माणिक्य
माणिक्य धारण
करने से सिरदर्द, बुखार, नेत्रपीड़ा,
पित्तविकार, मुर्च्छा, चक्कर
आना, दाह (जलन), हृदय रोग,
अतिसार, अग्निशास्त्र, विषजन्य
विकार, पशु व शत्रु व भय, आदि
कष्ट की शांति होती है । यदि माणिक्य जातक के लिए शत्रुवर्ग का हो, तो
ऊपर लिखे सभी कष्ट जातक को सूर्य की दशा में प्राप्त होते हैं ।
मोती :
मोती धारण करने से
चंद्रमा की शांति होती है । क्रोध शांत होता है तथा
मानसिक तनाव भी दूर होते हैं । इसके विपरीत
यदि मोती जातक के लिए शत्रुवर्ग का रत्न हो तो जातक में आलस्य, कंधों
में पीड़ा, तेजहीनता,सर्दी का
बुखार, नशा करने की आदत, अनिद्रा आदि
होती है ।
मूंगा :
मूंगा धारण करने
से रक्त साफ होता नजरदोष का नाश होता है, रक्त में वृद्धि
होती है, भूतभय व प्रेतबाधा मिटती है, तथा
मंगल जनित कष्ट क्षीण होते हैं । इसके विपरीत यदि मूंगा जातक के लिए शत्रुवर्ग का
रत्न हो तो जातक में पेशाब का विकार, विकारी स्वभाव,
क्रोध, मस्तिष्क की अस्थिरता, सर्पभय,
आदि होते हैं ।
पन्ना :
पन्ना धारण करने
से नेत्ररोग का नाश, ज्वरशांति, सन्निपात,
दमा, शोध आदि का नाश होता है तथा वीर्य में
वृद्धि होती है । इसे धारण करने से बुध - कोप की शांति होती है । इससे जातक के काम,
क्रोध, आदि विकार भी शांत रहते हैं तथा
तांत्रिक अभिचार, टोने-टोटके से भी ये मुक्ति देता है ।
पुखराज :
पुखराज धारण
करने से ज्ञान, शक्ति, सुख, धन,
आदि में वृद्धि होती है । गुरु जनित कष्टों का अंत होता है । जिन
जातकों के विवाह में दिक्कत हों, तो वह पुखराज धारण
करें । इसके विपरीत यदि ये जातक के लिए शत्रुवर्ग का रत्न हो तो जातक के घुटने में
दर्द, पेट की बीमारी, भी हो जाती है ।
हीरे :
हीरा धारण करने से जातक को सुख ऐश्वर्य,
राजसम्मान, वैभव, विलासिता,
आदि प्राप्त होते हैं । इसके विपरीत यदि हीरा जातक के लिए शत्रुवर्ग
का रत्न हो तो जातक को मूत्र विकार, नेत्रविकार,
मैथुनशक्ति का नाश, असत्यवाचन, कफ
रोग, आदि देता है । जो स्त्री पुत्र की कामना करे,
उन्हें हीरा धारण नहीं करना चाहिए |
नीलम :
नीलम धारण करने
से भूत-प्रेतबाधा निवारण, सर्प विष निवारण, रक्त
प्रवाह को रोकना आदि कर्म होते हैं । नीलम शनि कृत कष्टों को शांत कर देता है ।
नीलम आंतरिक शांति देता है । श्वास, पित्त, खांसी
की बीमारी दूर करता है । प्रेम में प्रगाढ़ता, दोष निवारण,
दुख-दारिद्रय नाश, रोग नाश, सिद्धियों का
दाता है नीलम रत्न । यही नीलम राजा को रंक तथा रंक को राजा बनाने की क्षमता रखता
है ।
गोमेद :
गोमेद धारण करने
से भ्रम नाश, निर्णय शक्ति, आत्मबल का संचार,
दरिद्रता का नाश, शत्रु की हार, नशे
की आदत का नाश, सफलता, विवाह-बाधा नाश,
पाचन शक्ति की प्रबलता, अजातशत्रुता,
आत्म संतुष्टि, संतान बाधा का नाश, सुगम
विकास शक्ति प्राप्त होती है वात व कफ की बाधा भी शांत होती है ।
लहसुनिया :
लहसुनिया धारण
करने से दुखों का नाश, केतु की शांति, भूत-बाधा
निवारण, व्याधि नाश तथा नेत्र रोग का नाश, स्वस्थ
काया की प्राप्ती होती है सरकारी कार्यों में सफलता तथा दुर्घटना का नाश करने वाला
रत्न लहसुनिया पित्तज रोगों का नाश करने वाला, केतु कृत समस्त रोगों व कष्टों का निवारण करता है ।
गर्म रत्न (माणिक, मूंगा, पुखराज एवं हीरा)
पुरुष जातक दायां हाथ की तर्जनी एवं अनामिका में धारण करें क्योंकि अंगुलियों में भी दायें हाथ की ये अंगुलियां तर्जनी एवं अनामिका गर्म होती है । अतः गर्म हाथ की गर्म अंगुलियों में गर्म रत्न धारण करने पर परिणाम 100 प्रतिशत शुभ एवं शुद्ध प्राप्त होता है । स्त्री जातक, इन रत्नों को बायां हाथ की गर्म अंगुलियां तर्जनी, अनामिका में ही धारण करें ।
ठंडे रत्न (मोती, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया)
पुरुष जातक बांये हाथ की मध्यमा एवं कनिष्ठिका अंगुली में धारण करें । क्योंकि पुरुष जातक के बांये ठंडे हाथ की भी अंगुलियां मध्यमा एवं कनिष्ठका ठंडी होती है । अतः ठंडे हाथ की ठंडी अंगुलियों में ठंडे रत्न धारण करने पर फल 100 प्रतिशत शुभ एवं अच्छे प्राप्त होते हैं ।
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