काल के मुख्य पांच अंग होते हैं - तिथि, वार नक्षत्र, योग, व करण। इन पांच अंगों के मेल को ही पंचांग कहा जाता है। अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग पद्धतियों पर आधारित पंचांग प्रयोग में लाए जाते हैं। पद्धतियों की इस भिन्नता के कारण ही पंचांगों में भिन्नता होती है। इस भिन्नता के कारणों पर विचार करने से पूर्व पंचांगों के इतिहास पर विचार करते हैं |
भारतवर्ष के ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान के आधार पर प्राचीन शास्त्रों में कहा है कि कलयुग में छहशक होंगे जिनमें से तीन हो चुके हैं और तीन अभी होने बाकी हैं। इनके नाम और अवधि निम्नलिखिततालिका में प्रस्तुत हैं।
दिल्ली में युधिष्ठिर शक | 3044 | वर्ष |
उज्जैन में विक्रमादित्य संवत | 135 | वर्ष |
पैढण में शालिवाहन शक | 18000 | वर्ष |
वैतरणी विजयाभिन्नदन शक | 10000 | वर्ष |
बगाल नागार्जुन शक | 400000 | वर्ष |
कर्णाटक में कल्कि शक | 821 | वर्ष |
कलियुग के कुल | 432000 | वर्ष |
स्पष्ट है कि राजाओं के नाम पर इन शकों व संवतों का नामकरण हुआ। वर्तमान में शक तथा विक्रमसंवत अधिक प्रचलित हैं। संवत शब्द संवत्सर का अपभ्रंश है। विक्रम संवत राजा विक्रमादित्य के कालमें आरंभ हुआ। यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रारंभ तिथि) को शुरू होता है। शकसंवत शक वंश के राजाओं ने आरंभ किया जो कि प्रत्येक वर्ष के सूर्य के सायन मेष राशि में प्रवेश केसमय अर्थात २२ मार्च को माना जाता है। संवत्सरों के आरंभ के समय में अंतर के कारण पंचोगों में 1 से ३ दिन तक का अंतर आ जाता है। शक संवत विक्रम संवत से १३५ वर्ष पीछे है जो अंग्रेजी ईस्वीसन् से ७८ वर्ष कम होता है। इसे आम शब्दों में हम ऐसे कह सकते हैं कि अंग्रेजी सन् में ५७ जोड़नेपर विक्रम संवत तथा ७८ घटाने पर शक संवत प्राप्त होता है।
पंचांगों में अंतर क्यों? सूर्य जब मकर में प्रवेश करता है तब उत्तरायण और जब कर्क में प्रवेश करताहै तब दक्षिणायन होता है। इसी आधार पर भारत में वर्ष का दो बराबर भागों में विभाजन करने काविधान किया गया है। संवतों का सीधा संबंध सूर्य व चंद्र की गति से है। सूर्य और चंद्र की गति मेंअंतर होने से सौर वर्ष में ११ दिनों का फर्क आता है, जिस कारण तीसरे या चौथे वर्ष 1 मास जोड़करअधिक मास बना लिया जाता है जिसे मलमास व क्षयमास कहा जाता है। पंचांगों में भिन्नता के कारणगणना में भी भिन्नता आती है।
भारत एक अति विशाल देश है। यहां सूर्योदय के समय में भी फर्क आता है। ज्योतिष में सूर्योदय सेअगले सूर्योदय तक एक वार गिना जाता है, जबकि अमावस्या के दिन से सूर्य से चंद्र जब १२ डिग्रीआगे चला जाता है तब एक तिथि मानी जाती है। कभी-कभी तिथि घट या बढ़ भी जाती है।फलस्वरूप पंचांग शुद्धि करनी पड़ती है।
अंग्रेजी ईस्वी सन् का प्रचलन बढ़ने से भी पंचांगकर्ताओं ने पंचांगों में अंग्रेजी मास, तारीख आदि लिखनाप्रारंभ किया जिससे अगला वार मध्यरात्रि से गिना जाने लगा। फलस्वरूप पंचांगों में अंतर आनास्वाभाविक हो गया।
भारत में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं और वे अपने-अपने समुदाय द्वारा निर्धारित रीति-रिवाजों कापालन करते हैं। इन समुदायों और संप्रदायों के अपने-अपने पंचांग हैं और रीति-रिवाजों में भिन्नता केकारण इन पंचांगों में भी भिन्नता है। मुस्लिम समुदाय हिजरी संवत को मानता है, जिसमें अमावस्याके बाद जिस रात को प्रथम चंद्र दर्शन होता है वही मासारंभ का दिन माना जाता है। फलस्वरूप मासका पहला दिन सूर्यास्त से माना गया। ये महीने २९ या ३० दिन के होते हैं। इस कारण भी पंचांग कीअलग आवश्यकता पड़ी।
3 टिप्पणियां:
Bahut laabhprad jiwanopayogi jaankari parstut ke ke liye bahut dhanyavaad.
बहुत ही उपयोगी पोस्ट!
आपके श्रम को नमन!
Sir,
bahut upayogi lekh hai.
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