गुरुवार, 15 नवंबर 2018

मंगल दोष



भारतीय ज्योतिष मे मंगल ग्रह को कुंडली की कुछ विशेष स्थिति के आधार पर मंगल दोष के रूप मे गिना गया हैं जबकि किसी अन्य ग्रह को ऐसा नहीं कहाँ गया हैं | मंगल दोष के विषय मे इतनी भ्रांतिया हैं की उसके विषय मे ठीक से कोई भी विद्वान अथवा ग्रंथ नहीं बता पाते अधिकतर पत्रिकाओ मे मंगल की इन स्थितियो को देखते ही मंगल दोष बता दिया जाता हैं जबकि ऐसे कई प्रश्न हैं जो बिना उत्तर के रह जाते हैं | जिनमे कुछ प्रमुख प्रश्न निम्न हैं |

1)मंगल की प्रकृति क्या हैं |

2)मंगल पत्रिका मे जिन भावो का स्वामी हैं वह भाव शुभ हैं या अशुभ हैं |

3)मंगल का दोष क्या सभी राशियो मे बराबर होता हैं |

4)क्या मंगल का प्रभाव चर,स्थिर व द्विस्वभाव राशियो मे एक समान होगा |

5)क्या मंगल का अलग अलग भावो मे होने पर भी एक ही प्रभाव होगा |

6)मंगल दोष केवल साथी की मृत्यु ही कराएगा या कुछ और भी हानिकारक हो सकता हैं |

7)यदि मंगल ऊंच,स्वग्रही,नीच हो तब क्या होगा |

8)मंगल संग स्थित ग्रह उसका प्रभाव कितना घटा या बढ़ा सकता हैं |

9)क्या मंगल राजयोग कारक होकर भी अशुभता देगा |

10)मंगल की यह स्थिति लग्न,चन्द्र या शुक्र किससे देखे |

11)यदि मंगल दोष हैं भी तो उसकी प्रकृति क्या होगी |

12)मंगल का यह प्रभाव सारी उम्र रहेगा या दशा आने पर होगा |

13)यदि दोनों पत्रिकाए मंगली होतो क्या होगा |

मंगल प्रकृतीनुसार अनुशासनप्रिय,स्वाभिमानी व कठोर ग्रह हैं जिस कारण इसे पाप ग्रहो को श्रेणी मे रखा गया हैं मनुष्य जीवन मे क्रोध पर इसका आधिपत्य रखा गया हैं क्रोध आने पर सुख का ह्रास हो जाता हैं जिससे जातक सुख से वंचित हो जाता हैं | यहाँ ध्यान रखे की सुख का भाव कुंडली मे चौथा होता हैं और मंगल अपने से चौथे भाव पर दृस्टी रखता हैं क्रोध की स्थिति मे व्यक्ति की बुद्दि व विवेक शक्ति नष्ट हो जाती हैं जिससे जातक का अहित होना निश्चित हो जाता हैं |

मेष वृश्चिक राशि का स्वामी होने से इन राशियो मे जन्मे जातको के लिए मंगल शुभ हुआ परंतु इन्ही लग्नों मे मंगल 6,8 का स्वामी भी बनता हैं तब ऐसे मे क्या होगा यह एक विचारणीय विषय हैं | वही मंगल 4,5,9,12 लग्नों के लिए राजयोग कारक व शुभ ग्रह बनता हैं जो शांति,उन्नति व संपन्नता प्रदान करता हैं परंतु बुध,शुक्र के लग्नों हेतु यह अशुभ होता हैं जबकि शनि के लग्नों मे मंगल ज़्यादातर लाभकारी ही होता हैं जो जातक को सांसारिक व भौतिक संपन्नता देता हैं अनुभव मे देखने पर ऐसा पाया गया हैं |

मंगल की प्रकृति – शुभभावों का स्वामी होकर मंगल जब शुभ राशि मे होता हैं तब व साहस,बेबाक व स्पष्टवक्ता बनाकर शत्रुओ पर विजय तथा प्रयासो मे सफलता देता हैं | भाइयो द्वारा मदद,ज़मीनों द्वारा लाभ प्राप्ति के लिए पत्रिका मे मंगल का शुभ होना ज़रूरी होता हैं | मंगल 6,8,12 का स्वामी हो या इनमे बैठा होतो जातक को घमंडी,अड़ियल व शंकालु बनाता हैं जिससे जातक धैर्यहीन,जल्दबाद व उग्र होने से हानी पाता हैं उसे शांति प्राप्त नहीं होती वह लड़ता,झगड़ता रहता हैं दुर्घटना,अग्नि द्वारा भय व मृत्यु,जलना व हत्या जैसे दोषो का उसे सामना करना पड़ता हैं | मंगल बच्चो मे लीवर बदोतरी व संक्रामक रोगो के कारण ठीक से वृद्दि नहीं होने देता,युवावस्था मे यह स्त्री जातको के लिए मासिक धर्म का कारक बनता हैं जिससे उनके भावी वैवाहिक जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता हैं स्त्रीयों मे विवाह के बाद मंगल को शुभता ही देनी चाहिए अन्यथा संतान होते समय कष्ट,देवर व ननद संबंधी तनाव,भाइयों से संबंधो मे खराबी,चोट,दुर्घटना,अप्राकृतिक मौत जैसे प्रभावो का सामना उन्हे करना पड़ता हैं अत: स्त्री पत्रिका मे उसे शुभ ही होना चाहिए | मंगल ग्रह बिना देर किए ही सज़ा दे देता हैं इस कारण इसे ज़्यादा भयावह माना व समझा जाता हैं |

विवाह के लिए मंगल का निम्न भावो मे होना मंगल दोष का निर्माण करता हैं |

1)लग्न जो की जातक का स्वस्थ्य,आयु व व्यक्तित्व बताता हैं चूंकि यह सप्तम से सप्तम(मारक) होता हैं जो जीवन साथी की मृत्यु भी बताता हैं | यहाँ बैठा मंगल चतुर्थ व सप्तम भाव पर दृस्टी डालता हैं जिससे जातक के ग्रहस्थ जीवन मे उत्तेजना बनी रहती हैं तथा पति पत्नी मे विचारक मतभेद उत्पन्न होते रहते हैं |

4) यह भाव घरेलू वातावरण बताता हैं | विद्वान कहते हैं की किसी भी भाव से 4,8,मे बैठा पाप ग्रह उस भाव की हानी करता हैं इस प्रकार मंगल यहाँ लग्न भाव की हानी ही करेगा जिससे जातक की सेहत शरीर व आयु प्रभावित होगी | यहाँ से मंगल जातक के ग्रहस्थ भाव व कर्म भाव पर दृस्टी डालता हैं जिससे उसके कार्य व्यवसाय मे स्थिरता नहीं रह पाती |

7)यह भाव वैवाहिक जीवन मे आपसी प्रेम दिखाता हैं जिससे जीवन साथी की आयु,स्वस्थ्य,तथा अन्य विशेषताएं भी पता चलती हैं अत: इस भाव मे मंगल का होना शुभ नहीं हैं | यहाँ का मंगल जातक के शरीर के अतिरिक्त उसके कुटुंब भाव पर भी दृस्टी देता हैं जिससे जातक की अपने कुटुंब से अनबन रहती हैं और वह घरवालो केद्वारा तिरिस्कृत होता हैं |

8)मंगल भाव होने से यह विवाह की आयु बताता हैं साथ ही साथ यह भाव पति पत्नी के शारीरिक सुख के अतिरिक्त उन दोनों के भाग्य व वित्तीय स्थिति का पता भी देता हैं | यहाँ का मंगल जातक के कुटुंब के अतिरिक्त उसके भाई बहनो व मित्रो से भी उसका मतभेद कराता हैं जिससे जातक जीवन मे अकेला होता चला जाता हैं |

12)यह भाव भोग,आनंद व शयन सुख के साथ साथ धोखा व हानी भी दर्शाता हैं स्पष्ट हैं की यहाँ मंगल का होना हानी ही करेगा | यहाँ से यह मंगल शत्रुओ के अतिरिक्त पत्नी स्थान पर भी दृस्टी देता हैं जिससे पति पत्नी एक दूसरे से शत्रुता का व्यवहार करने लगते हैं जिससे उनका जीवन नर्कमय हो जाता हैं |

आईये अब कुछ पत्रिकाओ मे मंगल दोष का प्रभाव देखते हैं |

1)31/12/1965 18:16 (3)तलाक़शुदा जातक

2)3/12/1976 17:15 (2)जातिका फरवरी 2000 मे विवाह पति की नपुसंकता के चलते दिसंबर 
2003 मे तलाक |

3)30/6/1963 22:30 (11) जातिका जब यह 29 वर्ष की थी इनके पति की अपहरण बाद हत्या कर दी गयी |

4)28/11/1979 5:36 (7) जातिका का फरवरी 2005 मे विवाह हुआ था जिसके 9 माह बाद पति की मौत हो गयी |

5)31/12/1969 20:22 (4) जातिका सितंबर 1996 मे विवाह 2000 मे तलाक |

6)18/10/1982 20:53 (2) जातिका 2006 नवंबर मे विवाह 2009 मे तलाक |

7)14/12/1977 4:16(7)जातक नवंबर 2005 मे विवाह 2012 मे तलाक |

8)7/10/1954 22:00 (2)जातिका अगस्त 1976 मे विवाह जून 1977 मे पति की मौत |

9)25/3/1964 14:45 (4) जातक नवंबर 2002 मे विवाह मार्च 2010 मे तलाक |

10)24/10/1973 15:00 (11)जातक जून 2003 मे विवाह अगस्त 2006 मे पत्नी की मौत |

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