आज का मनुष्य अंतिम जगह आ गया है पुरुषो की बनाई सभ्यता कगार पर आ गई है । स्त्री का मुक्त होना जरूरी हो गया है । स्त्री के जीवन में क्रान्ति होनी जरूरी है ताकि वह स्वयं को भी बचा सके और सभ्यता भी बचा सके । अगर स्त्री अपनी पूरी हार्दिकता, अपने पूरे प्रेम,अपने पूरे संगीत, अपने काव्य, अपने व्यक्तित्व के पूरे फूलों को लेकर छा जाए तो इस जगत से युद्ध बंद हो सकते है लेकिन जब तक पुरूष हावी है इस दुनिया पर, तब तक युद्ध होने बंद नहीं हो सकते क्यूंकी हर पुरूष के भीतर युद्ध छिपा हुआ है ।
मां
के पेट में जैसे ही बच्चा निर्मित होता है तो बच्चे को चौबीस सेल मां से मिलते है
और चौबीस सेल पिता से मिलते है । पिता के सेल्स में दो तरह के सेल होते है । एक
में चौबीस और एक में तेईस अगर तेईस सेल वाला अणु मां के चौबीस सेल वाले अणु से
मिलता है तो पुरूष का जन्म होता हे । पुरूष के हिस्से में सैंतालीस सेल होते है और
स्त्री के हिस्से में अड़तालीस सेल होते है । स्त्री की जो व्यक्तित्व है यह
सिमैट्रिकल है, पहली ही बुनियाद से उसके
दोनों तत्व बराबर है चौबीस – चौबीस ।
जीव
विज्ञान अर्थात बायो लाजी कहती है कि स्त्री में जो सुघडता, जो सौंदर्य, जो अनुपात, जो परफोरशन है वह उन चौबीस -
चौबीस के समान अनुपात होने के कारण है और पुरूष में एक इनर तनाव अथवा टेंशन है जो उसमें एक तरफ चौबीस अणु और
दूसरी तरफ तेईस अणु होने की वजह से है । उसका तराजू थोड़ा उपर
नीचे होता रहता है । उसके भीतर एक बेचैनी जिंदगी भर उसे धेरे रहती है जिस कारण वह जीवन मे कुछ ना कुछ उपद्रव करता ही रहेगा । इस तनाव या टेंशन की वजह से वह कोई न
कोई विवाद खड़े करता ही रहेगा और अगर पुरूष के हाथ में संसार की सभ्यता है पूरी की पूरी तो
युद्ध कभी बंद नहीं हो सकते ।
यह
जान कर आपको हैरानी होगी कि महावीर, बुद्ध, राम और कृष्ण को आपने दाढ़ी - मूंछ के नहीं
देखा होगा । क्योंकि जैसे ही पुरूष को व्यक्तित्व धीरे - धीरे स्त्री के करीब आता
है वह जैसे हार्दिक होते है, वे स्त्री के करीब आने लगते है । मूर्ति कारों
ने बहुत सोच कर यह बात निर्मित की है । उनका सारा व्यक्तित्व स्त्री के इतने करीब
आ गया होगा कि दाढ़ी - मूंछ बनानी उचित नहीं मालूम पड़ी होगी । व्यक्तित्व इतना
समानुपात हो गया होगा ।
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