मंगलवार, 10 जुलाई 2018

अष्टक वर्ग व आयु निर्धारण

अष्टक वर्ग फलित ज्योतिष में बहुत महत्व रखता है संमान्यत: इस अष्टकवर्ग को ज्योतिष ग्रहो द्वारा गोचर मे दिये जा रहे प्रभावो मे ज्यादा महत्वपूर्ण समझता हैं परंतु आयु निर्धारण के लिए इससे गणना करने पर बहुत बार आयु का सही आंकलन नहीं निकल पाता हैं | श्री बी वी रमन अपनी पुस्तक हाउ टू  जज होरोस्कोप मे लिखते हैं की आयु निर्धारण मे अष्टकवर्ग पद्दती के अनुसार सही अनुमान नहीं आता है एक महान ज्योतिषी जब इस प्रकार का वक्तव्य देते हैं तो ऐसे शब्दों को नकारा नहीं जा सकता |

यह अष्टकवर्ग सिद्दांत अधिकतर बिंदुओं पर आधारित होता है जो कि लग्न और 7 ग्रहो के द्वारा दिए जाते हैं जिससे कुल 8 स्थानों में गणना होती है परन्तु साधारणत रूप से गणित करते समय यह बिंदु केवल ग्रहों के द्वारा देखे जाते हैं लग्न के द्वारा नहीं | बी वी रमन कहते हैं कि अष्टक वर्ग द्वारा दिये गए बिन्दुओ को ठीक से ना समझ पाने अथवा इस पर आधारित कोई उदाहरण ना दिये जाने के कारण से आयु के क्षेत्र मे अष्टकवर्ग सही फलित कर पाने में निराश करता है | ऐसे मे संभवत: इस से संबन्धित बीच की कोई कड़ी खोने से बाद मे आए अधिकतर विद्वानों ने भी लग्न को बिंदु का महत्व नहीं दिया है वह भी कुल 337 बिन्दुओ के विषय में ही वह अक्सर जानकारी देते आए हैं |

आयु निर्धारण करने के लिए अष्टक वर्ग पद्धति का उपयोग करते हुये जातक पारिजात मे श्री वैद्यनाथ दीक्षित जी कहते हैं |

रवि मुख्य न भोगदमता संख्याह पोरमयूह
सरदास्तु मानवनम
सविलग्न समश्च केसीदहु गुरुमूलत
समुपईति तुल्यमायुह

व्यक्ति के जीवन का अधिकतम समय सूर्य और अन्य ग्रहो द्वारा दिये गए वर्षो से प्राप्त किया जाता हैं गुरु की आज्ञा से कुछ विद्वान यह भी कहते हैं की इन सब वर्षो को लग्न के द्वारा दिये वर्षो मे भी जोड़ना चाहिए जिसमें कुंडली की आयु का सही पता लगाया जा सके | यहां पर एक शंका होती है कि जब बड़े बड़े विद्वान आयु निर्धारण के लिए ऐसी बात कह रहे हो तो लगता हैं की कोई ना कोई कड़ी अवश्य छुटी हुई है यहा पर गुरु का का अभिप्राय महर्षि पराशर से हैं यदि पराशर स्वयं लग्न अष्टकवर्ग की बात करते हैं तो उनके बाद मे आने वाले विद्वान उसको कैसे छोड़ सकते हैं हमें इसका कारण जानना होगा |

पराशर होरा शास्त्र के उत्तर भाग में अष्टक वर्ग के विषय मे लिखा गया हैं जिसमे लग्न के बिन्दु भी दिये गए हैं | जिसमें अनुच्छेद के रूप में इस प्रकार से कहा गया है |

लग्नस्त्थे दम तू संप्रोक्तम करणं पुंगवा ............................लगनस्य कीर्तितम |

इस लग्नाष्टक वर्ग मे शुभ बिंदु इस प्रकार से हैं |

सूर्य से 3,4,6,10,11,12 |

चंद्र से 3,6,10,11,12 |

मंगल से 1,3,6,10,11 |

बुसे 1,2,4,6,8,10,11 |

गुरु से 1,2,4,5,6,7,9,10,11 |

शुक्र से 1,2,3,4,5,8,9 |

शनि से 1,3,4,6,10,11 |

लग्न से 3,6,10,11 |

कुल बिंदु 49 हैं | अगर हम इसमें सातों ग्रह के बिंदु जोड़ दें तो हमें 386 प्राप्त होता है |

इस लग्न से त्रिकोण और एकाधिपत्य का टाव करके तथा राशि और ग्रह से गुणा करने हमें निम्न तथ्य मिलते हैं |

इस पुस्तक के ग्यारहवें अध्याय मे कहा गया हैं |

हरनैवा ........विधिरुत्तमह |

अष्टकवर्ग और अंशायु द्वारा दी गयी आयु मे हरण नहीं होगा | जबकि यदि ग्रह ऊंच का होतो उसके द्वारा दिये गए वर्षो को तिगुना,स्वग्रही होतो दुगना,अधिमित्र के घर होतो आधा,यदि मित्र के घर हो तो एक तिहाई जोड़ा जाता है इसके बावजूद कुछ हरण भी किए जाते हैं यदि यह शत्रु के घर में हो तो एक तिहाई घटाया जाता है यह सबसे अच्छा तरीका है जो माना जाना चाहिए |


कोई भी कड़ी है जो खोयी हुई हैं पराशर होरा शास्त्र के द्वारा ही जानी जा सकती हैं व्यक्ति को इसी आधार पर गणना करके आयु का सही पता लगाया जा सकता है अगर हम सही प्रकार से काम नहीं करेंगे तो हम कभी नहीं कह पाएंगे की मंत्रेश्वर ने ऐसा क्यू कहा है की आयु निकालने के सभी तरीको में अष्टक वर्ग का तरीका सबसे अच्छा है | अगर ऐसा हैं तो कमी कहीं ना कहीं हमारे लग्नाष्टकवर्ग को छोड़े जाने मे हैं अथवा अन्य कुछ ना समझ पाने मे हैं जिसे अगर ठीक कर लिया जाए तो हम आयु का निर्धारण सही तरह से कर पाने मे सक्षम हो पाएंगे |

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