ज्योतिषीय ग्रंथों में
नाडी सूत्र फलित क्षेत्र में बहुत अहम स्थान रखते हैं
दक्षिण भारतीय ज्योतिषी विशेषकर नाडी सूत्रों से बहुत ही बढ़िया
फलित कर पाने में सक्षम होते हैं बावजूद इसके अभी भी हमें असली नाड़ी शास्त्र के फलित
के तौर तरीकों पर हमेशा से संशय रहता है परंतु
यदि हम इसके पीछे के तर्क को समझ पाए तो यह ज्योतिष के फलित
क्षेत्र
में बहुत ही आश्चर्यजनक परिणाम देने वाली खोज होगी | इन नाडी सूत्रों के जानकार भी इसकी पूर्ण क्षमता को अभी
निकाल पाने मे मुश्किल महसूस करते हैं क्योंकि यह पद्दती पीढ़ी-दर-पीढ़ी
पिता से पुत्र की ओर ज्योतिष क्षेत्र में चलती रहती है इस पर
बाहर का प्रभाव आ पाना थोड़ा मुश्किल होता है | आज के संदर्भ में
कंप्यूटर संबंधित ज्योतिष होने से जहां गणित आसान हुआ है वही फलित उतना ही मुश्किल होता
चला गया है ऐसे में यदि हम नाडी सूत्रों के द्वारा दिए गए सूत्रो से फलित कर पाएं तो बहुत ही
आश्चर्यजनक
परिणाम मिलेंगे |
नाडी सूत्र के जानकार अपने फलित के तरीको
का राज बताना पसंद नहीं करते परंतु यदि हम उनके द्वारा दिए गए फलित को अपने तर्क
के अनुसार कुंडली में बैठा पाए या समझ पाए तो हमें इन सूत्रों को समझने में बहुत ही
आसानी होगी क्योंकि ये नाडी के सूत्र किसी एक परिवार से अथवा पीढ़ी
से बंधे हुए होते हैं इनके विषय में जानकारी आसानी से प्राप्त नहीं होती कुछ ही विद्वान
हैं जो अपने इन सूत्रों को अन्य सामान्यजन के लिए बताना
उचित समझते हैं इसी संदर्भ को लेकर नंदी नाड़ी में एक कुंडली का विश्लेषण दिया गया
है जो काफी हद तक संजय गांधी की पत्रिका से मेल खाता है |
प्रस्तुत इसी कुंडली का आकलन हम यहां पर नाड़ी सूत्र के
माध्यम से कर रहे हैं कुंडली इस प्रकार से हैं वृषभ राशि में केतु,कर्क राशि में शनि,सिंह राशि में चंद्र,तुला राशि में गुरु और शुक्र,वृश्चिक राशि में सूर्य बुध
और राहु तथा धनु राशि में मंगल यहाँ ध्यान रखें कि नंदी नाड़ी में लग्न के विषय में कोई
जानकारी नहीं दी जाती हैं |
बुध जो की नाड़ी सूत्रो मे शिक्षा का कारक माना जाता हैं वृश्चिक राशि में अपने शत्रु के
घर मे हैं और उससे दूसरे भाव में
मंगल है इससे पता चलता है कि जातक ज्यादा पढ़ लिख नहीं पाएगा |गुरु ग्रह को जीव
कारक माना जाता हैं जो स्वयं जातक को दर्शाता हैं गुरु शुक्र संग हैं जो बताता हैं की जातक के जन्म स्थान के आसपास किसी देवी का मंदिर होगा
जहां प्रतिवर्ष कोई ना कोई त्यौहार मनाया जाता होगा |
गुरु (जातक) शुक्र के घर में होने से जातक अमीर परिवार में जन्म
लेगा उसकी मा (चन्द्र) सिंह राशि मे होने से रानी की तरह होगी परंतु उसके
बहुत से शत्रु होंगे और उसकी अपने जीवन में 7 और 8 वर्ष कठिनाई भरे रहेंगे उसके बाद
जैसे अवस्था पहले थी उसी प्रकार की अवस्था हो जाएगी | जातक 26 वें वर्ष सुविधाओं से संबंधित उद्योग संचालन करेगा जिसमें उसकी
माता उसकी मदद करेगी परंतु जातक खुशी और शांतिपूर्ण जीवन प्राप्त नहीं कर
पाएगा उसकी मां का निधन जब शनि तुला राशि दूसरे चक्र में करेगा
तब
होगा जातक का पिता सम्मानित होगा परंतु जवानी में ही मृत्यु को प्राप्त होगा | जातक को उसके शत्रु पूरे जीवन परेशान रखेंगे जातक अपने से नीच जाति के स्त्री-पुरुषों
से संबंधित रहेगा उसकी आयु 60 वर्ष तक की होगी |
इस प्रकार देखें
तो नंदी नाड़ी का यह सूत्र हमें अधिकतर कारक ग्रह से संबंधित दिखता है जो लग्न से हटकर प्रतीत होता है देखने में यह फलित बड़ा साधारण व सरल लगता है जो इस
बात का प्रमाण है की विद्वान ने जीव और शरीर के कारक ग्रहों के विषय में काफी अच्छा
फलित कहा है तथा ज्योतिष के सभी उच्च दर्जे के सूत्र इसमें लगाए गए हैं घटना के समय
को निर्धारण करने के लिए इसमें बड़े ग्रहों के गोचर को महत्व दिया गया है जिनमें शनि
और गुरु विशेष रूप से सहायक हैं | एक अन्य बात पर ध्यान
दें जातक की आयु को शनि ग्रह के गोचर से निर्धारित किया गया है जातक के विषय मे फलित कुछ ही शब्दों में बड़ी जानकारी दे
देते है जिसमें शिक्षा,परिवारिक जीवन,माता-पिता,कार्यक्षेत्र,दोस्त एवं शत्रु
के बारे में बताया गया है |
जातक की शिक्षा देखने के लिए शिक्षा कारक बुध ग्रह को देखा गया है क्योंकि बुध मंगल के घर में है जो उसका शत्रु होता है जिस राशि में बुध बैठा है वह राशि भी
शिक्षा हेतु देखी जाती है उस पर मंगल प्रभाव हैं | शास्त्रीय सूत्रों के अनुसार जब मंगल बुध से दूसरे भाव में
होता है तो शिक्षा में बाधा अथवा रुकावट अवश्य आती है क्योंकि कारक यहां पर लग्न के
रूप में देखा गया है इसमें भी यह सूत्र शत-प्रतिशत लगता है | विद्या कारक ग्रह का स्वामी विद्या के लिए जीव का काम करता है
तथा दूसरे भाव का स्वामी कारक से शरीर का काम करता है यहां जीव मंगल बना जो कि शत्रु
है शरीर गुरु बना जो शुक्र के रूप में बारहवें भाव में है इस प्रकार देखें तो जीव और
शरीर का कोई मेल नहीं है |
एकमात्र पंक्ति
वक्री बुध का वृश्चिक राशि
में अपने दुश्मन के घर में बैठना तथा दूसरे भाव में मंगल का होना उसकी ज्यादा पढ़ाई नहीं होगी
केवल यह बताता है |
इसी प्रकार परिवार
के विषय में एक ही पंक्ति में कहा गया है कि गुरु शुक्र के घर में हैं जिससे जातक
धनी परिवार में जन्म लेता है यह भी एक साधारण सा फलित है परंतु इसके पीछे का कारण बहुत
ही स्पष्ट है क्योंकि शुक्र दूसरे भाव का स्वामी होता है जो कुटुंब का भाव होता हैं यहां अपने ही
भाव में है कारक से दूसरे भाव को भावत भावम के अनुसार देखा गया है जहां उसका स्वामी गुरु स्वयं
स्थित है जि ससे पता चलता है कि उसके परिवार में धन धान्य की कोई कमी नहीं होगी तथा
उसका जन्म धनी परिवार में हुआ होगा |
माँ के संदर्भ में दिया गया विश्लेषण भी बहुत ही बेहतरीन है मां का कारक चंद्र माना जाता
है जो कि सिंह राशि में है यह एक राजकीय राशि हैं जो सूर्य के द्वारा देखी जाती
है जो राजा का प्रतीक होती है यहां पर जीव सूर्य है तथा वह कारक से चौथे भाव में है जो की बेहतरीन स्थिति
है मां के शरीर के लिए चतुर्थेश स्वामी को कारक से देखा जाना चाहिए
चंद्र
यहां पर शरीर बना जिससे जीव और शरीर यानी सूर्य और गुरु मित्र होने से इसकी मां का
रानी के समान जीवन होगा ऐसा कहा जाना स्पष्ट नजर आता है और यहां यह भी कहा गया है कि
जातक को उसकी मां के द्वारा सहायता प्रदान होगी यदि हम चंद्र लग्न को लग्न मान कर देखें
तो वहां से छठी राशि मकर आती है इसका स्वामी शनि कारक चंद्र से बारहवें भाव
में है तथा उसे मंगल देख रहा है जो शत्रुओं का प्रतीक है जिस कारण यह स्पष्ट कहा गया है कि माता के
बहुत से शत्रु होंगे तथा उसे जीवन के 6-8 साल बुरे गुजारने पड़ेंगे
जिसे हम शनि के गोचर से देख सकते हैं जो की परेशानी और शोक का प्रतीक होता है जैसा कि हम
देख रहे हैं कि जब साढ़ेसाती का आरंभ होगा वही समय है जो मां के लिए बहुत ही खराब गुजरेगा | मां के शरीर का कारक गुरु है गुरु चंद्र से तीसरे भाव में है जो कि अष्टम
से अष्टम है यह एक वजह हो सकती है कि तुला राशि को मां की मृत्यु से जोड़ा गया है जब
वहां पर शनि आयु कारक गोचर करेगा |
इस आधार पर हम
देख सकते हैं कि गोचर का प्रभाव बहुत ज्यादा महत्व रखता है शत्रुओं का कारक मंगल माना
गया है जिससे केतु छठे भाव में है जो कि शत्रु का भाव होता है केतु का मंगल से छठे भाव
में होना शत्रुओं का बलवान होना तथा उनके द्वारा परेशान किए जाने का प्रतीक
है मंगल के लिए शरीर जो शत्रुओं का प्रतीक है गुरु बना जोकि मंगल से छठे भाव के स्वामी
हैं यहां पर वह शुक्र होते हैं जिससे जीव और शरीर गुरु
और शुक्र बने दोनों ही शत्रु होकर छठे से छठे हैं | मंगल को लग्न
मानने पर शत्रुओं के द्वारा सारी उम्र परेशान रहेगा स्पष्ट नजर आता है |
जातक 26 वें वर्ष
में सुविधाओ से संबंधित उद्योग
लगाएगा इसे हम दसवें भाव से देख सकते हैं जिसका कारक शनी होता है शनि चंद्र की
राशि में है जो कार्य क्षेत्र के लिए जीव बनेगा,चंद्रमा माँ का कारक है जो
स्पष्ट करता है कि काम माता से संबंधित होगा | नाड़ी सूत्रों
में यह स्पष्ट कहा गया है कि जातक अपनी मां के द्वारा बहुत सहयोग प्राप्त करेगा जब
कार्यक्षेत्र की बात होगी तो शनि से दशम भाव भी देखा जाएगा जहां मेष राशि है तथा उस
पर गुरु,शुक्र और मंगल दशमेश का भी प्रभाव है शनि के लिए शरीर
दसवें भाव का स्वामी होगा जोकि मंगल है धनु राशि में बैठा है अर्थात गुरु शरीर बना
| इस प्रकार गुरु शनि और शुक्र का शनि से
दसवें भाव में प्रभाव है यह तीनों प्रभाव मिलकर जातक को किसी विशेष वस्तु
की उद्योग के संचालन की व्यवस्था बताते हैं जातक के जीवन में यह बदलाव 26 वें
वर्ष में आया जिसको हम शनि के द्वारा देख सकते हैं जहां वह शरीर और जीव से गुजरता है | शरीर गुरु और जीव चंद्र होने के कारण दोनों में 11 राशि का अंतर है शनि अपनी
राशि से ग्यारहवीं राशि में जब गुजरेगा तभी जातक अपना कार्य आरंभ करेगा इसी प्रकार जीव
और शरीर शनि के लिए आयु का कारक होने पर हम देखेंगे कि चंद्र जीव और शरीर दोनों
होगा
|
शनि का स्वामी जीव क्योंकि चंद्र
है शनि से अष्टम भाव का स्वामी भी है क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि चंद्र से जुड़ा
हुआ है चंद्र सिंह राशि में है और जब भी सिंह राशि से शनि का गोचर होगा तो जातक के लिए यह बुरा समय होगा क्योंकि
जीव और शरीर शरीर एक ही ग्रह है जातक के लिए उस समय नुकसान के योग अवश्य ही बनेंगे |
नाडी सूत्र आयु के
लिए जातक को 60 वर्ष की उम्र वाला बताते हैं हम यह कह सकते हैं
कि यह थोड़ा गलत अनुमानित होता है ये भी हो सकता हैं की 60 वर्ष के बाद उसका शरीर किसी बीमारी
से पीड़ित हो कर मौत की तरफ बढ़े परंतु इसकी गणना करने का आधार कुछ गलत जान पड़ता है | ज्योतिष के आधारभूत नियमों के अनुसार पांच तत्व जो हमारे शरीर को बनाते हैं
वह धरती,जल,वायु,अग्नि तथा आकाश
हैं ज्योतिष ने इन
सभी तत्वों पर बहुत सारा काम करके आयु का निर्धारण किया है क्योंकि इन पांचों
तत्वों का अनुपात बदलता रहता है उसी के अनुसार सभी के जन्मों का भविष्य एक जैसा
नहीं होता आयु शरीर को दी गई समय की वह अवधि होती है जहां से उसकी आत्मा शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती
है ज्यादातर शरीर का नाश ही व्यक्ति विशेष की आयु के विषय में कहा जाता है जो कि भौतिक
जगत के अनुसार जीवित और मृत का पता बताता है आत्मा जो इस शरीर को छोड़कर चली जाती है
तो यह माना जाता है की जातक मृत्यु को प्राप्त हुआ |
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