जातक के कर्म एवं उसकी शुभाशुभ फल प्राप्ति हेतु अनेक प्रकार की विधाएं प्रचलित हैं । इन्हीं के अन्तर्गत ज्योतिष में जन्मकालीन ग्रह स्थिति से जातक के जीवन का दर्शन किया जाता है । जन्म कुंडली के बारह खानों को बारह भाव भी कहते हैं जिनसे अलग- अलग कारकों के बारे में फलकथन किया जाता है ।
जीवन में वाहन सुख प्राप्ति हेतु चतुर्थ भाव, चतुर्थ
भाव कारक शुक्र व चतुर्थेश का विचार कर निर्णय लिया जाता है । भाव मंजरी में
चतुर्थ भाव के कारकत्व के विषय में लिखा है |
चौथे भाव से सुख,
माता, भवन, वाहन, यात्राएं,
भाई बन्धु, खेत, उपवन, चित्त,
गुणों एवं राजा का विचार किया जाता है । चतुर्थ भाव के कारक चंद्र व
शुक्र है । चंद्र माता का कारक एवं शुक्र सुगंधित वस्तुओं, गहनों
एवं वाहन का कारक है । अतः वाहन सुख हेतु शुक्र की स्थिति का विचार भी ग्रहित है ।
पाराशर होरा
शास्त्र खंड 1 में कहा है की उत्तम वाहन, आराम, सुख का विचार
शुक्र से करना चाहिए ।
भावात् भावम् के
सिद्धान्तानुसार चतुर्थ से चतुर्थ अर्थात् सप्तम व शुक्र अधिष्ठित राशि से चतुर्थ
भाव का भी विचार करना चाहिए |
भावार्थ रत्नाकर
के अनुसार: यदि भाग्येश और चतुर्थेश लग्न में स्थित हों तो
जातक को वाहन और भाग्य की प्राप्ति होती है । यहां पर चतुर्थेश वाहन द्योतक होकर
भाग्येश व लग्न से सम्बंध भाग्य द्वारा वाहन प्राप्त होना बताया गया हैं |
यदि चतुर्थेश
शुक के साथ चतुर्थ में स्थित हो तो सामान्य वाहन की प्राप्ति होती है । यहां शुक्र
की स्थिति या भाव स्वामी के बारे में कोई जानकारी नहीं है अर्थात् वह त्रिकेश होकर
वाहन कमी करवा सकता है । नीच नवांश अस्तगत, शत्रुराशि में
स्थित होना, पापग्रहों का अधिक प्रभाव भी एक कारण हो सकता
है । शुक्र यदि
स्वयं चर्तुथेश होकर स्थित हो तो भी अपने भाव की हानि अवश्य करेगा यदि अन्य कोई
शुभ ग्रह युति न करे ।
भावकारक की भाव
में उपस्थिति कारको भाव नाशाय को इंगित करती है पर यदि चतुर्थेश और शुक्र यदि नवम दशम,
एकादश भाव में स्थित हों तो विशेष वाहन की प्राप्ति होगी कारण यहां
शुक्र चतुर्थेश का अन्य शुभ भाव स्वामी ग्रह से सम्बंध बन रहा है फलतः वाहन
प्राप्ति भी युति कारक ग्रहों के बल पर निर्भर करेगी ।
यदि चतुर्थेश का
युति अथवा दृष्टि द्वारा चंद्र से सम्बंध हो तो जातक को घोड़ागाड़ी रथ की प्राप्ति
होगी वहीं बृहस्पति से सम्बंध होने पर घोड़े की प्राप्ति होगी । यहां पर चंद्र
स्त्रीलिंग होने से घोड़ी व बृहस्पति पुल्लिंग वाचक होने से घोड़े की प्राप्ति
करवाएगा ।
चतुर्थेश किस राशि मे स्थित हैं और किस ग्रह के साथ स्थित है उसका भी वाहन
प्राप्ति से घनिष्ट सम्बंध है । चतुर्थेश चर राशि में होने पर वाहन कारक, द्विस्वभाव
राशि में होने पर वाहन व शौक सामान, सजावटी वस्तुओं
की प्राप्ति करवाता है । द्विस्वभाव में 15 डिग्री के भीतर रहने पर स्थिर की तरह होने से केवल सुखदायी साजो सामान सोफा
आदि की व 15 डिग्री से आगे चरवत होने से वाहन की प्राप्ति करवाएगा । इस प्रकार की
स्थिति में चतुर्थेश किसी अन्य ग्रह से युति दृष्टि सम्बंध न बनाए,युति दृष्टि
सम्बंध होने पर स्थिर राशि में भी वाहन की प्राप्ति होती है ।
वाहन प्रकार निर्णय हेतु चतुर्थेश की युति दृष्टि ग्रह व राशि का भी अध्ययन आवश्यक है ।
यदि चतुर्थेश शनि से सम्बंध बनाए तो श्रमकारक वाहन यथा साइकिल की प्राप्ति करवाएगा । चंद्र शनि से होने पर डीजल या पैट्रोल वाहन की प्राप्ति करवाएगा क्योंकि चंद्र जलीय पदार्थ तरल पदार्थ व शीन अधोमुखी ग्रह होने से डीजल-पैट्रोल चलित वाहन दिलवा रहा है ।
वाहन की स्थिति ज्ञात करने हेतु राशि तत्व एवं राशि पाद दृष्टिकोण को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए अर्थात् जब चतुर्थेश व शुक्र की युति नवम, दशम व एकादश में से किसी स्वामी से हो और युति वायु तत्व की राशि में हो अर्थात् मिथुन, तुला, कुंभ में हो तो जातक को अवश्य ही वायुयान की प्राप्ति करवाएगा अर्थात् वायुयान चालक पायलट बनाएगा ।
यदि यह युति चतुरपद पशु जैसी आकृति वाली राशियों में हो तो कार, जीप व बस की प्राप्ति करवाएगा,चतुष्पद राशियों से तात्पर्य मेष, वृषभ, सिंह, धनु उत्तरार्द्ध व मकर पूर्वार्द्ध से है । मिथुन, कन्या, तुला, धनु का पूर्वार्द्ध व कुंभ ये द्विपद राशियां हैं । इन राशियों में चतुर्थेश व शुक्र की युति हो तो मोटर साइकिल, लुना की प्राप्ति होगी ।
जलचर राशियों कर्क, मकर उत्तरार्द्ध
व मीन राशि व कीट राशि वृश्चिक में होने पर जलीययान अर्थात् मोटर, पनडुब्बी
समुद्री जहाज की प्राप्ति अर्थात् चालक होता है । उपरोक्त यानों की प्राप्ति
ग्रहों के बलाबल एवं षड़वर्ग पर निर्भर करती है ।
चतुर्थेश व
लग्नेश में राशि परिवर्तन या लग्नेश चतुर्थ व चतुर्थेश लग्न में हो तो भी वाहन की
प्राप्ति होती है ।
कुछ अन्य योग -
1. पंचमेश और
एकादशेश में राशि परिवर्तन योग ।
2. चतुर्थेश और
पंचमेश में व्यत्ययय योग हो
|
3. भाग्येश और
लग्नेश अपने-अपने भाव में शुभ स्थिति में हो ।
4. नवमेश और
पंचमेश में व्यत्यय अर्थात् राशि परिवर्तन योग ।
वाहन सुख कब मिलेगा -
इस हेतु वृहत पाराशर होराशास्त्र खंड 1 में उल्लेख है कि लग्न
में शुभ ग्रह की राशि हो,
चतुर्थेश नीच राशि में हो एकादशस्थ हो व चंद्र शुक्र व्यय भाव में
हों तो बारहवे वर्ष में वाहन प्राप्ति होती है ।
चतुर्थ में सूर्य चतुर्थेश स्वोच्च में शुक्र से हो बतीसवें वर्ष में वाहन की युक्त प्राप्ति होती है ।
कर्मेश व
चतुर्थेश किसी भी राशि
में युति करते हों व चतुर्थेश उच्च नवांश में हो तो 42वें वर्ष में वाहन प्राप्ति
होती है ।
चतुर्थेश व एकादशेश में व्यत्यय हो तो
12वें वर्ष में एवं शुभ प्रभाव इन भावों पर एवं पाप प्रभाव से वाहन प्राप्ति का फल
मिलता है ।
वाहन प्राप्ति हेतु भाव व भावेश की स्थिति भी मजबूत होनी ज़रूरी हैं | जब चतुर्थेश त्रिकोण, सर्वोच्च, मित्र या स्वराशि में एवं चतुर्थेश की अधिष्ठित राशि का स्वामी भी शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो एवं चतुर्थ भाव किसी प्रकार से पाप कर्तरी प्रभाव में न हो एवं चतुर्थ भाव चतुर्थेश व शुक्र पर शुभ प्रभाव की अधिकता होने पर वाहन सुख भी उत्तम मिलता है ।
चतुर्थ भाव चतुर्थेश व शुक में से जो बलवान हो वह लग्न,
आकान्त राशि, नवांश एवं त्रिकोण भावों में जब जब
गोचरवश आएगा तब वाहन प्राप्ति कराएगा अर्थात् जिस भाव में होगा उस तुल्य वर्ष में
या 12 की आवृत्ति योग वाले वर्ष में वाहन की प्राप्ति होगी । इसके अलावा भी किसी
शुभ ग्रह की दशान्तर्दशा में जब प्रबल भाग्योदय राजयोग एवं लाभ की सृष्टि हो उस
समय स्वतः ही वाहन की प्राप्ति हो जाती है ।