आदि काल से ही मानव मस्तिष्क अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के प्रयत्नों में सक्रिय है परंतु जब किसी भी कारण इसकी कुछ अधूरी इच्छाएं पूर्ण नहीं हो पाती (जो कि मस्तिष्क के किसी कोने में जाग्रत अवस्था में रहती है) तो वह स्वप्न का रूप ले लती हैं ।
आधुनिक विज्ञान
में पाश्चात्य विचारक सिगमंड फ्रायड ने इस विषय में कहा है कि "स्वप्न" मानव की दबी हुई
इच्छाओं का प्रकाशन करते हैं जिनको हमने अपनी जाग्रत अवस्था में कभी - कभी विचारा
होता है अर्थात स्वप्न हमारी वो इच्छाएं हैं जो किसी भी प्रकार के भय से जाग्रत्
अवस्था में पूर्ण नहीं हो पाती हैं व स्वप्नों में साकार होकर हमें मानसिक संतुष्टि
व तृप्ति देती है |
सपने या स्वप्न
आते क्यों है? इस
प्रश्न का कोई ठोस प्रामाणिक उत्तर आज तक खोजा नहीं जा सका है। प्रायः यह माना
जाता है कि स्वप्न या सपने आने का एक कारण 'नींद' भी हो सकता है । विज्ञान मानता है कि नींद का
हमारे मस्तिष्क में होने वाले उन परिवर्तनों से संबंध होता है, जो सीखने और
याददाश्त बढ़ाने के साथ-साथ मांस पेशियों को भी आराम पहुंचाने में सहायक होते हैं ।
इस नींद की ही अवस्था में न्यूरॉन (मस्तिष्क की कोशिकाए) पुनः सक्रिय हो जाती हैं ।
वैज्ञानिकों
ने नींद को दो भागों में बांटा है पहला भाग आर ई एम अर्थात् रैपिड आई मुवमेंट
है । (जिसमें अधिकतर सपने आते हैं) इसमें शरीर शिथिल परंतु आंखें तेजी से घूमती
रहती हैं और मस्तिष्क जाग्रत अवस्था से भी ज्यादा गतिशील होता है । इस आर ई एम की
अवधि 10 से 20 मिनट
की होती है तथा प्रत्येक व्यक्ति एक रात में चार से छह बार आर ई एम नींद लेता है ।
यह स्थिति नींद आने के लगभग 1.30 घंटे अर्थात 90 मिनट
बाद आती है । इस आधार पर गणना करें तो रात्रि का अंतिम प्रहर आर ई एम का ही समय
होता है (यदि व्यक्ति समान्यतः 10 बजे रात सोता है तो ) जिससे सपनों के आने की
संभावना बढ़ जाती है ।
सपने
बनते कैसे हैं :
दिन
भर विभिन्न स्रोतों से हमारे मस्तिष्क को स्फुरण (सिगनल) मिलते रहते हैं ।
प्राथमिकता के आधार पर हमारा मस्तिष्क हमसे पहले उधर ध्यान दिलवाता है जिसे करना
अति जरूरी होता है, और जिन स्फुरण संदेशों की
आवश्यकता तुरंत नहीं होती उन्हें वह अपने में दर्ज कर लेता है । इसके अलावा
प्रतिदिन बहुत सी भावनाओं का भी हम पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है । जो भावनाएं हम
किसी कारण वश दबा लेते हैं (गुस्सा आदि) वह भी हमारे अवचेतन मस्तिष्क में दर्ज हो
जाती हैं । रात को जब शरीर आराम कर रहा होता है मस्तिष्क अपना काम कर रहा होता है।
(इस दौरान हमें चेतनावस्था में कोई स्कुरण संकेत भावनाएं आदि नहीं मिल रही होती)
उस समय मस्तिष्क दिन भर मिले संकेतों को लेकर सक्रिय होता है जिनसे स्वप्न
प्रदर्शित होते हैं । यह वह स्वप्न होते हैं जो मस्तिष्क को दिनभर मिले स्फुरण, भावनाओं
को दर्शाते हैं जिन्हें दिनमें हमने किसी कारण वश रोक लिया था । जब तक यह
प्रदर्शित नहीं हो पाता तब तक बार-बार नजर आता रहता है तथा इन पर नियंत्रण चाहकर
भी नहीं किया जा सकता |
यह लेख जून 2010 के फ्यूचर समाचार के अंक मे हमारे
द्वारा लिखा गया था |
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