो गयी तथा अभी २८ तारीख तक विश्व में कुछ बड़ा भयानक होने की प्रबल सम्भावना हैं ऐसा हमारा विश्वास ही नहीं हमारी गणना भी हैं |

सोमवार, 17 मई 2010

गुरु ग्रह का राशी परिवर्तन ३

सिंह राशी-इस राशी से गुरु ग्रह का आठवां गोचर होगा जो की अशुभ हैं जिसके प्रभाव से स्वास्थ प्रतिकूल होगा,दुर्घटनाये भी हो सकती हैं, अपयश मिलेगा,लड़ाई झगडे भी होंगे,मकान व प्रोपर्टी खरीदने के योग भी बनेंगे|
उपाय- १) वाणी पर नियंत्रण रखे,निवेश ना करे, किसी को उधार ना दे|
२) हनुमान जी के मंदिर में गुरूवार को पूजा करे|

कन्या राशी-इस राशी से सातवाँ गोचर होगा जिसके प्रभाव से ऊँच अधिकारिओ से मतभेद व विवाद आदि होने संभावनाए बनेंगी, मानसिक चिंताए लगी रहेगी,खर्चे भी होंगे,कही कही मान सम्मान भी मिल सकता हैं|
उपाय- छोटी छोटी कन्याओ को खुश करे तथा उनका पूजन कर उन्हें दान आदि दे|

तुला राशी-इस राशी से छठा गोचर जो की स्वास्थ्य खराब करेगा,थकावट व आलस पैदा होगा परन्तु व्यस्तता बढेगी,आय में कमी होगी,संतान से असंतुष्टि हो सकती हैं,कोई कीमती वस्तु खो सकती हैं|
उपाय-६०० ग्राम चने की दाल ६ गुरूवार पीले कपडे में बांधकर मंदिर में दान करे|

वृश्चिक राशी-इस राशी से पांचवा गोचर जो की बहुत ही शुभ होगा जिससे सभी कार्यो में सफलता ,शेयर्स से लाभ,विवाह योग,अध्ययन में अनुकूलता,सम्पति की प्राप्ति,धार्मिक व मांगलिक आयोजन होंगे तथा सभी बाधाये समाप्त होंगी|
उपाय-आलस कदापि ना करे तथा कुछ समय देव पूजन अवश्य करे|

धनु राशी-इस गोचर से कार्यक्षेत्र में उन्नति व बदलाव,सम्पति की हानि ,अपयश की प्राप्ति ,परिवार में वृद्दि होगी|
उपाय-१) गुरु ग्रह का कोई भी मंत्र निरंतर जपे|
२) पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाया करे|

मकर राशी-लम्बी बीमारी व लम्बी यात्रा हो सकती हैं,वाद विवाद व बहस बाजी से बचे तनाव हो सकता हैं|
उपाय- १) हर गुरूवार व्रत करे तथा चने की दाल व रोटी गाय को खिलाये|
२) खान पान का विशेष ध्यान रखे,गरिष्ठ व बाहर का ना खाए|

कुम्भ राशी-अति उत्तम गोचर जिससे धनसंचय होगा,आर्थिक सहायता मिलेगी,विवाह होगा,उत्साह व पराक्रम में वृद्दि होगी,किसी लम्बी बीमारी से निजात मिलेगी|
उपाय-ज़रूरत मंदों को दान दे व असहाय कन्याओ की मदद करे|

मीन राशी-गुरु ग्रह का गोचर इसी राशी पर होने से दिन चर्या अस्त व्यस्त होगी,लाभ नहीं मिलेगा,स्वभाव में चिडचिडापन,मानसिक कष्ट तथा स्थान परिवर्तन हो सकता हैं परन्तु जीवन साथी हेतु कई लाभ भी प्राप्त होंगे|
उपाय- १) विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ रोजाना करे|
२) कबूतरों को पीली मक्का अपने हाथो से खिलाये|
३) पुखराज रत्न धारण करे(यदि जन्मपत्रिका में गुरु अच्छी स्थिति में हो)

शुक्रवार, 14 मई 2010

गुरु ग्रह का विभिन्न राशियो पर प्रभाव २

आ़प सभी को एक बार फिर से हमारा नमस्कार धन्यवाद जैसा की हमने आपसे कहा था हम गुरु ग्रह के विभिन्न राशियो पर(गोचर वश ) पडने वाले प्रभाव के विषय में आ़प सबको बताएँगे |

मेष राशी -इस राशी से गुरु ग्रह का १२वा गोचर होगा जो की खर्चे ज्यादा करवाएगा,धार्मिक मांगलिक कार्यो मेंरूचि बढेगी,पुत्र से मतभेद हो सकते हैं,कोई पुराना रोग उभर सकता हैं जिससे अस्पताल जाना पड़ सकता हैं |
उपाय-) पीपल के पेड़ पर नित्य जल चढ़ाये |
) कबूतरों को पीली मक्का खिलाये |

वृष राशी- आपकी राशी से ११वा गोचर होगा जो की शुभ होगा जिसके प्रभाव से आर्थिक लाभ,मान सम्मान,उन्नति,विवाह के योग बनेंगे,कार्य स्थल में बदलाव होंगे,सुखकारक समय रहेगा|
कोई उपाय करने की आवश्यकता नहीं हैं |

मिथुन राशी-दशम गोचर जिससे शुभ फलो में कमी,कार्य स्थल में नकारात्मकता होगी,आलस्य गुस्सा बढेगा जिससे स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता हैं,आर्थिक हानी भी हो सकती हैं |
उपाय-) निवेश सांझेदारी कदापि ना करे|
) नित्य पूजा के समय एक माला " ब्रह्म ब्रह्स्पतये नमः" की जपे|

कर्क राशी- नवां गोचर जिससे भाग्य की उन्नति होगी,नई खुशियाँ मिलेगी, मान सम्मान बढेगा, संतान सम्बन्धी शुभ समाचार मिलेंगे,विवाह योग बनेंगे,धार्मिक स्थानों की यात्रा होगी |
उपाय -) माँ लक्ष्मी की आराधना करते रहे|........................ज़ारी

मंगलवार, 11 मई 2010

ब्रहस्पति ग्रह का प्रभाव आपकी राशी पर (गोचर) १

जैसा की हमने आ़प सभी से अपने पिछले लेख में कहाँ था की ब्रहस्पति ग्रह के मीन राशी पर चले जाने से विभिन्न राशियो पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर हम अपने आंकलन प्रस्तुत करेंगे लीजिये आज अभी से हम इस पर कार्य का आरंभ कर रहे हैं |कुछ दिनों से सेहत ठीक न होने से हम कुछ दिन कंप्यूटर से दूर रहे व आ़प सभी से संपर्क नहीं हो सका इसके लिए हम क्षमा चाहते हैं |
गुरु या ब्रहस्पति ग्रह जब मीन राशी(स्वराशी )में प्रवेश करते हैं तब अनाज सस्ता होता हैं तथा बारिश प्रचुर मात्रा में होती हैं ,ऐसा नारदसंहिता में कहा गया हैं |ज्योतिष में गुरु ग्रह का मीन राशी में जाना बहुत अच्छा माना गया हैं क्यूंकि मीन राशी गुरु की अपनी ही राशी हैं लेकिन पुरे एक वर्ष (इस बार ) शनि के कन्या राशी में होने से गुरु शनि ग्रह से सातवे रहेंगे जिससे प्रजा जन हेतु यह समय अच्छा नहीं होगा (शनि स्थान वृद्दि करते हैं तथा जिसे देखते हैं उसकी हानि करते हैं जबकि गुरु स्थान हानि करते हैं परन्तु जिसे देखते हैं उसकी वृद्दि करते हैं) ऐसे में कन्या व मीन राशी वाले जातको को अवश्य कुछ ना कुछ परेशानियो का सामना करने पड़ेगा |

गुरु ग्रह की दृष्टी- गुरु ग्रह को तीन दृष्टी मिली हुई हैं पंचम,सप्तम व नवम अर्थात गुरु ग्रह जहाँ बैठते हैं वहां से पांचवे सातवे तथा नवे भाव या घर को भी देखते हैं जो की कल्याणकारी माना जाता हैं |

जन्म लग्न में भावफल- गुरु जन्मलग्न में १,२,५,९,१०,११वे भाव में हो तो बहुत शुभ फल प्रदान करते हैं यदि लग्न,सूर्य व चन्द्र से ११वे हो तो बहुत धन प्रदान करते हैं तथा लग्न में होने से यह कुंडली के कई बुरे दोषों का शमन कर देते हैं परन्तु साथ ही साथ स्वास्थ की हानि भी करते हैं |

गुरु धर्म-कर्म,ज्ञान व ज्ञान विस्तार,विद्या, पुत्र, ग्रह,पितामाह,मित्र,मंत्री,विद्या,कोष,ज्योतिष,मंत्र,उदर,कान,सुनने की शक्ति,अध्यापन,परमार्थ,तीर्थ,सत्संग,योग,यश,पूजा मंत्र व पठन पाठन आदि के कारक हैं ..............जारी

मंगलवार, 4 मई 2010

आ़प सभी को नमस्कार

आ़प सभी को नमस्कार धन्यवाद,
हमारे लिखे लेख आ़प सब को पसंद रहे हैं इसके लिए आ़प सब का शुक्रिया हम स्वयं भी यही कोशिश करते हैं की हमारी लेखनी में ऐसे शब्दों का या वाक्यों का प्रयोग हो जिससे सभी उसको आसानी से समझ सके |गुरु ग्रह के राशी परिवर्तन के विषय में आ़प सभी ने हमसे हमारा आंकलन माँगा हैं |हम यह आंकलन मई तक आ़प सब के सम्मुख अवश्य रखेंगे, फिलहाल ज़रा हम अस्वस्थ चल रहे हैं जैसे ही ठीक होंगे सबसे पहले आ़प सब के लिए गुरु ग्रह का राशी परिवर्तन होने से विभिन्न राशियो पर पढने वाले प्रभाव के विषय में हमारा आंकलन प्रस्तुत करेंगे तब तक के लिए एक बार फिर आ़प सब का धन्यवाद |

सोमवार, 3 मई 2010

पंचांगों में भिन्नता क्यों

काल के मुख्य पांच अंग होते हैं - तिथि, वार नक्षत्र, योग, व करण। इन पांच अंगों के मेल को ही पंचांग कहा जाता है। अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग पद्धतियों पर आधारित पंचांग प्रयोग में लाए जाते हैं। पद्धतियों की इस भिन्नता के कारण ही पंचांगों में भिन्नता होती है। इस भिन्नता के कारणों पर विचार करने से पूर्व पंचांगों के इतिहास पर विचार करते हैं |

भारतवर्ष के ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान के आधार पर प्राचीन शास्त्रों में कहा है कि कलयुग में छहशक होंगे जिनमें से तीन हो चुके हैं और तीन अभी होने बाकी हैं। इनके नाम और अवधि निम्नलिखिततालिका में प्रस्तुत हैं।

दिल्ली में युधिष्ठिर शक

3044

वर्ष

उज्जैन में विक्रमादित्य संवत

135

वर्ष

पैढण में शालिवाहन शक

18000

वर्ष

वैतरणी विजयाभिन्नदन शक

10000

वर्ष

बगाल नागार्जुन शक

400000

वर्ष

कर्णाटक में कल्कि शक

821

वर्ष

कलियुग के कुल 432000 वर्ष

स्पष्ट है कि राजाओं के नाम पर इन शकों संवतों का नामकरण हुआ। वर्तमान में शक तथा विक्रमसंवत अधिक प्रचलित हैं। संवत शब्द संवत्सर का अपभ्रंश है। विक्रम संवत राजा विक्रमादित्य के कालमें आरंभ हुआ। यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रारंभ तिथि) को शुरू होता है। शकसंवत शक वंश के राजाओं ने आरंभ किया जो कि प्रत्येक वर्ष के सूर्य के सायन मेष राशि में प्रवेश केसमय अर्थात २२ मार्च को माना जाता है। संवत्सरों के आरंभ के समय में अंतर के कारण पंचोगों में 1 से दिन तक का अंतर जाता है। शक संवत विक्रम संवत से १३५ वर्ष पीछे है जो अंग्रेजी ईस्वीसन्से ७८ वर्ष कम होता है। इसे आम शब्दों में हम ऐसे कह सकते हैं कि अंग्रेजी सन्में ५७ जोड़नेपर विक्रम संवत तथा ७८ घटाने पर शक संवत प्राप्त होता है।

पंचांगों में अंतर क्यों? सूर्य जब मकर में प्रवेश करता है तब उत्तरायण और जब कर्क में प्रवेश करताहै तब दक्षिणायन होता है। इसी आधार पर भारत में वर्ष का दो बराबर भागों में विभाजन करने काविधान किया गया है। संवतों का सीधा संबंध सूर्य चंद्र की गति से है। सूर्य और चंद्र की गति मेंअंतर होने से सौर वर्ष में ११ दिनों का फर्क आता है, जिस कारण तीसरे या चौथे वर्ष 1 मास जोड़करअधिक मास बना लिया जाता है जिसे मलमास क्षयमास कहा जाता है। पंचांगों में भिन्नता के कारणगणना में भी भिन्नता आती है।

भारत एक अति विशाल देश है। यहां सूर्योदय के समय में भी फर्क आता है। ज्योतिष में सूर्योदय सेअगले सूर्योदय तक एक वार गिना जाता है, जबकि अमावस्या के दिन से सूर्य से चंद्र जब १२ डिग्रीआगे चला जाता है तब एक तिथि मानी जाती है। कभी-कभी तिथि घट या बढ़ भी जाती है।फलस्वरूप पंचांग शुद्धि करनी पड़ती है।

अंग्रेजी ईस्वी सन्का प्रचलन बढ़ने से भी पंचांगकर्ताओं ने पंचांगों में अंग्रेजी मास, तारीख आदि लिखनाप्रारंभ किया जिससे अगला वार मध्यरात्रि से गिना जाने लगा। फलस्वरूप पंचांगों में अंतर आनास्वाभाविक हो गया।

भारत में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं और वे अपने-अपने समुदाय द्वारा निर्धारित रीति-रिवाजों कापालन करते हैं। इन समुदायों और संप्रदायों के अपने-अपने पंचांग हैं और रीति-रिवाजों में भिन्नता केकारण इन पंचांगों में भी भिन्नता है। मुस्लिम समुदाय हिजरी संवत को मानता है, जिसमें अमावस्याके बाद जिस रात को प्रथम चंद्र दर्शन होता है वही मासारंभ का दिन माना जाता है। फलस्वरूप मासका पहला दिन सूर्यास्त से माना गया। ये महीने २९ या ३० दिन के होते हैं। इस कारण भी पंचांग कीअलग आवश्यकता पड़ी।

तात्पर्य यह कि पंचांगों में भिन्नता के अनेकानेक कारण हैं। भारत का अति विशाल होना, अलग-अलग धर्म के लोगों का व अलग-अलग मतों का होना, अंग्रेजी का बढ़ता प्रभाव आदि इस भिन्नता के मुख्य कारण हैं। विडंबना यह है कि पंचांगों का कोई सर्वसम्मत मानक तय नहीं है। फलस्वरूप उपलब्ध पंचांगों में कोई भी सूचना एक-सी नहीं होती जिससे आमजन भ्रमित होता रहता है।