इस संसार में कोई ऐसा दंपति नहीं होगा,
जो संतान सुख ना चाहता
हो | गरीब
हो या अमीर सभी के लिए संतान सुख होना अवश्य महत्व रखता है । संतान चाहे खूबसूरत हो या
बदसूरत, लेकिन होनी ज़रूर चाहिए फिर चाहे वह संतान चाहे माता - पिता के
लिए सहारा बने या न बने ।
अक्सर देखा जाता हैं की किसी - किसी दंपति की संतान होती
है और फिर गुजर जाती है । ऐसा क्यों होता है ? यहाँ पर हम
इन्हीं सब बातों की जानकारी दें रहे
हैं, जिससे आप जान सकें कि संतान होगी या नहीं ।
सभी जानते हैं की ज्योतिष अनुसार कुंडली का पंचम
भाव संतान का होता
है । पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का
स्थान होता है । पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी
पुत्र होने मे बाधा
आती है ।
पंचम स्थान का
स्वामी भाग्य स्थान में हो तो प्रथम संतान के बाद पिता का भाग्योदय होता है । यदि
ग्यारहवें भाव में सूर्य हो तो उसकी पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि होने के कारण पुत्र अत्यंत
प्रभावशाली होता है । इसी प्रकार
यदि मंगल की यदि चतुर्थ, सप्तम,
अष्टम दृष्टि पंचम भाव पर पड़ रही हो तो पुत्र अवश्य होता है ।
पुत्री संततिकारक चँद्र, बुध,
शुक्र यदि पंचम भाव पर दृष्टि डालें तो पुत्री संतति होती है ।
यदि पंचम भाव पर बुध हो और उस पर
चँद्र या शुक्र की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान होशियार होती है ।
पंचम स्थान का
स्वामी होकर शुक्र
यदि पुरुष की कुंडली में लग्न,अष्टम या तृतीय भाव पर हो एवं सभी ग्रहों में बलवान
हो तो निश्चित तौर पर लड़की ही पैदा होती
है ।
पंचम स्थान पर
मकर/कुम्भ का
शनि होतो कन्या
संतति अधिक प्राप्त होती है । पुत्र की चाह में पुत्रियाँ होती
हैं। कुछ संतान नष्ट भी होती है ।
पंचम स्थान पर
स्वामी जितने ग्रहों के साथ होगा, उतनी संतान होगी । जितने पुरुष ग्रह
होंगे, उतने पुत्र और जितने स्त्रीकारक ग्रहों के साथ
होंगे, उतनी संतान लड़की होगी ।
सप्तमांश कुंडली
के पंचम भाव पर या उसके साथ या उस भाव में कितने अंक लिखे हैं, उतनी
संतान होगी ।
एक नियम यह भी
है कि सप्तमांश कुंडली में चँद्र से पंचम स्थान में जो ग्रह हो एवं उसके साथ जीतने ग्रहों का संबंध
हो, उतनी संतान होगी |
संतान सुख कैसे
होगा, इसके लिए भी हमें पंचम स्थान का ही विश्लेषण
करना होगा । पंचम स्थान का मालिक किसके साथ बैठा है, यह भी जानना
होगा । पंचम स्थान में गुरु शनि को छोड़कर पंचम स्थान का अधिपति पाँचवें हो तो
संतान संबंधित शुभ फल देता है । यदि पंचम स्थान का स्वामी आठवें, बारहवें
हो तो संतान सुख नहीं होता । यदि हो भी तो सुख मिलता नहीं संतान नष्ट होती है या
अलग हो जाती है ।
यदि पंचम स्थान
का अधिपति सप्तम, नवम, ग्यारहवें,
लग्नस्थ, द्वितीय में हो तो संतान से संबंधित
सुख शुभ फल देता है ।
द्वितीय स्थान
के स्वामी ग्रह पंचम में हो तो जातक
को संतान सुख उत्तम होकर जातक
लक्ष्मीपति बनता है |
पंचम स्थान का
अधिपति छठे में हो तो दत्तक पुत्र लेने का योग बनता है ।
सिंह लग्न में
पंचम गुरु वृश्चिक लग्न में मीन का गुरु स्वग्रही हो तो संतान प्राप्ति में बाधा
आती है, परन्तु
गुरु की पंचम दृष्टि हो या पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो संतान सुख उत्तम मिलता
है |
पंचम स्थान में
मीन राशि का गुरु कम संतान देता है । पंचम स्थान में धनु राशि का गुरु हो तो संतान
तो होगी, लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा ।
पंचम स्थान पर
सिंह, कन्या राशि का गुरु हो तो संतान नहीं होती । इसी प्रकार तुला राशि का शुक्र पंचम भाव
में अशुभ ग्रह के साथ (राहु, शनि, केतु) के साथ हो
तो संतान नहीं होती ।
पंचम स्थान में
मेष, सिंह, वृश्चिक राशि हो
और उस पर शनि की दृष्टि हो तो पुत्र संतान सुख नहीं होता ।
पंचम स्थान पर राहु
का होना गर्भपात
कराता है ।
यदि पंचम भाव
में गुरु के साथ राहु हो तो चांडाल योग बनता है और संतान में बाधा डालता है या संतान नहीं होती । राहु, मंगल,
पंचम भाव मे
हो तो एक ही संतान
होती है ।
पंचम स्थान में
पड़ा चँद्र, शनि, राहु भी संतान
बाधक होता है ।
यदि संतान का योग लग्न कुंडली में न हों तो
चँद्र कुंडली से भी देखना
चाहिए । यदि चँद्र कुंडली में ऐसे योग
बने तो उपरोक्त फल जानने चाहिए
।
पंचम स्थान पर
राहु या केतु हो तो पितृदोष, दैविक दोष, जन्म
दोष होने से भी संतान नहीं होती | यदि पंचम भाव पर पितृदोष या पुत्रदोष बनता हो
तो उस दोष की शांति करवाने के बाद संतान प्राप्ति संभव है ।
पंचम स्थान पर
नीच का सूर्य संतान पक्ष में चिंता देता है तथा ऑपरेशन द्वारा संतान देता है ।
पंचम स्थान पर
सूर्य मंगल की युति हो और शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान की शस्त्र से मृत्यु
होती है ।
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