लग्न शुद्धि
हमेशा से ही दुष्कर कार्य रहा है ज्योतिष का अध्ययन करते हुए ऐसा कई बार होता है
कि जातक की पत्रिका दशा अनुसार उसका अच्छा समय बता रही होती है परंतु जातक
परेशानियों से घिरा हुआ होता है तब कुंडली का विशेष अध्ययन व अनुभव की जरूरत पड़ती है ऐसे में यदि
लग्न शुरुआती अंशो में या अंतिम अंशों में हो तो यकीनन फलित करना एक कठिन व श्रमसाध्य
कार्य हो जाता है |
आइए इसे एक उदाहरण
द्वारा समझने का प्रयास करते हैं |
प्रस्तुत कुंडली
वाला जातक अपना लग्न मकर बताता है कहता है कि जन्म के समय उसके गांव के पंडित जी ने
उसकी मां पिता को उसका यही लग्न बताया था उसके अनुसार उसकी
कुंडली कुछ इस प्रकार की है लग्न के अनुसार राशि 28 अंश 58 पल लिखे गए हैं तिथि 29/10/1933 14:15 दिल्ली की है मकर लग्न में शनि स्थित है तथा कुंभ राशि में चंद्र राहु,सिंह में केतु,कन्या में गुरु,तुला में सूर्य तथा वृश्चिक में शुक्र मंगल बुध है |
प्रथम सूत्र के
अनुसार यदि शुक्ल पक्ष का जन्म हो तो लग्न की राशि व नवांश राशि वही होनी चाहिए जो
गर्भाधान के समय चंद्रमा की राशि थी लग्न के अंश 9-28-58 है चंद्रमा भी गर्भाधान समय इसी अंश का होना चाहिए यदि हम लग्न 10-0-10 लेते हैं तो चंद्र कुंभ का होना चाहिए | हम गर्भाधान तिथी को देखें जो
कि 281 दिन पहले पड़ेगी यानी 26/1/1933 को देखें तो चंद्र आधी रात के बाद 9-26-01 अंश का होता है तथा 27/1/1933 को प्रातः 8:00 बजे 10-00-01 का होता है जिससे लग्न
के अंश 9-28-58 होते हैं अर्थात
मकर लग्न व धनिष्ठा नक्षत्र आते हैं चंद्रमा 27/1/1933 को प्रातः 8:00 बजे से पहले मकर लग्न व धनिष्ठा नक्षत्र का ही था,अब यदि हम कुंभ लग्न 0-10 का लेते हैं तो चंद्रमा
कुंभ राशि का 27/1/1933 को 8:00 बजे के
बाद होता है तथा उसका नक्षत्र धनिष्ठा ही आता है अर्थात जातक का लग्न कुंभ होना चाहिए
मकर नहीं |
दूसरे सूत्र द्वारा
देखें तो जन्म समय का चंद्र गर्भाधान समय के चंद्र के द्वादशांश राशि का होना चाहिए जन्म
समय का चंद्र कुंभ राशि का है यदि मकर लग्न के अंतिम लिए जाएं तो गर्भाधान
समय चंद्र का द्वादशांश वृश्चिक और धनु का होना चाहिए कुंभ का नहीं,कुंभ का द्वादशांश लाने हेतु मकर लग्न को 3 से 5 अंशों का होना चाहिए जो
संभव नहीं है क्योंकि लग्न स्पष्ट दिया गया है परंतु यदि हम जन्म समय कुंभ लग्न की
2 अंश 30 डिग्री लेते हैं तो गर्भाधान लग्न का चंद्र कुंभ का द्वादशांश दर्शा देता है जो
कुंभ लग्न होने की दोबारा पुष्टि कर देते हैं |
तीसरा सूत्र
पुरुष जन्म हेतु विषम नवांश व विषम होरा होना बताता है यहां मकर का 29 अंश लिया जाए तो नवांश कन्या का आता है जो सम होता है जब कि
यदि कुंभ लग्न 2 डिग्री 30 अंश का लिया जाए तो तुला नवांश बन जाता है तथा होरा सिंह की आती है
जो इस सूत्र से भी कुंभ लग्न होने की पुष्टि कर देती है |
चौथा सूत्र पुरुष
हेतु सूर्य,राहु,लग्न व मंगल की संख्या
का जोड़कर 3 से भाग देने पर 1 या 3 आना चाहिए यहां सूर्य 7 राहु 11 लग्न 10 और मंगल
8 जोड़ने पर हमें 36 प्राप्त होता है जिसे 3 से भाग देने पर 0 आता है जो स्त्री का
जन्म होना बताता है परंतु हमारा जातक पुरुष है अब यदि लग्न कुंभ कर लिया जाए तो शेष
एक आएगा जो पुरुष होने की पुष्टि कर देता है |
मकर और कुंभ
लग्न का पता जातक के साधारण व्यवहार से भी लग जाता है मकर लग्न का जातक बिना किसी
झिझक के शुल्क अदा करना पसंद करते हैं जबकि कुंभ लग्न के जातक जल्दी से पैसा निकालना
पसंद नहीं करते |
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